संवेदनशील बनें युवा

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सही ही कहा है कि समेकित विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए युवा प्रतिभाओं को देश की प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के रचनात्मक समाधान की तलाश के प्रति संवेदनशील बनाने की जरूरत है. राष्ट्रपति भवन में एक सप्ताह तक चले ‘फेस्टिवल्स ऑफ इन्नोवेशन’ के समापन के मौके पर उन्होंने जोर देकर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 22, 2016 6:19 AM

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सही ही कहा है कि समेकित विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए युवा प्रतिभाओं को देश की प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के रचनात्मक समाधान की तलाश के प्रति संवेदनशील बनाने की जरूरत है.

राष्ट्रपति भवन में एक सप्ताह तक चले ‘फेस्टिवल्स ऑफ इन्नोवेशन’ के समापन के मौके पर उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘भारत भले ही तकनीक के क्षेत्र में एक विशेष स्तर पर पहुंच गया हो, लेकिन जब तक युवा मस्तिष्क में प्रतिबद्धता, समर्पण, निष्ठा और संवेदनशीलता नहीं होगी, हमारे संविधान में दी गयी न्यायसंगत सामाजिक व्यवस्था पहुंच से बाहर ही रहेगी.’ महामहिम की यह सीख निश्चित रूप से समाज के सर्वांगीण विकास की राह सुझाती है. यहां मन में कुछ सवाल भी उठते हैं.

मसलन, क्या हमारी शिक्षा और परीक्षा व्यवस्था होनहारों की सही पहचान कर पा रही हैं और उन्हें समाज के प्रति संवेदनशील बना पा रही हैं? क्या हमारी शिक्षण व शोध संस्थाएं और सरकार के कार्यक्रम देश की युवा प्रतिभाओं को पर्याप्त सुविधाएं, साधन और माहौल मुहैया करा रहे हैं, जो उन्हें शोध और नवाचार के लिए प्रेरित करे?

आज विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र के जो उपकरण व आविष्कार देश और दुनिया में आम आदमी के जीवन में बड़े बदलाव के वाहक बन रहे हैं, उनमें भारतीय संस्थाओं और प्रतिभाओं की हिस्सेदारी पर गौर करें, तो इसका जवाब मिल जाता है. आखिर क्यों हमारी युवा प्रतिभाएं कुछ अन्य देशों में जाकर उनके विकास में बेहतर योगदान कर रही हैं? जाहिर है, एक ऐसा देश जहां प्राथमिक स्तर के ज्यादातर स्कूलों के लिए विज्ञान की प्रयोगशाला किसी सपने की तरह हो, जहां विशुद्ध विज्ञान पढ़नेवाले विद्यार्थियों-शोधार्थियों की संख्या बीते एक दशक में लगातार घटी हो, वहां शोध और नवाचार के लिए माहौल तैयार करना पहली और बड़ी चुनौती है.

प्रधानमंत्री ने ‘स्किल इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे बहुचर्चित कार्यक्रमों के जरिये इस दिशा में कुछ सकारात्मक कदम बढ़ाये हैं, लेकिन शासन के दो साल बीतने पर इन कदमों से हासिल नतीजों की समीक्षा भी होनी चाहिए. इस समीक्षा के लिए सही दिशा और मानक तय करने में महामहिम की सीख मददगार हो सकती है.

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