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ऐसे तबादलों में किसका हित?

झारखंड में हाल में बड़े पैमाने पर तबादले हुए. 39 दिनों में 1428 तबादले. यह गुनाह नहीं है. लेकिन, जब बेवजह तबादले हों, नियमों का उल्लंघन हो, तो सवाल उठेंगे ही. फिर जिम्मेवार पद पर बैठे एक मंत्री अगर यह बयान देते हैं कि उन्होंने तबादले में सभी की पैरवी सुनी है, सभी को खुश […]

झारखंड में हाल में बड़े पैमाने पर तबादले हुए. 39 दिनों में 1428 तबादले. यह गुनाह नहीं है. लेकिन, जब बेवजह तबादले हों, नियमों का उल्लंघन हो, तो सवाल उठेंगे ही. फिर जिम्मेवार पद पर बैठे एक मंत्री अगर यह बयान देते हैं कि उन्होंने तबादले में सभी की पैरवी सुनी है, सभी को खुश किया है, तो चिंतित होना स्वाभाविक है. मंत्री स्वीकारते हैं कि चुनाव का वर्ष है. हर व्यक्ति अपनी पसंद का बीडीओ चाहता है. यह बताता है कि कैसे विधायक-मंत्री चुनाव में अपनी जमीन मजबूत करने के लिए अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं. नियमानुसार कोई भी अधिकारी, किसी विधायक या मंत्री का आदमी नहीं होता. वह तो अपने फर्ज से बंधा होता है. लेकिन ऐसा होता नहीं है. ऐसे बयानों से राजनीतिज्ञों और अधिकारियों की सांठगांठ की पुष्टि होती है. विधायक-मंत्री चाहते हैं कि अधिकारियों की मनचाही पोस्टिंग करायी जाये, ताकि अपना काम कराने में उन्हें मदद मिले. सामान्य परिस्थिति में तीन साल से पहले तबादला नहीं किया जाता है. लेकिन झारखंड में छह-छह माह में तबादले कर दिये गये. ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी? अगर अधिकारी अक्षम थे, तो उन्हें दंडित किया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं होता. एक अधिकारी का तबादला पहले हुआ. वह नयी जगह पर नहीं गये. हुआ क्या? उस अधिकारी का फिर वहीं तबादला किया गया, जहां वे पहले थे. मनमुताबिक तबादला हुआ तो जायेंगे, वरना नहीं जायेंगे, कौन क्या बिगाड़ लेगा, अगर यह प्रवृति अधिकारियों की है तो राज्य पटरी पर नहीं आनेवाला. ऐसे अधिकारी अपने बल पर नहीं, अपने राजनीतिक आकाओं के बल पर उछलते हैं. जवाब तो मंत्रियों को देना चाहिए कि उनके विभाग में आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि छह-छह माह में तबादले किये गये या फिर 10-10 साल से एक ही जगह बैठे अधिकारी नहीं बदले गये. ईमानदार, कर्मठ अधिकारी दूरदराज के इलाके में पड़े रहते हैं, क्योंकि उनकी पैरवी करनेवाला कोई नहीं होता. तबादला उद्योग पर अंकुश नहीं लगा तो राज्य का भला नहीं होगा. जोअधिकारी पैसा देकर पोस्टिंग कराते हैं, वह पैसा अपने घर से नहीं देते, जनता से ही किसी न किसी रूप में वसूलते हैं. यह भी भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण है.

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