सत्ता हाथ से फिसल जाने का सन्नाटा

।। विश्वत सेन ।। प्रभात खबर, रांची पीपल के पेड़ के नीचे मजमा लगा है. दस-बीस आदमी पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठे हैं और पचास-सौ आदमी गोल घेरा बना कर खड़े हैं. भीड़ में सन्नाटा है. ‘जिस देश में गंगा रहता है’ वाला सन्नाटा नहीं, ‘शोले’ वाला सन्नाटा. चुनाव हो गया है. बदरू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 6, 2014 5:43 AM

।। विश्वत सेन ।।

प्रभात खबर, रांची

पीपल के पेड़ के नीचे मजमा लगा है. दस-बीस आदमी पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठे हैं और पचास-सौ आदमी गोल घेरा बना कर खड़े हैं. भीड़ में सन्नाटा है. ‘जिस देश में गंगा रहता है’ वाला सन्नाटा नहीं, ‘शोले’ वाला सन्नाटा. चुनाव हो गया है. बदरू नेता बनके उभरे हैं, मगर उनके पास बहुमत नहीं है.

बदरू साफ-सुथरी छविवालों को सरकार में शामिल करना चाहते हैं. वे समर्थन के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाने पर अड़े हैं. गांधीजी और जय प्रकाश नारायण के विचारोंवाली सरकार लाना चाहते हैं. उनका मानना है कि इसके हिमायती उनकी शर्तो को मानते हुए खुद ही आगे आयें.

कोई उनकी शर्तो को मानता है, तो ठीक और यदि नहीं मानता है, तो भी ठीक. जो दिलेर होगा वह आगे जरूर आयेगा, पर दोबारा चुनाव नहीं होगा. बदरू नया-नया नेता बने हैं.

इसके पहले नत्था कई सालों तक सरकार में थे. उनके पास शासन चलाने का तजुर्बा है. वह कुछ अपनी शर्तो के साथ समर्थन भी देना चाहते हैं, मगर हरिया टांग अड़ा रहा है. नत्था के पहले हरिया भी सत्ता का मजा चख चुका है. बगुले की तरह चुपचाप दोबारा चुनाव कराने की फिराक में है.

वैसे भी उसे सरकार बनाने के लिए सिर्फ तीन सदस्यों की दरकार है, पर यदि चुनाव होगा, तो बिल्ली के भाग्य से छीका टूटेगा. इस चुनाव में नत्था का सूपड़ा साफ हो गया है. उसके कुछ ही सदस्य झोला-झंडा के साथ जीत हासिल किये हैं, वह भी किसी काम के नहीं.

हरिया को मलाल है कि वह सबसे अधिक सदस्यों का नेता बन कर उभरा है, मगर सरकार बना रहा है दूसरे नंबरवाला. यह बात पच नहीं रही. समय का चक्र घूम रहा है. आज सरकार बचाने और गिराने की बारी है. समर्थन देने और पाने की तैयारी है. पीपल के पेड़ के नीचे लगे मजमे में सन्नाटा है.

लोग नतीजा जानने के लिए उत्सुक हैं. असहाय बदरू अपना मंतव्य जनता-जनार्दन के बीच रख चुके हैं. कह चुके हैं कि जिसे समर्थन देना हो, वह हमारी शर्तो पर साथ आये. बदरू के बाद हरिया ने विपक्षी प्रहार शुरू किया. एक घंटे के भाषण में स्थानीय मुद्दों के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों की चर्चा के साथ पीएम पद के प्रत्याशी की स्तुति की. उसका भाषण खत्म होने के बाद अब नत्था की बारी.

नत्था ने बड़े भाई की भूमिका निभाते हुए बदरू की शर्तो में अपनी शर्त जोड़ कर जोरदार तरीके से समर्थन का एलान किया. साथ ही, नसीहतदी कि भ्रष्टाचारमुक्त, स्वच्छ सरकार के लिए बदरू किसी के बहकावे में न आयें. उसे सत्ता का अनुभव है. वह जानता है कि अफसर कैसे बहकाते हैं.

समर्थन मिलते ही बदरू गदगदा गये. जी तो चाहा कि नत्थ को गले लगायें, मगर राजनीतिक मजबूरी ने रोक दिया. बहुमत साबित होते ही बगुला भगत बने बैठे हरिया के दल में गहरा सन्नाटा छा गया. सत्ता के बिना उपजे खालीपन और नीरसता का सन्नाटा.

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