यह ‘आधार’ अभी कमजोर है
अनुपम त्रिवेदी राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक पिछले महीने सरकार द्वारा आधार बिल को संवैधानिक वैधता प्रदान करने के लिए ‘धन विधेयक’ के रूप में लोकसभा में पारित कराया गया. ज्ञातव्य है कि यह वही बिल है, जिसे विधायी समर्थन प्रदान करने की कोशिश 2010 में यूपीए द्वारा की गयी थी और जिसका भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की […]
अनुपम त्रिवेदी
राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक
पिछले महीने सरकार द्वारा आधार बिल को संवैधानिक वैधता प्रदान करने के लिए ‘धन विधेयक’ के रूप में लोकसभा में पारित कराया गया. ज्ञातव्य है कि यह वही बिल है, जिसे विधायी समर्थन प्रदान करने की कोशिश 2010 में यूपीए द्वारा की गयी थी और जिसका भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली वित्त मामलों संबंधी संसद की स्थायी समिति ने 2012 में पुरजोर विरोध किया था और इसे अस्वीकार्य माना था. राजनीति का खेल अजब है. अब इसी बिल का विरोध यूपीए ने किया और राजग सरकार, जो विपक्ष के रूप में इसके विरोध में थी, ने अब इसे पास कराया.
आम धारणा के विपरीत नागरिक पहचान-पत्र की परिकल्पना यूपीए के नहीं, बल्कि एनडीए के पहले कार्यकाल में की गयी थी, जब अटल जी की सरकार ने कारगिल युद्ध के पश्चात सुरक्षा कारणों के मद्देनजर सभी नागरिकों के लिए एक बहु-उद्देशीय राष्ट्रीय पहचान पत्र (एमएनआइसी) का विचार रखा.
2009 में यूपीए सरकार ने एमएनआइसी की जगह इसे सरकार की विकास योजनाओं के बेहतर निस्तारण के लिए ‘आधार’ नाम दिया और राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण (यूआइडी) की स्थापना की. सुरक्षा पहलू कहीं पीछे चला गया.
आज भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार इसको सार्वजनिक सेवा वितरण प्रणाली की सभी बीमारियों के लिए एक रामबाण के रूप में पेश कर रही है. मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी जनधन-आधार-मुद्रा त्रिमूर्ति का एक अब यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके सहारे वंचितों और जरूरतमंदों तक सरकारी लाभ पहुंचाने की सदिच्छा है.
आमजन के हित को ध्यान में रख कर किया गया यह प्रयास प्रशंसनीय है, पर वहीं दूसरी ओर जानकार इतनी बड़ी योजना की व्यावहारिकता को लेकर चिंतित हैं. अभी पिछले सप्ताह ही ‘आधार कार्ड’ ने 100 करोड़ पंजीकरण के विशालकाय लक्ष्य को प्राप्त किया है.
क्या इस परियोजना के तकनीकी बुनियादी ढांचे में लंबे समय तक इतने बड़े पैमाने पर इस अथाह डेटा के भंडारण, नेटवर्किंग और सत्यापन के बोझ को सहने की क्षमता है? प्रश्न यह भी है कि लीकेज और गलत पहचान की समस्या को दूर करने में यह कितना प्रभावी होगा? गोपनीयता और सुरक्षा पहलुओं से कैसे निपटा जायेगा और डेटा की चोरी और दुरुपयोग की संभावनाओं को कैसे खत्म किया जायेगा? इन प्रश्नों के उत्तर में सरकार कहती है कि ‘आधार कार्ड’ अनिवार्य नहीं है, पर तथ्य यह है कि हर सरकारी योजना को आधार से जोड़ा जा रहा है. वह समय दूर नहीं जब बैंक खाता खुलवाने से लेकर, स्कूल में प्रवेश तक सब के लिए ‘आधार’ अनिवार्य हो जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से इस अनिवार्यता पर सफाई मांगी है.
‘अनिवार्यता’ से क्या नुकसान हो सकता है, इसकी बानगी अभी ही देखने को मिल रही है. देश के कई शहरों में समाज कल्याण विभाग की ओर से दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं, जिनके अनुसार जिन वृद्ध और विकलांग पेंशन धारकों ने 31 मार्च तक आधार कार्ड लिंक नहीं कराया, उनकी पेंशन रोक दी जायेगी.
