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पाक-नीति पर एक खुला खत

पवन के वर्मा पूर्व प्रशासक एवं राज्यसभा सदस्य आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी, मैं आपको यह खुला खत अत्यंत विनम्रता तथा सम्मान के साथ लिख रहा हूं. यदि आपने इसे पढ़ा, तो मैं अत्यंत आभारी रहूंगा. मेरा उद्देश्य आपसे बस इतना ही समझना है कि हमारी पाकिस्तान नीति क्या है और क्या यह हमारे राष्ट्रीय […]

पवन के वर्मा
पूर्व प्रशासक एवं राज्यसभा सदस्य
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी,
मैं आपको यह खुला खत अत्यंत विनम्रता तथा सम्मान के साथ लिख रहा हूं. यदि आपने इसे पढ़ा, तो मैं अत्यंत आभारी रहूंगा. मेरा उद्देश्य आपसे बस इतना ही समझना है कि हमारी पाकिस्तान नीति क्या है और क्या यह हमारे राष्ट्रीय हित की रक्षा करते हुए उसे आगे बढ़ा रही है?
अपने चुनाव अभियान के दौरान पाकिस्तान के संबंध में की गयी अपनी कटु टिप्पणियों को दरकिनार कर मई, 2014 में प्रधानमंत्री मनोनीत होने के बाद नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाने के निश्चय पर मैं आपको बधाई देने से शुरुआत करता हूं.
चुनाव प्रचार के दौर में आपने पाक के प्रति यूपीए सरकार की नीति को ‘नरम’ बताते हुए उसकी कड़ी आलोचना की और कहा कि आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकती. लेकिन, फिर आपने मुंबई पर आतंकी हमले के गुनाहगारों को इंसाफ की जद में लाये बिना ही पाक के साथ मेल-मिलाप करने का फैसला किया.
जल्दी ही आपको यह भान हो गया कि वास्तविक दुनिया का सच कुछ और ही होता है. पाक प्रायोजित आतंकी हमले और युद्धविराम के उल्लंघन जारी रहे. इसके बावजूद, अचानक आपकी सरकार ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता बहाल करने का निर्णय लिया. अभी इसके निहितार्थ समझे भी नहीं गये थे, कि पाक उच्चायुक्त द्वारा हुर्रियत नेताओं से मिलने को एक बड़ा मुद्दा बना कर यह वार्ता स्थगित भी कर दी गयी.
एक ओर जहां विस्फोटक आक्रमण के साथ तुष्टिजनक चालों की पाक-नीति में एक उल्लेखनीय निरंतरता बनी रही, हमारी रणनीति लगातार ‘झप्पी’ से ‘कट्टी’ के बीच झूलती रही. जून 2015 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराजजी ने कहा कि जब तक मुंबई हमले के सरगना जकीउर्रहमान लखवी को कठघरे में नहीं लाया जाता, तब तक पाकिस्तान के साथ वार्ता का प्रश्न ही नहीं उठता. मगर दूसरे ही दिन उफा शिखर सम्मेलन के मौके पर शरीफ से आपकी मुलाकात हुई.
अगस्त महीने में राष्ट्रीय सुरक्षा सचिव स्तर की बातचीत स्थगित कर दी गयी, मगर फिर एक गोपनीय तरीके से बैंकॉक में उसे अंजाम दे दिया गया, हालांकि इनके एजेंडे और नतीजे से देश अनजान ही बना रहा.
दिसंबर, 2015 में काबुल से दिल्ली लौटते हुए नवाज शरीफ के जन्मदिन के अवसर पर लाहौर में रुकने के आपके अचानक नाटकीय फैसले को लेकर हमें यह उम्मीद थी की यह साहसिक कदम किसी रणनीतिक योजना का एक अहम हिस्सा होगा. यदि यह वैसा था भी, तो वह एक रहस्य ही बना रहा. पर इसके ठीक बाद पठानकोट का आतंकी हमला हुआ. पाकिस्तान के अंदरूनी सत्ता केंद्र से इस तरह का प्रतिघात स्वाभाविक ही था, मगर हमारी तैयारी में भी कहीं खोट तो थी ही!
उसके बाद जो हुआ, उसने हमें एकदम भ्रमित कर दिया. आपने पाकिस्तान से आइएसआइ के प्रतिनिधि समेत अन्य अधिकारियों की एक टीम को पठानकोट एयरबेस पर जाकर इस हमले में पाक-तत्वों की संलिप्तता के सबूत तलाशने की अनुमति दे दी. मोदीजी, क्या हमने यह उम्मीद बांध रखी थी कि पाक जांच टीम उस घटना में पाकिस्तान की मिलीभगत घोषित कर देगी?
क्या मुंबई हमले के अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई में अकाट्य सबूतों को पेश करने के बावजूद पाक के पूरे असहयोग से हम वाकिफ नहीं थे? तो फिर सरजी, पाकिस्तान को लेकर हमारी रणनीति में क्यों ऐसी मासूमियत होती रही?
जैसी अपेक्षा थी, पाक टीम ने इसलामाबाद पहुंच कर पाक को किसी भी संलिप्तता से बरी घोषित कर दिया.
हमले के सूत्रधार मौलाना मसूद अजहर को न तो गिरफ्तार किया गया है, न कोई पूछताछ हुई है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ साबरमती तट पर आपके सद्भावपूर्ण झूले के बाद भी अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में नामजद कराने के हमारे प्रयासों में चीन ने अड़ंगा लगा दिया है. आपके अच्छे मित्र बराक ओबामा ने पाक पर इसलिए कोई प्रभावी दबाव नहीं डाला कि वह आतंकी गतिविधियों से बाज आये.
इस बीच, पाकिस्तान विश्व बिरादरी से यह कहता फिर रहा है कि वह आतंकवाद के मसले पर भारत के साथ पूरा सहयोग कर रहा है और इसकी तस्दीक खुद भारत भी करेगा! दिल्ली में पाक उच्चायुक्त ने साफ कहा कि समग्र द्विपक्षीय वार्ता स्थगित है और संयुक्त जांच दल की प्रक्रिया भी पारस्परिक नहीं है. सर, राष्ट्र यह जानना चाहता है कि आखिर हो क्या रहा है? मुझे यकीन है कि आपके पास इसका उत्तर है और मुझे उसे आपसे सुनने की आशा है.
आपके प्रति गहरे सम्मान के साथ. भवदीय, पवन के वर्मा.

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