महंगा होगा पानी
शुद्ध हवा की तरह पानी की उपलब्धता और इसके उपभोग को अधिकारों की श्रेणी में रखा जाता है. लेकिन जल-संकट गहराने और मांग में लगातार वृद्धि के कारण पानी की कीमतों में व्यापक बढ़ोतरी के आसार हैं. जिन क्षेत्रों में सूखे की स्थिति है, वहां लोग महंगा पानी खरीदने के लिए विवश हैं. शहरों में […]
शहरों में लोगों को उत्तरोत्तर बोतलबंद पानी पर निर्भर होना पड़ रहा है. दुनिया की करीब 16 फीसदी आबादी भारत में बसती है, परंतु कुल वैश्विक जल-संसाधन का मात्र चार फीसदी ही हमारे हिस्से में है. महज 18 फीसदी ग्रामीण आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध है. दो-तिहाई घरों में नल से पानी की आपूर्ति की सुविधा नहीं है. विश्व बैंक के आकलन के अनुसार भारत में 21 फीसदी संक्रामक बीमारियां दूषित पानी के कारण होती हैं. देश में हर दिन 16 सौ लोग डायरिया से मर जाते हैं. कमजोर मॉनसून और भू-जल के घटते स्तर के कारण खेती, बिजली उत्पादन और पीने के पानी का भयानक संकट है. एक अध्ययन के मुताबिक, मौजूदा समय में देश में पानी की औसतन प्रति व्यक्ति उपलब्धता करीब 1400 क्यूबिक मीटर है, जो कि 1951 में 5200 क्यूबिक मीटर थी. आगामी दो-तीन दशकों में यह आंकड़ा 1000 क्यूबिक मीटर से भी नीचे जा सकता है. ग्रामीण क्षेत्रों में 3.70 करोड़ परिवार ऐसे हैं जिन्हें आधे किलोमीटर से अधिक दूर से पानी लाना पड़ता है और यह सामान्य स्थिति में सर्वेक्षित आंकड़ा है. बड़े शहरों में दूर-दराज के बांधों से भी पानी की आपूर्ति की जाती है, फिर भी गरीब शहरी आबादी को बमुश्किल पानी उपलब्ध हो पाता है.
पानी की कमी के कारण खाद्य पदार्थों और बिजली की कीमत पर भी असर पड़ता है. ऐसे में यह मांग भी की जा रही है कि अधिक पानी का उपयोग करनेवाले फसलों को महंगे दर पर पानी दिया जाये. इसी तरह से पानी के संरक्षण और वितरण में निजी निवेश और उपक्रमों का सहारा लिया जा रहा है.
यदि जल-प्रबंधन के दीर्घकालिक प्रयास नहीं किये गये, तो इन उपायों से जल-संकट का समाधान नहीं हो सकता है, बल्कि लोगों को महंगी दरों पर पानी खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. बेहतर मॉनसून सूखे से निजात दिला सकता है और बरबाद होती खेती को सहारा दे सकता है, पर जल के उपयोग और उपभोग के तौर-तरीकों में बदलाव के बगैर पानी की किल्लत का ठोस समाधान मुमकिन नहीं है.