शासन को आंदोलन से मिलाने की चुनौती

दो दिन पहले एक समाचार पत्रिका को दिये साक्षात्कार में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पिछले तीन वर्षो की घटनाओं ने ईश्वर में उनका यकीन फिर से जगा दिया है. उनके शब्दों में, ‘मुङो नहीं मालूम कि हम सफल होंगे या नहीं. हमारा अपने भाग्य के ऊपर नियंत्रण खत्म हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 26, 2013 5:23 AM

दो दिन पहले एक समाचार पत्रिका को दिये साक्षात्कार में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पिछले तीन वर्षो की घटनाओं ने ईश्वर में उनका यकीन फिर से जगा दिया है. उनके शब्दों में, ‘मुङो नहीं मालूम कि हम सफल होंगे या नहीं. हमारा अपने भाग्य के ऊपर नियंत्रण खत्म हो गया है, लेकिन हमारे कर्म हमारे नियंत्रण में हैं.’

केजरीवाल के इन शब्दों में गीता के ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन (सिर्फ कर्म ही अधिकार है, उसका फल नहीं)’ की अनुगूंज को साफ महसूस किया जा सकता है. अब जबकि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने से महज दो दिन दूर हैं, हर जेहन में यही सवाल दस्तक दे रहा है कि क्या मुख्यमंत्री के तौर पर उनके और उनकी सरकार के कामकाज में भी गीता का यह दर्शन प्रतिबिंबित हो पायेगा? दिल्ली की जनता के लिए केजरीवाल उम्मीद का दूसरा नाम हैं और ये उम्मीदें ही केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन कर दरपेश हैं. केजरीवाल अब तक जन-आंदोलन से जुड़े रहे हैं. आम आदमी पार्टी की राजनीति भी आंदोलनधर्मी रही है. ऐसे में उनके सामने बड़ी चुनौती आंदोलन के भाव को शासन में आत्मसात करने की होगी.

उनके मंत्रिमंडल में शामिल होनेवाले नामों के ऐलान के साथ ही मीडिया में जिस तरह से ‘आप’ के एक विधायक की नाराजगी की खबरें आयीं, उसके आईने में इस चुनौती के आकार का अंदाजा लगाया जा सकता है. हालांकि, विरोध का यह स्वर फिलहाल दब गया है, लेकिन इसने केजरीवाल को सत्ता का पहला सबक जरूर पढ़ाया होगा. सत्ता ‘विरुद्धों के सामंजस्य’ का नाम है, जबकि आंदोलन सामंजस्य की जगह संघर्ष का रास्ता लेता है.

आंदोलन, मठों और गढ़ों को तोड़ने का स्वप्न देखता है. शासन का ध्येय निर्माण होता है. आंदोलन सपने जगाता है, जबकि शासन पर उन सपनों को पूरा करने की जिम्मेवारी होती है. आंदोलन सत्ता की नाकामियों से मजबूत होता है, जबकि सत्ता को नाकामियों को स्वीकार कर आगे बढ़ना होता है. आनेवाला समय अरविंद केजरीवाल की आंदोलनधर्मिता के लिए बड़ी चुनौती होगा. उनके सामने सपनों को पूरा करने के साथ नये सपने जगाने की, नाकाम न होने साथ ही नाकामियों को स्वीकार करने की विराट चुनौती है.

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