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उम्मीदों भरा दौरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन देशों के मौजूदा दौरे का पहला पड़ाव बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स है, जो बीते 22 मार्च को हुए आतंकी धमाकों की पीड़ा से अभी उबरा नहीं है. यहां हो रही भारत और यूरोपीय संघ की शिखर बैठक से दोनों पक्षों के बीच आतंकवाद पर सहयोग के साथ रणनीतिक साझेदारी प्रगाढ़ […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन देशों के मौजूदा दौरे का पहला पड़ाव बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स है, जो बीते 22 मार्च को हुए आतंकी धमाकों की पीड़ा से अभी उबरा नहीं है.

यहां हो रही भारत और यूरोपीय संघ की शिखर बैठक से दोनों पक्षों के बीच आतंकवाद पर सहयोग के साथ रणनीतिक साझेदारी प्रगाढ़ होने की उम्मीदें हैं. दोनों पक्ष मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को आगे बढ़ाने के उपायों पर भी विचार-विमर्श करेंगे, जिसका प्रस्ताव 2007 से लंबित है. यूरोपीय संघ 180 खरब डॉलर जीडीपी के साथ इस समय दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. भारत-यूरोपीय संघ द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन की शुरुआत वर्ष 2000 में हुई थी, जबकि पिछला सम्मेलन 2012 में नयी दिल्ली में हुआ था.

इस समय यूरोपीय संघ के 10 रणनीतिक साझेदारों में भारत भी एक है. खासकर बेल्जियम यूरोपीय संघ में भारत दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. बेल्जियम के प्रधानमंत्री जहां भारतीय प्रधानमंत्री के लिए भोज आयोजित करेंगे, वहीं मोदी भारत में एफडीआइ बढ़ाने के मकसद से यहां के शीर्ष कारोबारियों से भी मिलेंगे. वे प्रवासी भारतीयों को भी संबोधित करेंगे. बेल्जियम में भारतीय मूल के करीब 20 हजार लोग हैं, जिनमें ज्यादातर हीरा कारोबार से जुड़े हैं.

मोदी 31 मार्च को वाशिंगटन पहुंचेंगे, जहां चौथे परमाणु सुरक्षा सम्मेलन (एनएसएस) में भाग लेंगे. प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का यह तीसरा अमेरिका दौरा है, जो भारत और अमेरिका के बेहतर होते रिश्तों का सबूत है. वॉशिंगटन से दो अप्रैल को लौटने के दौरान मोदी दो दिन रियाद में रुकेंगे. इससे पहले 2010 में करीब तीस साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने सऊदी अरब का दौरा किया था.

सऊदी अरब भारत में कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और यहां रह रहे प्रवासियों में सबसे अधिक संख्या (29 लाख से अधिक) भारतीयों की है. उम्मीद है कि मोदी यहां ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के साथ-साथ कई अहम द्विपक्षीय मसलों पर चर्चा करेंगे. कुल मिला कर, मोदी के इस दौरे पर जहां अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों की नजर रहेगी, वहीं इससे उनके महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’कार्यक्रम को गति मिलने की भी उम्मीद है.

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