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समलैंगिकता से ऐसी घृणा क्यों?

हमारा संविधान या कोई भी जाति-धर्म, लड़के का लड़के के प्रति या लड़की का लड़की के प्रति आकर्षण को एक असमान्य क्रिया मानता है. इसे न सिर्फ असामाजिक, बल्कि अपराध भी मानता है. समलैंगिकों के कुछ समूहों का समाज में सम्मान पाने और खुद को गैर-अपराधी साबित करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना भी […]

हमारा संविधान या कोई भी जाति-धर्म, लड़के का लड़के के प्रति या लड़की का लड़की के प्रति आकर्षण को एक असमान्य क्रिया मानता है. इसे न सिर्फ असामाजिक, बल्कि अपराध भी मानता है. समलैंगिकों के कुछ समूहों का समाज में सम्मान पाने और खुद को गैर-अपराधी साबित करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना भी कारगर नहीं रहा. अक्सर इनके जुलूसों के बोर्ड-बैनर पर लिखा होता है, ‘इट्स नॉट बाइ चॉइस, इट्स बाइ बर्थ’.

मतलब साफ है कि प्रकृति ने उन्हें ऐसा बनाया है, वे अपनी पसंद से समलैंगिकता को नहीं अपना रहे. भारत यदि समलैंगिकता को सामाजिक दर्जा देने को तैयार नहीं है, तो समलैंगिकों को मानसिक रूप से अपरिपक्व घोषित कर इनका तब तक इलाज करवाये जब तक कि वे विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित न हो जायें. यदि यह संभव नहीं है, तो समलैंगिकता को स्वीकार कर लेना ही बेहतर होगा. लेकिन फिर एक प्रश्न उठता है कि इसी अति यौन आकर्षण के कारण आज समाज को कलंकित करनेवाली यौनाचार और बलात्कार जैसी आपराधिक घटनाएं भी हो रही हैं. यदि फिर भी समलैंगिकता अपराध है, तो विश्व के कई देशों ने इसे ससम्मान स्वीकार क्यों किया? भारत का संविधान विश्व के कई देशों के कानून एवं संविधान से प्रेरणा ले कर बना है. यदि समलैंगिकता को भी स्वीकार कर ले तो भारत को कोई नुकसान नहीं है.

वैसे भी यह ‘लिव इन रिलेशनशिप’ से तो बेहतर है, जिसे हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने मान्यता तो दे रखी है, लेकिन इससे परिवार भी टूटते हैं और ऐसे रिश्ते से जन्मे बच्चों को समाज भी नहीं स्वीकारता. दूसरी तरफ समलैंगिक जोड़ियों से अनाथ बच्चों को सहारा जरूर मिलेगा.

अमित रवि, ई-मेल से

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