महाअपराध है समलैंगिकता
समलैंगिकता को दंडनीय अपराध मानने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिलकुल सही व स्वागतयोग्य है. यह अपराध ही नहीं, महाअपराध है, मानवता के प्रति कलंक है, असमाजिक संसर्ग है, दुराचार है, महापाप है, व्यभिचार है और कामांधता में किया जानेवाला प्रकृति के विरुद्ध घोर नकारात्मक दुष्प्रयोग भी है. समलैंगिकता निश्चित ही विकृत भोग है और […]
समलैंगिकता को दंडनीय अपराध मानने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिलकुल सही व स्वागतयोग्य है. यह अपराध ही नहीं, महाअपराध है, मानवता के प्रति कलंक है, असमाजिक संसर्ग है, दुराचार है, महापाप है, व्यभिचार है और कामांधता में किया जानेवाला प्रकृति के विरुद्ध घोर नकारात्मक दुष्प्रयोग भी है. समलैंगिकता निश्चित ही विकृत भोग है और यह किसी भी दृष्टि से मानवाधिकार का विषय नहीं है.
पश्चिमी देशों में जब समलिंगी बड़े-बड़े पदों पर बैठने लगे, शासन-प्रशासन में उनकी संख्या बढ़ गयी, सेना, न्यायालय, संसद, फिल्म निर्माण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनका प्रभुत्व होने लगा, तब से मानवाधिकार की चर्चा तेज हो गयी. समाज के परिष्कृत होने का मतलब यह नहीं कि गलत को भी विकास व अधिकार के नाम पर सत्य ठहराया जाए.
रितेश कुमार दुबे, कतरास