राजनीतिक आंधियों के आसार
भाजपा पूरी तरह जमी नहीं है और कांग्रेस पूरी तरह परास्त नहीं है. अगले दो महीने में देश निर्णायक विजय-पराजय की ओर बढ़ेगा. इस वक्त जो पाला मारेगा, वही मीर साबित होगा. जेएनयू प्रकरण में भाजपा और वामपंथियों ने अपने-अपने लक्ष्य हासिल कर लिये. पर इसके आगे क्या? फिलहाल, चुनाव परिणामों का इंतजार करें. उत्तर […]
भाजपा पूरी तरह जमी नहीं है और कांग्रेस पूरी तरह परास्त नहीं है. अगले दो महीने में देश निर्णायक विजय-पराजय की ओर बढ़ेगा. इस वक्त जो पाला मारेगा, वही मीर साबित होगा. जेएनयू प्रकरण में भाजपा और वामपंथियों ने अपने-अपने लक्ष्य हासिल कर लिये. पर इसके आगे क्या? फिलहाल, चुनाव परिणामों का इंतजार करें.
उत्तर भारत में मार्च-अप्रैल के महीने आंधियों के होते हैं. पश्चिम से उठनेवाली तेज हवाएं धीरे-धीरे लू-लपेट में बदल जाती हैं. राजनीतिक मैदान पर मौसम बदल रहा है और गर्म हवाओं का इंतजार है. असम और बंगाल में आज विधानसभा चुनाव का पहला दौर है. इसके साथ ही 16 मई तक लगातार चुनाव के दौर चलेंगे, जिसका नतीजा 19 मई को आयेगा. इन नतीजों में भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति के कुछ संकेत सूत्र होंगे, जो नीचे लिखी कुछ बातों को साफ करेंगे:-
इस बीच केंद्र में मोदी सरकार की जीत के दो साल पूरे हो जायेंगे. भाजपा पूरी तरह जमी नहीं है और कांग्रेस पूरी तरह परास्त नहीं है. अगले दो महीने में देश निर्णायक विजय-पराजय की ओर बढ़ेगा. इस वक्त जो पाला मारेगा, वही मीर साबित होगा. जेएनयू प्रकरण में भाजपा और वामपंथियों ने अपने-अपने लक्ष्य हासिल कर लिये. पर इसके आगे क्या? फिलहाल, चुनाव परिणाम का इंतजार करें.
पिछले साल बिहार में एक महागंठबंधन ने मोदी सरकार के विजय रथ को रोक लिया था. इससे पहले दिल्ली में ही यह विजय रथ रुक गया था, पर उसके कारण वही नहीं थे. अब पांच राज्यों के चुनाव में इस गंठबंधन की जमीनी राजनीति सामने आयेगी. असम और केरल में कांग्रेस की सरकारें हैं. दोनों जगह उसकी हार का खतरा मंडरा रहा है. हाल में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गयी. इस हफ्ते उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार के भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण फैसले हो रहे हैं. हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और कर्नाटक में मुख्यमंत्रियों के खिलाफ बगावतों की सुगबुगाहट है. पिछले साल उम्मीद थी कि राहुल गांधी अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठ जायेंगे. ऐसा नहीं हो सका. लेकिन, लंबे अवकाश के बाद लौटकर उन्होंने संसद में आक्रामक रणनीति से मोदी सरकार को परेशान कर दिया. लेकिन, अपने संगठन को अभी तक खड़ा नहीं कर पाये हैं. सोनिया गांधी ने जब भी हाथ संगठन से खींचा है, कोई न कोई विवाद खड़ा हुआ है.
चार राज्यों के ओपिनियन पोल इन सवालों पर अलग-अलग संदेश दे रहे हैं. हालांकि, सारे पोल एक ही भाषा नहीं बोल रहे हैं, पर ज्यादातर के रुझान एक से हैं. असम में कांग्रेस पार्टी की पराजय और भाजपा की जीत के संकेत मिल रहे हैं. कुछ कहते हैं कि भाजपा और सहयोगी दल सीधे-सीधे बहुमत हासिल कर लेंगे. वहीं, कुछ का अनुमान है कि त्रिशंकु विधान सभा भी संभव है. इस स्थिति में हो सकता है कि कांग्रेस बद्रुद्दीन अजमल की पार्टी एआइयूडीएफ की मदद से सरकार बनाये.
