शैक्षिक गुणवत्ता और नैतिक मूल्य
भारतीय शिक्षा प्रणाली आजादी के कई दशक बाद भी प्रयोगों के दौर में है. एक ओर जहां शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है. वस्तुतः आज शिक्षा की गुणवत्ता का मानक ही बदल गया है. सफलता की परिभाषा ही बदल गयी है. हमने […]
भारतीय शिक्षा प्रणाली आजादी के कई दशक बाद भी प्रयोगों के दौर में है. एक ओर जहां शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है.
वस्तुतः आज शिक्षा की गुणवत्ता का मानक ही बदल गया है. सफलता की परिभाषा ही बदल गयी है. हमने शिक्षा की गुणवत्ता और अपने बच्चों की सफलता से नैतिक मूल्यों को दूर कर दिया है. आर्थिक उपलब्धियों को अधिक महत्व देने से ‘शिक्षा का बाजारीकरण’ तथा नैतिक मूल्यों की अनदेखी से ‘समाज में अपराधीकरण’ का ग्राफ बढ़ा है. जरूरत है, एक बेहतर संतुलन की, ताकि एक उदार और उन्नत समाज का निर्माण हो सके.
अमरेश कुमार, हंसडीहा, दुमका
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