फिर वही जमाना याद आया..

।। रॉक्की कुमार रंजन।। (प्रभात खबर, पटना) लालू प्रसाद यादव जेल से जमानत पर बाहर निकले, तो पहले से ज्यादा ताकतवर व पुराने तेवर में दिखे. ऐसा लग रहा था मानो जेल जाने के बाद उनमें ऊर्जा का प्रवाह और बढ़ गया हो. उनके बाहर आने से बिहार की राजनीति में जान आ गयी. रांची […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 26, 2013 5:21 AM

।। रॉक्की कुमार रंजन।।

(प्रभात खबर, पटना)

लालू प्रसाद यादव जेल से जमानत पर बाहर निकले, तो पहले से ज्यादा ताकतवर व पुराने तेवर में दिखे. ऐसा लग रहा था मानो जेल जाने के बाद उनमें ऊर्जा का प्रवाह और बढ़ गया हो. उनके बाहर आने से बिहार की राजनीति में जान आ गयी. रांची से पटना तक जनता ने लालू का भव्य स्वागत कर दिखा दिया कि लालू के पुराने दिन लौटने वाले हैं. जेल से निकलने के बाद लालू प्रसाद के प्रति जनता की दीवानगी देख पुराने दिन याद आ गये.

जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था, तो पहली बार लालू प्रसाद यादव को नजदीक से देखने व उनका भाषण सुनने का मौका मिला था. हमारे गांव से सात किलोमीटर दूर हमीदनगर में पुनपुन नदी पर बराज का शिलान्यास करने उन्हें आना था. हम दोस्तों ने उस दिन स्कूल नहीं जा कर लालू यादव को देखने जाने का प्लान बनाया. हम लोग पुनपुन नदी पार कर पैदल ही सभा की ओर जा रहे थे. मस्ती करते हुए. रास्ते में नदी किनारे पेड़ों से बेर तोड़ कर खाते हुए. तभी आसमान में लालू का हेलिकॉप्टर मंडराने लगा. रास्ते में जो लोग पैदल चल रहे थे, वे कार्यक्रम स्थल की ओर दौड़ने लगे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे- लालू आ गया, लालू आ गया.

हम भी अपने दोस्तों के साथ दौड़ लगा कर लालू की सभा में पहुंचे. तब तक लालू का हेलिकॉप्टर उतर चुका था. हमने देखा कि पूरी भीड़ मंच की ओर दौड़ती जा रही है. हम लोगों ने भी दौड़ लगायी, लेकिन मंच की ओर नहीं, बल्कि हेलिकॉप्टर की ओर. दरअसल, हेलिकॉप्टर को नजदीक से देखने का यह पहला मौका था. उस समय कहीं भी आसमान में लाल रंग का हेलिकॉप्टर दिखता था, तो लोग कहते थे कि देखो लालू जा रहा है. उसके बाद हम भी लालू के मंच की ओर गये, जहां भाषण चल रहा था. हमने भी लालू को पूरा भाषण देते हुए देखा और सुना. उन्होंने जनता को ठेठ देहाती भाषा में संबोधित किया. ऐसे-ऐसे जुमलों का उन्होंने इस्तेमाल किया कि हंसते-हंसते पेट में बल पड़ गये.

लेकिन हंसी की चाशनी में उन्होंने जो बातें कहीं, वो समाज की कड़वी हकीकत थी. भाषण खत्म हुआ और जब लालू का उड़नखटोला उड़ने लगा, तो उसी समय मेरा गमछा हेलीकॉप्टर के पंखे की हवा में उड़ गया. लेकिन लालू के प्रति दीवानगी में गमछा खोने का मुङो कोई अफसोस नहीं था. आज भी याद है कि लालू को देखने के लिए हमने अपना गमछा खो दिया था. उस समय लालू के प्रति जनता का क्या गजब का भावनात्मक लगाव था. लालू गरीबों के नेता कहे जाते थे. लालू की एक आवाज पर जनता उनके साथ खड़ा होती थी. वही दीवानगी फिर दिखी, जब जमानत मिलने पर लालू यादव रिहा हुए. जेल में भी उनसे मिलने दूर-दूर से आम लोग पहुंचे. जेल से निकलने पर उनके स्वागत में उमड़ी जनता को देख कर लगा कि लालू यादव लड़खड़ाने के बाद फिर से खड़े हो चुके हैं.

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