राजनीतिक गणित में मोदी-केजरीवाल
।। रवीश कुमार।। (वरिष्ठ पत्रकार) राजनीति में मुख्य रूप से दो प्रकार के गणित होते हैं. पहला वास्तविक गणित (रियल मैथमेटिक्स), दूसरा अवधारणात्मक गणित (परसेप्शनल मैथमेटिक्स). राजनीति के जानकार इन दोनों ही आधार पर किसी पार्टी या नेता की लोकप्रियता का मूल्यांकन करते रहते हैं. इसमें जरूरी नहीं कि जो अवधारणा हो वैसा ही नतीजा […]
।। रवीश कुमार।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
राजनीति में मुख्य रूप से दो प्रकार के गणित होते हैं. पहला वास्तविक गणित (रियल मैथमेटिक्स), दूसरा अवधारणात्मक गणित (परसेप्शनल मैथमेटिक्स). राजनीति के जानकार इन दोनों ही आधार पर किसी पार्टी या नेता की लोकप्रियता का मूल्यांकन करते रहते हैं. इसमें जरूरी नहीं कि जो अवधारणा हो वैसा ही नतीजा हो और जैसा नतीजा हुआ है, उसके आधार पर नयी अवधारणा के लिए कोई गुंजाइश न हो. अरविंद केजरीवाल के उदय और आम आदमी पार्टी के लोकसभा चुनाव में उतरने के ऐलान से अवधारणात्मक गणित में एक नया फैक्टर आ गया है. दिल्ली से संचालित मीडिया स्पेस में केजरीवाल को नरेंद्र मोदी के बराबर जगह मिलने लगी है. हो सकता है कि भाजपा अपना ध्यान क्षेत्रीय मीडिया स्पेस पर लगाये, लेकिन केजरीवाल वहां भी पहुंच सकते हैं. इसलिए दोनों को इस वक्त नया मीडिया स्पेस तलाशने से कोई फायदा नहीं है. स्पेस के लिहाज से अवधारणात्मक गणित बनाने का मंच राष्ट्रीय मीडिया ही है. अखबारों के जिला संस्करण अवधारणा बनाने के सशक्त उपकरण नहीं हैं. उनकी भूमिका से इनकार नहीं, लेकिन वह भी भाषणों से राष्ट्रीय तत्वों का ही चयन करता है.
तो क्या ‘आप’ मोदी को चुनौती देगी? सरल जवाब है. चुनौती तो देगी, मगर दे नहीं पायेगी, क्योंकि अवधारणात्मक गणित में मोदी काफी आगे हैं. आप दिल्ली की तरह हर जगह कांग्रेस का ही विकल्प बनेगी. दिल्ली में एक ही टारगेट था, लेकिन यूपी में वह सिर्फ मोदी से नहीं लड़ पायेगी. उसे अखिलेश और मायावती से भी लड़ना होगा. तो क्या आप को मिलनेवाला हर वोट मोदी की जीत को पक्का करेगा? दिल्ली में भाजपा भले नहीं जीत पायी, मगर वो हारने से इसलिए बच गयी, क्योंकि मोदी ने बचा लिया. वरना आप के सामने कांग्रेस की तरह भाजपा को भी 15-20 सीटें मिलतीं. दिल्ली के उदाहरण से भाजपा को बौखलाना नहीं चाहिए. आप भले ही मोदी को निशाना बनायेगी, क्योंकि अवधारणात्मक जमीन पर मोदी ही नंबर वन हैं, दूसरे या तीसरे नंबर के मनमोहन सिंह या कांग्रेस को टारगेट कर उसे लाभ नहीं होगा. लेकिन क्या भाजपा को भी आप को नंबर वन टारगेट समझना चाहिए? क्या भाजपा आप को नजरअंदाज करने का जोखिम उठा सकेगी?
यह सही है कि आप की कामयाबी ने राजनीतिक चरचा को बदल दिया है. यह भी सही है कि आप की टीम तीन सौ जिलों में मौजूद है. लेकिन वे जिले दिल्ली नहीं हैं. दिल्ली में ही आप के लिए देश भर से वॉलंटियर काम करने आ गये थे. क्या आप यही रणनीति हर जगह पर दोहरा पायेगी? आप नेता योगेंद्र यादव ने कहा है कि काश, हम चुनाव आयोग से कह पाते कि लोकसभा चुनाव एक साल के लिए टाल दे.
