स्कूलों का कायाकल्प

सरकारी स्कूलों की पढ़ाई के बारे में सोचिए, तो मन में दो बातें उभरती हैं. एक तो यह कि इनमें पढ़ाई गुणवत्ता के लिहाज से कमतर है और दूसरी यह कि शिक्षा के अधिकार कानून को साकार करने की असली जमीन होने के बावजूद ये सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं. सवाल चाहे उम्र और कक्षा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 12, 2016 7:47 AM
सरकारी स्कूलों की पढ़ाई के बारे में सोचिए, तो मन में दो बातें उभरती हैं. एक तो यह कि इनमें पढ़ाई गुणवत्ता के लिहाज से कमतर है और दूसरी यह कि शिक्षा के अधिकार कानून को साकार करने की असली जमीन होने के बावजूद ये सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं.
सवाल चाहे उम्र और कक्षा के हिसाब से बच्चे की शैक्षिक परिलब्धि का हो या फिर बीच में पढ़ाई छोड़ देने का, किसी भी कसौटी पर सरकारी स्कूलों की छवि मन में संतोष का भाव नहीं जगाती. ऐसे में वक्त का तकाजा तो यही है कि इन स्कूलों की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए कुछ ठोस कदम देशस्तर पर उठाये जायें, लेकिन सरकारी हलके में कोई गंभीर चर्चा शायद ही सुनाई देती है.
चिंतित विद्वान बताते रहे हैं कि लोग सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ रहे हैं, अपने रोजमर्रा के खर्चों में कटौती करके भी बच्चे को प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे हैं, शिक्षा के अधिकार कानून का सरकारी स्कूलों में उल्लंघन हो रहा है, लेकिन सुधार का कोई कारगर संकल्प शायद ही दिखता है. ऐसे वक्त में दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री का यह कहना कि वे दिल्ली के सरकारी स्कूलों को पढ़ाई और लोगों में स्वीकार्यता के लिहाज से प्राइवेट स्कूलों के स्तर तक लाना चाहते हैं, सुखद भी है और आश्चर्यजनक भी.
सुखद इसलिए कि खुद सरकार की ओर से सुधार का इरादा जताया जा रहा है. आश्चर्यजनक इसलिए कि यह आवाज सिर्फ दिल्ली में उठी है, जबकि सरकारी शिक्षा पूरे देश में खस्ताहाल है. धन, जाति, लिंग, भाषा आदि की तरह ही शिक्षा भी भारतीय समाज में असमानता पैदा करने का प्रमुख औजार है. पर, आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर अग्रसर अपना देश शैक्षिक अवसरों की असमानता पैदा करने के मामले में एकदम अनूठा है.
पिछले साल इसी बात का संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा था कि आला-अदना कोई भी हो, सबको अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि दिल्ली सरकार ने स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए अधिक बजट आवंटन के जरिये जो राह दिखाई है, शेष राज्य भी उस पर गौर करेंगे और शैक्षिक अवसरों की समानता का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने के प्रयत्न देश भर में शुरू होंगे.

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