विवाद-दर-विवाद

एक बहुप्रचलित मुहावरा है- कुएं में भांग घुलना. कहीं के परिवेश में चहुंओर बौड़ाहट (सनक) व्याप्त हो, लगे कि लोग विवेक का दामन छोड़ कर अपने मन में उठ रही तरंगों के हिसाब से बात-व्यवहार कर रहे हैं, तब कहा जाता है कि यहां तो कुएं ही में भांग घुली है. एक दिन की तीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 8, 2016 1:22 AM

एक बहुप्रचलित मुहावरा है- कुएं में भांग घुलना. कहीं के परिवेश में चहुंओर बौड़ाहट (सनक) व्याप्त हो, लगे कि लोग विवेक का दामन छोड़ कर अपने मन में उठ रही तरंगों के हिसाब से बात-व्यवहार कर रहे हैं, तब कहा जाता है कि यहां तो कुएं ही में भांग घुली है. एक दिन की तीन खबरों पर गौर कीजिए.

एक नागपुर से आयी है, दूसरी श्रीनगर से, तीसरी मेवाड़ से. तीनों खबरों के चेहरे अलग-अलग हैं, लेकिन गौर करने पर उनके स्वभाव एक जैसे दिखते हैं. ये खबरें देश के कोने-कोने में व्याप रही एक प्रकार की बौड़ाहट का संकेत दे रही हैं. ऐसी खबरों से यह आशंका जाग रही है कि हमारे देश-समाज के सार्वजनिक जीवन को संचालित करनेवाले नियम-कायदों के पवित्र कूपजल में किसी ने भांग तो नहीं मिला दी है!

जो रोगी को भाये अगर वही वैद्य फरमाये, तो यह हालत रोगी के लिए कतई ठीक नहीं कही जा सकती. लेकिन, नागपुर नगरपालिका ने एड्स जागरूकता अभियान के नाम पर कुछ ऐसा ही करने का प्रयास किया. रोग से बचाव के बारे में जागरूक करने और उपचार की व्यवस्था की अपनी जिम्मेवारी निभाने की बजाय, उसने सीधे निदान के लिए नगरवासियों को हनुमान चालीसा पाठ सुनाने का फैसला किया.

आयोजन से एक दिन पहले हाइकोर्ट की पीठ ने ठीक ही पूछा कि हनुमान चालीसा का पाठ ही क्यों? कुरान, बाइबल या दूसरे धर्मग्रंथों का क्यों नहीं? क्या यह देश सिर्फ हिंदुओं का है? या एड्स से सिर्फ हिंदू ही ग्रसित होते हैं?

इसके साथ ही हाइकोर्ट ने भाजपा द्वारा संचालित नागपुर नगर निगम को सरकारी खजाने से अपना धार्मिक एजेंडा लागू करने से रोक दिया.

उधर, एनआइटी श्रीनगर में भारत-वेस्ट इंडीज क्रिकेट मैच के नतीजे पर प्रतिक्रियाओं को लेकर हुए विवाद के बाद बाहरी छात्रों पर पुलिस लाठीचार्ज की जितनी निंदा की जाये, कम होगी. एक स्वायत्त शिक्षण संस्थान के परिसर में पुलिस का दाखिल होना अपने आप में संस्थान प्रशासन की नाकामी का सबूत है. लेकिन, विवेक की कसौटी जरा ठहर कर कुछ और सवालों पर गौर करने की मांग करती है.

श्रीनगर में 1960 में रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में स्थापित इस संस्थान को 2003 में डीम्ड यूनिवर्सिटी की तर्ज पर स्वायत्त संस्थान, जबकि 2007 में एनआइटी का दर्जा दिया गया. पिछले नौ वर्षों में उत्तर भारत के इस प्रमुख तकनीकी संस्थान में छात्रों का कोई विवाद इतना गंभीर नहीं हुआ, जिसमें पुलिस कार्रवाई की नौबत आयी हो. तो क्या इस समय बाहरी छात्रों के सिर्फ ‘भारत माता की जय’ कहने भर से कश्मीर पुलिस को लग रहा है कि वे घाटी की कानून-व्यवस्था की क्षय कर रहे हैं या यह मामला उतना भर ही नहीं है, जितना दिख रहा है?

सवाल यह भी है कि इस मामले में केंद्र सरकार जिस तरह फटाफट सक्रिय हुई, तुरंत सीआरपीएफ और केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की टीम भेजी गयी, क्या अन्य केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के विवाद में भी वैसा ही होता है? इतना ही नहीं, भारत माता का नारा लगानेवाले छात्र अब यह बेतुकी मांग भी कर रहे हैं कि संस्थान को श्रीनगर से हटा दिया जाये. एक तरफ तो कहा जाता है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, दूसरी तरफ एनआइटी की घटना के बहाने कश्मीर के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है!

भारत-वेस्टइंडीज क्रिकेट मैच के नतीजे पर प्रतिक्रियाओं के दौरान छात्रों के गुटों में विवाद की एक खबर मेवाड़ यूनिवर्सिटी से भी आयी है.

पुलिस यहां भी मौके पर पहुंची और 10 विद्यार्थियों को गिरफ्तार कर लिया, जिनमें पांच जम्मू, जबकि पांच कश्मीर के थे. अगले दिन ये छात्र जमानत पर छूट गये, लेकिन बाद में विश्वविद्यालय प्रशासन ने 16 कश्मीरी छात्रों और एक हॉस्टल वार्डन को सस्पेंड कर दिया है. क्रिकेट के किसी मैच की जीत-हार से इतने छात्रों का भविष्य दावं पर लग जाये, इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है?

संकेत साफ हैं.

‘भारत माता की जय’ के नारे को हाल के दिनों में जिस तरह से धार्मिक अस्मिताओं के उद्घोष के रूप में बरता जा रहा है, ऐसे बरताव से देश-समाज में धार्मिक बंटवारे की एक लकीर खिंचती नजर आ रही है. इसे लेकर देश के कई उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों के माहौल में तनाव पसरा है. हम अकसर पाते हैं कि छात्रों के झगड़े सुलझाने में किसी संस्थान का प्रशासन तभी विफल होता है, जब राजनीतिक या धार्मिक स्वार्थवश विवाद को भड़काने में छात्रों को बाहरी समर्थन मिलता है.

कहना गलत नहीं होगा कि जब कुछ लोग, संगठन या सत्ता प्रतिष्ठान संविधान की भावना को परे रख कर अपने मन में उठती तरंगों के हिसाब से संस्थाओं को चलाना चाहेंगे, तब ऐसी घटनाओं और प्रवृत्तियों का बढ़ना तय है. समाज को विभाजित करनेवाली ऐसी कोई भी लकीर देश के विकास और सुशासन की राह रोकती रहेगी, जिसका नुकसान अंतत: हर किसी को भुगतना होगा.

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