होली का रूप बदले
होली कब की गंदगी, प्रदूषण, अश्लीलता, उत्पीड़न, नशाखोरी, गुंडागर्दी, जोर-जबरदस्ती, झगड़ों और हिंसा की प्रतीक बन चुकी है. कहने को तो इस बार महाराष्ट्र में इस भयंकर सूखे में सूखी होली मनायी गयी, लेकिन जिस तरह लोग रंगों में डूबे हुए थे तो क्या ऐसे में उन्हें कपड़े धोने और स्नान आदि के लिए अधिक […]
होली कब की गंदगी, प्रदूषण, अश्लीलता, उत्पीड़न, नशाखोरी, गुंडागर्दी, जोर-जबरदस्ती, झगड़ों और हिंसा की प्रतीक बन चुकी है. कहने को तो इस बार महाराष्ट्र में इस भयंकर सूखे में सूखी होली मनायी गयी, लेकिन जिस तरह लोग रंगों में डूबे हुए थे तो क्या ऐसे में उन्हें कपड़े धोने और स्नान आदि के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ी? समय और आवश्यकतानुसार बदलाव जरूरी है, यह सृष्टि का नियम भी है़ ऐसे में इस पर्व को अब पवित्रता के साथ पौधरोपण, स्वच्छता के कार्यों, अच्छी सभाओं, संगोष्ठियों और शानदार इनामी प्रतियोगिताओं आदि के रूप में बदलकर मनाने की सख्त जरूरत है़.
वेद मामूरपुर, दिल्ली