केंद्र-राज्य तालमेल जरूरी
आर्थिक रूप से ताकतवर विकसित दुनिया के देश भारतीय अर्थव्यवस्था में उठान के लक्षण देख रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाएं कह रही हैं कि भारत की आर्थिक-वृद्धि दर इस साल साढ़े सात प्रतिशत से कम नहीं होगी. पड़ोसी चीन ही नहीं दूर-दराज के अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों की […]
आर्थिक रूप से ताकतवर विकसित दुनिया के देश भारतीय अर्थव्यवस्था में उठान के लक्षण देख रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाएं कह रही हैं कि भारत की आर्थिक-वृद्धि दर इस साल साढ़े सात प्रतिशत से कम नहीं होगी.
पड़ोसी चीन ही नहीं दूर-दराज के अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों की आर्थिक-वृद्धि दर को देखते हुए सचमुच भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति सुखद और संतोषप्रद कही जायेगी. अगर शुभ संकेतों के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली यह कह रहे हैं कि विश्व व्यवस्था की हालत खराब है और चूंकि दुनिया के देशों का जोर अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने पर लगा है, इसलिए भारत के सामने एक रास्ता यही बचता है कि वह विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान दे, तो उनकी बात हैरतअंगेज चाहे जितनी लगे, उसे एक चेतावनी के रूप में सुना जाना चाहिए और सीख ली जानी चाहिए.
दो बार के सूखे ने खेती की कमर तोड़ दी है. रोजगार के लिए खेती-किसानी के भरोसे रहनेवाले कम-से-कम 24 करोड़ लोगों के सामने जीविका का संकट है. खेती-किसानी पर संकट का असर शहर के बाजारों पर भी पड़ता है. खरीद कम हो जाती है, चीजों की मांग घट जाती है, सो नौकरियां भी कमतर हो जाती हैं. अचरज नहीं कि हाल में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने अपने एक सर्वेक्षण के हवाले से कहा है कि साल की पहली तिमाही में शहरी बेरोजगारी 9.99 प्रतिशत है, तो ग्रामीण बेरोजगारी की दर 8.05 प्रतिशत.
जहां तक विदेशी निवेश के सहारे उत्पादन और बाजार की रौनक बनाये रखने की बात है, तो इस मोर्चे पर भी बाधाएं कम नहीं हैं. 2014 में भारत में प्रति व्यक्ति प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 183 अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि चीन में 1531 अमेरिकी डॉलर.
2015 में यह निवेश कुछ बढ़ा, तो भी चीन से कोई तुलना नहीं हो सकती. और फिर विदेशी निवेश पर भी आस कैसे टिकायीजाये, जब दुनियाभर में उत्पाद की खरीदारी और बैंक-व्यवस्था चरमराहट के संकेत दे रही हो. वक्त की मांग है कि केंद्र और राज्य पूरे तालमेल से काम करें, ताकि लोगों को रोजगार के अवसर समान रूप से हासिल हों, महंगाई रुके और खेती का संकट का कुछ स्थायी हल निकले.