कांग्रेस के लिए दूसरा बड़ा मोर्चा केरल में है, जहां उसकी हार सामने खड़ी दिखाई पड़ रही है. वहां मुख्यमंत्री ओमान चांडी समेत चार मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं. हालांकि, वहां भाजपा काफी तैयारी के साथ उतर रही है, पर सफलता की कोई उम्मीद नहीं. अलबत्ता, प्रतीक रूप में भी सफल हो गयी, तो कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण दखल माना जायेगा.
केरल में गलाकाट प्रतियोगिता में शामिल कांग्रेस ने बंगाल में उसी वाममोर्चा के साथ गंठबंधन किया है, जो भारतीय राजनीति में नया प्रयोग है. ओपिनियन पोल मान कर चल रहे हैं कि बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ही जीतकर आयेगी. अलबत्ता, कांग्रेस के साथ गंठबंधन करके वाममोर्चा कुछ फायदे में रहेगा. पर कांग्रेस की स्थिति कमजोर ही होगी. पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा को 24 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी, पर लगता नहीं कि विधानसभा चुनाव में उसे विशेष सफलता मिलेगी. कुछ ओपिनियन पोल उसे एक सीट और कुछ एक भी नहीं दे रहे हैं. अलबत्ता, भाजपा बंगाल में किसी तरह अपने पैर जमाना चाहती है.
तमिलनाडु की राजनीति में परंपरा से अद्रमुक और द्रमुक के बीच सीधी लड़ाई होती आयी है. इस बार लगता है कि कम से कम तीन मोर्चे खुलेंगे. फिल्म अभिनेता विजय कांत की पार्टी डीएमडीके और पांच पार्टियों के पीपुल्स वेल्फेयर एलायंस के बीच समझौता हुआ है. पहले इस पार्टी के साथ बीजेपी की बात भी चली थी. यह मोर्चा वोट खींचेगा, पर कितने और किसके इसका जवाब देना अभी संभव नहीं. माना जा रहा है कि इसका नुकसान डीएमके को होगा. भाजपा और रामदॉस की पार्टी पीएमके को खास सफलता मिलने की आशा नहीं है. फिर भी, भाजपा की दक्षिण मुहिम को ध्यान से देखना होगा.
ये चुनाव 2019 के लोकसभा की पूर्व-पीठिका भी तैयार करेंगे. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा विकास के मुद्दे पर जीतकर आयी थी. पर उसने धीरे-धीरे राष्ट्रवाद को आगे कर दिया है. असम में वह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे है. अगले साल उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं, जो लोकसभा चुनाव में विजय का सबसे महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है. इस बीच राष्ट्रीय स्तर पर जनता परिवार और कांग्रेस का गंठबंधन बनाने की कोशिशें चल रहीं है. बीजू जनता दल के सांसद तथागत सत्पथी ने हाल में कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा फीका पड़ रहा है, पर कांग्रेस की स्वीकार्यता भी बढ़ नहीं रही है. उन्हें नहीं लगता कि 2019 में किसी राष्ट्रीय दल की सरकार बनेगी. बल्कि, क्षेत्रीय दलों का भविष्य उज्ज्वल नजर आता है. पर कैसे? उनकी समझ से क्षेत्रीय क्षत्रपों के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए टकराव नहीं होगा. पर अभी तक लगता नहीं कि भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कोई शक्ति तैयार है और न कोई उसका सर्वमान्य नेता दिखाई पड़ता है.
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था. कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे खराब दौर में प्रवेश कर चुकी है. चुनाव के बाद लगता है कि दक्षिण में कर्नाटक ही उसका सबसे महत्वपूर्ण गढ़ बचेगा. उत्तराखंड का घटनाक्रम और आगामी चुनावों के संभावित परिणाम उसके लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं. खासतौर से राहुल गांधी के लिए. एक के बाद एक राज्य से बगावत की खबरें हैं. इस बगावत को भड़काने में भाजपा का हाथ भी है, पर राजनीति में यह सामान्य बात है. पार्टी का संगठनात्मक ढांचा बुरी तरह चरमरा गया है और नेतृत्व उदासीन है.
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
pjoshi23@gmail.com