हां यह जरूर है कि आप ने अवधारणात्मक जमीन पर तैयार गणित में मोदी का खेल बिगाड़ दिया है. मोदी पर केजरीवाल का हमला ज्यादा आक्रामक और विश्वसनीय जैसा लगेगा. कांग्रेस दिल्ली में एंटीकरप्शन यात्र कर रही है. यह महज नौटंकी है. इससे लाभ आप को ही मिलेगा. लेकिन कांग्रेस से ज्यादा फायदा भाजपा को भी मिल सकता है. कांग्रेस अब भ्रष्टाचार के विरोध में जितना मुखर होगी, उतना आप की डुप्लीकेट लगेगी. इससे उसका वोटर आप में बंटेगा और कई शहरी क्षेत्रों में भाजपा की तरफ भी जायेगा. अवधारणात्मक गणित में केजरीवाल को नंबर तो मिलेंगे, क्योंकि जानकार दिल्ली की तरह छह सीटें देने की गलती दोबारा नहीं करेंगे. वे आप को इस बार ज्यादा सीटें देंगे. इससे केजरीवाल मोदी की दावेदारी को अपने सवालों से अवधारणात्मक चुनौती देने लगेंगे. आप के नेता कुमार विश्वास का यह बयान तुकबंदी नहीं है कि अगर मोदी वैचारिक रूप से वंशवाद के इतने ही खिलाफ हैं, तो राहुल गांधी के खिलाफ क्यों नहीं लड़ते. मोदी भले ही चुप हो जायें, मगर जनता को तर्क के लिए एक मसाला तो मिल ही गया है.
इसीलिए नरेंद्र मोदी के लिए आसान नहीं होगा कि वे आप को नजरअंदाज करें. आप के खाते में गये लोग कांग्रेस और भाजपा स़े ही निकले हुए हैं. मोदी ने शुरू से ही पहली बार मतदाता बने युवाओं को ज्यादा टारगेट किया है, क्योंकि ये युवा भाजपा की कमजोरियों से कम वास्ता रखते हैं. इसलिए नेतृत्व की मजबूत दावेदारी को फिर से उभारा गया, जिसे दो-दो बार आडवाणी जी सामने लाकर कमजोर मनमोहन सिंह से हार गये. लेकिन मोदी ने इस पिटे हुए फामरूले को युवाओं के बीच लोकप्रिय बना दिया. अब केजरीवाल के आने से पहली बार मतदाता बने युवाओं के बीच मोदी और केजरीवाल में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा होना तय माना जा रहा है. इनके बीच से एक वोटर का भी मोदी से केजरीवाल की ओर जाना नुकसान होगा. फिर भी यह बात अवधारणात्मक स्तर पर ही ज्यादा प्रबल लगती है, वास्तविक गणित के धरातल पर कमजोर.
अगर टीवी और सोशल मीडिया को यह श्रेय दिया जा रहा है कि आप इनकी पैदाइश है, तो यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी काल्पनिक मीडिया के असर के कारण भाजपा में मोदी की दावेदारी प्रखर हुई थी. मोदी की टीम ने भी इसे काफी प्रचारित किया था कि टीवी वालों को टीआरपी आती है, इसलिए वे मोदी को दिखाते हैं. इस तरह की बातें भाजपा के कई नेताओं ने डिबेट शो में भी कहीं हैं. वे यह भूल गये कि टीवी को सनसनी, स्पीड न्यूज और क्रिकेट से भी टीआरपी मिलती है. अरविंद के कारण भी मिल रही होगी! इसलिए अब इस चरण पर आकर आप मीडिया के प्रभाव (विवादास्पद) को खारिज नहीं कर सकते.
मोदी आगे हैं, उनके पास संगठन है. आप के पास वॉलंटियर्स की ताकत तो है, पर हर जगह समान सघनता नहीं है. लेकिन जिस तरह से लोग आप की ओर देख रहे हैं, भाजपा आगे होते हुए भी इस नये फैक्टर को अनदेखा नहीं कर सकती. शहरीकरण के प्रसार को मोदी की कामयाबी से जोड़ा जा रहा था. इसमें एक और नया दावेदार आ गया है. दिल्ली की सात सीटों के अलावा आसपास की कुछ सीटों पर आप की मौजूदगी दस-बीस तो हो ही जाती है. क्या भाजपा ऐसी 15 सीटों को अनदेखा करने का जोखिम उठा सकती है? अगर गडकरी केजरीवाल पर हमला करते हैं, तो इसका आप को ही फायदा होगा.
देखना है मोदी कब तक आप या केजरीवाल को नजरअंदाज करते हैं. मोदी के लिए मिशन 272 के लिए एक-एक सीट जरूरी है. पहले उन्हें वाजपेयी के 186 सीटों का रिकॉर्ड तोड़ना है, फिर मनमोहन से बड़ा नेता (2009 के अनुसार) बनने के लिए 206 से ज्यादा सीटें लानी हैं. इसलिए वास्तविक गणित का वक्त आने से पहले अवधारणात्मक गणित की कॉपी पर काट-पीट और बढ़ जायेगी.