एक अच्छी पहल

समानता लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधारभूत सिद्धांत है. नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मौलिक मानवाधिकारों को उपलब्ध कराये बिना कोई भी शासन सही मायने में अपने लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता है. पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, लेकिन इसलामी गणराज्य होने के कारण उसके राजनीतिक और व्यावहारिक सिद्धांत इसलाम के धार्मिक विचारों से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 28, 2016 12:34 AM
समानता लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधारभूत सिद्धांत है. नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मौलिक मानवाधिकारों को उपलब्ध कराये बिना कोई भी शासन सही मायने में अपने लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता है. पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, लेकिन इसलामी गणराज्य होने के कारण उसके राजनीतिक और व्यावहारिक सिद्धांत इसलाम के धार्मिक विचारों से निर्धारित होते हैं.

हालांकि, उसके संविधान में अल्पसंख्यक समुदायों और इसलाम के विभिन्न संप्रदायों के लोगों को भी नागरिक अधिकार दिये गये हैं, लेकिन बहुसंख्यक समुदाय और कट्टरपंथी तबकों के राजनीतिक दबाव के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों पर लगातार कुठाराघात होता रहा है तथा उन्हें भेदभाव और हिंसा का शिकार होना पड़ता है. लेकिन उदारवादी लोकतंत्र के समर्थकों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का एक बड़ा समूह भी वहां सक्रिय है. पिछले कुछ समय से प्रमुख राजनीतिक दलों के रवैये में भी बदलाव दिख रहा है. न्यायालयों ने भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कदम उठाया है. इसी कड़ी में पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली द्वारा हिंदुओं के पर्व- होली और दीवाली तथा ईसाइयों के त्योहार- इस्टर के अवसर पर अवकाश घोषित करने का निर्णय निश्चित रूप से एक सराहनीय पहल है.

मार्च के दूसरे सप्ताह में सत्ताधारी दल- पाकिस्तान मुसलिम लीग (नवाज) के सदस्य डॉ रमेश कुमार वांकवानी ने इस बाबत प्रस्ताव रखा था, जिसे स्वीकार कर लिया गया. इस निर्णय में कहा गया है कि इन अवसरों पर सार्वजनिक अवकाश करने का निर्णय राज्य सरकारों का है. इस निर्णय के बाद सिंध प्रांत की सरकार ने होली को पूर्ण अवकाश घोषित किया है. देश की करीब 20 करोड़ आबादी में दो फीसदी हिंदू और 1.6 फीसदी ईसाई हैं. अधिकतर हिंदू सिंध में और अधिकतर ईसाई पंजाब में निवास करते हैं.

विभाजन के बाद तकरीबन दो दशकों तक इन त्योहारों पर सीमित अवकाश होता था, किंतु इसलामी चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव के साथ 1970 के दशक से ये उत्सव सिर्फ संबंधित समुदायों तक सीमित रह गये थे. इन अवसरों पर अल्पसंख्यक समुदायों पर संगठित हमले भी होते रहे हैं. पर, इस वर्ष होली में सिंध के अलावा पाकिस्तान के अनेक इलाकों से उल्लास के साथ होली मनाने की खबरें आयी हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बहुसंख्यक समाज ने भी हिस्सा लिया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि बदलाव की अच्छी शुरुआत हुई है और उम्मीद की जानी चाहिए कि धीरे-धीरे समाज में मेल-मिलाप की प्रक्रिया तेज होगी और आगामी दिनों में उन कानूनों को भी हटाया जायेगा, जो अल्पसंख्यक समुदाय से भेदभाव को प्रोत्साहित करते हैं.

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