अखरती है नामवर की चुप्पी

नामवर पहले भारतीय आलोचक-संपादक हैं, जिन्होंने चौथे आम चुनाव के तुरंत बाद भारत में ‘जनतंत्र के विकास की संभावनाओं के साथ फासिस्ट तानाशाही के खतरे’ की संभावना प्रकट की थी. चौथा लोकसभा चुनाव 17 से 21 फरवरी, 1967 तक संपन्न हुआ. ‘चुनाव के बाद का भारत’ पर ‘आलोचना’ पत्रिका ने एक ‘संवाद’ आयोजित किया था. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 25, 2016 1:48 AM
नामवर पहले भारतीय आलोचक-संपादक हैं, जिन्होंने चौथे आम चुनाव के तुरंत बाद भारत में ‘जनतंत्र के विकास की संभावनाओं के साथ फासिस्ट तानाशाही के खतरे’ की संभावना प्रकट की थी. चौथा लोकसभा चुनाव 17 से 21 फरवरी, 1967 तक संपन्न हुआ. ‘चुनाव के बाद का भारत’ पर ‘आलोचना’ पत्रिका ने एक ‘संवाद’ आयोजित किया था. इस चुनाव में दक्षिणपंथी दल संसद में दूसरे-तीसरे स्थान पर थे. जिस स्वतंत्र पार्टी की स्थापना सी राजगोपालाचारी ने 4 जून 1959 को की थी, वह इस चुनाव में 8.67 प्रतिशत मत प्राप्त कर 4-4 सांसदों के साथ संसद में दूसरे स्थान पर थी.

पहले लोकसभा चुनाव के पहले, गुरु गोलवलकर से परामर्श के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्तूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी. पहले तीन लोकसभा चुनावों में उसके सांसदों की संख्या 3,4,14 थी, जो चाैथे चुनाव में बढ़ कर 35 हो गयी. भारतीय जनसंघ तीसरा प्रमुख दल था. तब नामवर ने लिखा था- ‘भारतीय जनमत की इस अप्रत्याशित अभिव्यक्ति के नितांत उदासीन मस्तिष्क को भी झकझोर कर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है… स्वतंत्र-जनसंघ आदि की बहुसंख्यक जीत और राजाओं-जागीरदारों के राजनीति में एकबारगी प्रवेश से खतरा पैदा हुआ है.’ दो वर्ष बाद ही 1969 में यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवानिया प्रेस से क्रेग वैबस्टर की पुस्तक प्रकाशित हुई- ‘दि जनसंघ : ए बायोग्राफी ऑफ ऐन इंडियन पाॅलिटिकल पार्टी’.

सातवें लोकसभा चुनाव के बाद छह अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ. आडवाणी-जोशी के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद 12वीं-13वीं लोकसभा में इसके सांसदों की संख्या 182 हो गयी. 1996 में 13 दिन प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी बाजपेयी बाद में 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक प्रधानमंत्री रहे. ‘आलोचना’ का सहस्त्राब्दी अंक 1 (अप्रैल-जून 2000) ‘फासीवाद और संस्कृति का संकट’ पर केंद्रित था. नामवर ने लिखा था- ‘हिंदू फासीवाद की जो ताकतें अभी तक हाशिये पर थीं, सत्ता के केंद्र पर काबिज हो गयीं.’

संघ परिवार का ‘एकमात्र लक्ष्य’ ‘हिंदू राज और हिंदू पद-पादशाही की स्थापना’ माना. 29 मई 2000 की रात जेएनयू में घटी घटना की चर्चा की और यह सवाल किया- ‘यदि एक विश्वविद्यालय की संस्कृति रणांगण बनती है, तो उसके लिए जिम्मेवार कौन है?’ नामवर ने उस समय ‘हिंदू फासीवाद की ताकत’ को कम न समझने की बात कही थी. यह भी लिखा था- ‘किसी प्रकार का विरोध देशद्रोह कहलायेगा. देशभक्ति की ऐसी हवा चलेगी कि अल्पसंख्यक अपने आप काबू में रहेंगे.’ नामवर ने ‘हिंदुत्ववादी संघ परिवार के मुसोलिनी और हिटलर की पार्टियों से सीधे संपर्क’ की याद दिलायी.

चौदह वर्ष बाद सारा दृश्य बदल गया. सोलहवें लोकसभा चुनाव में भाजपा 282 सीट प्राप्त कर पूर्ण बहुमत में आ गयी. यह एक अचंभा था. ‘कविता 16 मई के बाद’ मुहिम की शुरुआत रंजीत वर्मा ने की. भाजपा को इस चुनाव में दस हिंदी प्रदेश से 191 सीटें प्राप्त हुई थीं. हिंदी प्रदेश भाजपा और हिंदुत्वावादी संगठनों के गढ़ हैं. पिछले दो वर्ष में अनेक घटनाएं घटीं. असहिष्णुता, आतंक, हत्या के विरोध में 16 भाषाओं के 117 कवियों, लेखकों, नाटककार, मूर्तिकार, इतिहासकार, गायक ने पुरस्कार आदि वापस किये. गुजराती लेखक भरत मेहता ने ‘फासीवादी राजनीति’ का पर्दाफाश किया, असमिया उपन्यासकार होमेन बोरगोहाई ने लगातार बढ़ती फासीवादी प्रवृत्ति को चिह्नित किया, शेखर पाठक ने ‘फासीवादी पद्धतियों’ की बात कही. फासीवाद के खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिरोध अब भी जारी है.

जेएनयू की घटना के विरुद्ध पूरे विश्व के लेखकों, प्रोफेसरों, बुद्धिजीवियों ने एकजुट होकर चिंताएं व्यक्त की. साहित्य सदैव सत्ता के विरुद्ध रहा है. उत्पीड़ितों के साथ, उत्पीड़काें के विरुद्ध. संविधान और लोकतंत्र का भी वह रक्षक है. उसकी आवाज सदैव सुनी जानी चाहिए. फासिस्टों का सैद्धांतिक लेखन सदैव कमजोर रहा है. सोलह वर्ष पहले नामवर ने ‘हिंदू फासीवाद’ की सही पहचान की थी.

फासीवाद तिरंगा में भी ‘राष्ट्रप्रेम’ लपेट कर आ सकता है. नामवर जिस जेएनयू में थे, उसे नक्सलियों-माओवादियों का गढ़ कहा गया. फासीवाद सत्तावादी अधिकार-सर्वाधिकारवादी, एक दलीय, राष्ट्रवादी राजनीतिक विचारधारा है. साहित्य में आलोचक की भूमिका कहीं बड़ी है. आलोचना धर्म का निर्वाह फासीवाद के विरुद्ध खड़ा होकर किया जाना चाहिए. इस समय नामवर की चुप्पी अनेक लोगों को अखर रही है.

रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com

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