पर्यावरण को प्राथमिकता
चैत का सूरज बैसाख-जेठ की तरह तप रहा है, मौसम विज्ञानी कह रहे हैं कि 2016 का साल गरमी के सारे रिकाॅर्ड तोड़ेगा. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के मोरचे से दो उत्साहजनक संदेश आये हैं. एक तो मंत्रिमंडल ने पेरिस जलवायु समझौते पर अमल को मंजूरी दे दी है, साथ ही क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष विधेयक […]
चैत का सूरज बैसाख-जेठ की तरह तप रहा है, मौसम विज्ञानी कह रहे हैं कि 2016 का साल गरमी के सारे रिकाॅर्ड तोड़ेगा. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के मोरचे से दो उत्साहजनक संदेश आये हैं. एक तो मंत्रिमंडल ने पेरिस जलवायु समझौते पर अमल को मंजूरी दे दी है, साथ ही क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष विधेयक 2015 को भी हरी झंडी मिल गयी है.
जहां पेरिस जलवायु समझौते का उद्देश्य एक वैश्विक कार्ययोजना पर अमल के जरिये दुनिया के तापमान को आगे और किसी भी सूरत में दो डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा ना बढ़ने देने का है, वहीं वनीकरण कोष विधेयक के प्रभावी होने पर 40,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जंगलाें को बढ़ाने और वृक्षारोपण की दिशा में पारदर्शिता और अपेक्षित तेजी से खर्च की जा सकेगी.
एक तरह से देखें, तो वैश्विक तापमान को कम रखने की कार्ययोजना और वनीकरण कोष विधेयक एक-दूसरे के पूरक हैं. मौसम के मिजाज में आया बदलाव बार-बार संकेत दे रहा है कि धरती के प्राकृतिक संसाधन ना बचाये गये, तो धरती पर मौजूद जीवन को बचाना लगातार दुष्कर होता जायेगा. पूरी दुनिया मौसम के गर्म होते मिजाज को सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान आदि प्राकृतिक आपदा के रूप में झेल रही है और इससे बचने के उपाय सोच रही है.
मार्च में अमेरिकी संस्था नासा के हवाले से एक खबर आयी कि फरवरी का महीना बीते सौ सालों का सबसे गर्म महीना रहा है. ब्रिटेन के मौसम विज्ञान विभाग से संबंधित आंकड़ों में बताया गया था कि 2015 में औसत तापमान 1961 से लेकर 1990 के बीच मौजूद वैश्विक तापमान के औसत से 0.75 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा था. साल 2016 से संबंधित नासा के नये आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मात्र एक महीने के अंतराल में औसत वैश्विक तापमान में 0.20 सेंटीग्रेड की वृद्धि हुई और सन् 1980 के दशक की तुलना में यह वृद्धि 1.35 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा है.
यह विश्व भर के नीति-निर्माताओं के लिए भी अत्यंत चुनौतीपूर्ण और चिंताजनक है. पिछले साल दिसंबर में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आयोजित पेरिस सम्मेलन में राय बनी थी कि वैश्विक तापमान को किसी भी सूरत में आगे 2 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जा सकता.
सहमति बनी कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में दुनिया के सारे देश इस सीमा तक कटौती करें कि तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड की सीमा न पार कर सके. सहमति के अनुकूल पृथ्वी दिवस पर भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दो महत्वपूर्ण कदम उठा कर अपनी तरफ से पूरी दुनिया को एक सकारात्मक संदेश दिया है.