पेंशन वितरण में अनियमितताओं पर नकेल कसने के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता इन लाभार्थियों के लिए परेशानी का सबब बन गयी है. कई ऐसे बुजुर्ग हैं, जो चलने में असमर्थ हैं, तो कई ऐसे दिव्यांग हैं जो बिस्तर पर हैं. उनका एकमात्र सहारा समाज कल्याण विभाग से मिलनेवाली पेंशन है. ऐसे में जिनके आधार कार्ड नहीं बन सकते, वे क्या करें?
‘आधार’ के लिए बॉयोमीट्रिक्स अनिवार्य है अर्थात् विशेष पहचान के लिए हर व्यक्ति की उंगलियों ओर आंखों की पुतली का स्कैन (आइरिस स्कैन). एक आंकड़े के अनुसार, देश में आठ करोड़ लोग अंधेपन, मोतियाबिंद और क्षतिग्रस्त कार्निया की समस्या से पीड़ित हैं. कैसे आइरिस स्कैन इनके लिए काम करेगा? वहीं उंगलियों के निशान के प्रमाणीकरण और वैधता पर भी संदेह है.
हमारे यहां कठिन शारीरिक श्रम करनेवालों या कृषि के क्षेत्र में कार्य करनेवाले खेतिहर मजदूरों की बड़ी संख्या है, जिनकी उंगलियों की रेखाएं या तो मिट गयी हैं या क्षतिग्रस्त होगयी हैं. हजारों ऐसे भी हैं, जिनके हाथ ही नहीं है. सवाल उठता है कि उंगलियों के ये आधे-अधूरे निशान कैसे प्रामाणिक होंगे?
अभी तक भारत में 15 तरीके के पहचान पत्र काम में लाये जाते हैं, पर आधार के मार्फत सभी भारतीयों की जानकारी का पूरा डेटाबेस एक जगह सिमट जायेगा. इससे न केवल इसके अवांछनीय और व्यावसायिक दुरुपयोग की संभावना बढ़ जायेगी, बल्कि बड़ा डर यह है कुछ राजनीतिक दल और सरकारें संप्रदाय, समूह या धर्म के आधार पर मतदाताओं के वर्गीकरण के लिए इन आंकड़ों का दुरुपयोग कर सकती हैं.
सरकार पुरजोर तरीके से लोगों की गोपनीयता की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होने की बात कर रही है, पर यह कैसे होगा इस पर अभी भी संदेह है. हमारा फोन नंबर जहां मार्केटिंग कंपनियों से नहीं बच पाता है, वहां ‘आधार कार्ड’ का डाटा कैसे बचेगा?
दुनिया के अन्य देशों में इस प्रकार के कार्ड को नाकारा जा चुका है. ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, न्यूजीलैंड और फिलीपींस ने यह योजना शुरू करने के बाद नागरिकों के भारी विरोध के चलते वापस ले ली. चीन ने साल 2000 में बॉयोमिट्रिक जानकारी के साथ-साथ राष्ट्रीय पहचान कार्ड को लागू करने की घोषणा की थी, पर बायोमिट्रिक प्रौद्योगिकी की विफलताओं की संभावना को देखते हुए 2006 में इसे वापस ले लिया.
नि:संदेह भारत सरकार की विशिष्ट पहचान संख्या परियोजना के पीछे का विचार उत्तम है और इसका उद्देश्य सकारात्मक. इससे सरकारी योजनाओं की दक्षता बढ़ाने और हर गरीब, जरूरतमंद तक पहुंचने के प्रयास का विरोध हो ही नहीं सकता. लेकिन, लोगों की वैयक्तिक स्वतंत्रता का हनन भी स्वीकार्य नहीं हो सकता.
अच्छा होगा यदि इस परियोजना को पूर्णता से लागू करने से पहले सरकार इसके सभी पहलुओं पर पुनः गंभीरतापूर्वक विचार करे. जिस ‘आधार’ को आधार बना कर सरकार नागरिकों के कल्याण का स्वप्न देख रही है, वह सवालों से घिरा हुआ है और उसकी सफलता पर संदेह है. ऐसे में कहना होगा कि यह आधार अभी कमजोर है.