इन्फ्रास्ट्रक्चर में धांधली रोकिए
केंद्र सरकार द्वारा बुनियादी संरचना में निवेश बढ़ाने के पुरजोर प्रयास किये जा रहे हैं. सरकार द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश को नेशनल इनवेस्टमेंट एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड बनाया गया है. यूएइ ने इस फंड में निवेश करना स्वीकार किया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश की संभावनाओं को आॅस्ट्रेलिया के निवेशकों […]
केंद्र सरकार द्वारा बुनियादी संरचना में निवेश बढ़ाने के पुरजोर प्रयास किये जा रहे हैं. सरकार द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश को नेशनल इनवेस्टमेंट एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड बनाया गया है. यूएइ ने इस फंड में निवेश करना स्वीकार किया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश की संभावनाओं को आॅस्ट्रेलिया के निवेशकों के सामने प्रस्तुत किया है. पिछले महीने अरुण जेटली और अमेरिका के वित्त मंत्री जैकब ल्यू के बीच वार्ता हुई है.
सहमति बनी है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के निवेश के रास्ते में आ रही बाधाओं को मिल कर दूर करने का प्रयास किया जायेगा, जिससे अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश करें. सरकार के इन प्रयासों की सफलता इस बात पर निर्भर है कि भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना निवेशकों के लिए लाभकारी है या नहीं. भारत की इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों का रिकाॅर्ड अच्छा नहीं है. भारतीय बैंकों द्वारा इन्हें दिये गये तमाम लोन खटाई में पड़ गये हैं. ऐसे में भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने का उत्साह नहीं बनता है, जैसे घाटे में चल रही कंपनी में निवेश नहीं किया जाता है. जरूरी है कि कंपनियों के घाटे में जाने के कारणों को दूर किया जाये.
इन्फ्रास्ट्रक्चर के घाटे में जाने का मूल कारण मांग में कमी है. जैसे हाइवे पर ट्रकों की संख्या कम हो, तो टोल की पर्याप्त वसूली नहीं होती है. दूसरा कारण है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर महंगा है. जैसे हाइवे पर टोल रेट कम हो, तो यात्री कार से यात्रा करेगा. टोल रेट ज्यादा हो, तो वह ट्रेन से यात्रा करेगा. इन्फ्रास्ट्रक्चर के महंगा होने का कारण इस क्षेत्र में व्याप्त अकुशलता है. भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों की अकुशलता का कारण भारत सरकार की आतुरता है. कंपनियां मुनाफाखोरी न करें, इसलिए हाइवे का टोल, एयरपोर्ट की एंट्री फीस एवं बिजली के दाम नियामक आयोगों द्वारा निर्धारित किये जाते हैं. आयोग द्वारा कितना मूल्य निर्धारित किया जायेगा, इसकी अनिश्चितता बनी रहती है. जैसे किसी कंपनी ने हाइवे बनाने में निवेश किया. प्राॅफिट के लिए कंपनी ट्रक से 500 रुपये का टोल वसूल करना चाहती है. लेकिन सरकारी नियंत्रक ने टोल का रेट 400 रुपये निर्धारित कर दिया. ऐसे में कंपनी अनायास घाटा खाती है. यही हाल बिजली कंपनियों का है. नियामक आयोग द्वारा उचित दाम न दिये जाने के कारण उत्पादन कंपनियां घाटे में आ जाती हैं. कंपनियों को मूल्य निर्धारण की छूट दी जाये, तो वे मुनाफाखोरी करती हैं. दूसरी ओर नियामक द्वारा मूल्य-निर्धारण में अनिश्चितता बनी रहती है. आयोग ने दाम कम निर्धारित किये तो कंपनी घाटे में आ जाती है.
इसका हल निकाला गया है कि आयोग द्वारा दाम इस प्रकार निर्धारित किये जायें कि कंपनियां लाभ कमा सकें. नियामक आयोग द्वारा मूल्य निर्धारण की दो व्यवस्थाएं हैं. एक व्यवस्था प्रतिस्पर्धा की है. जैसे बंगलुरु और चेन्नई के बीच हाइवे बनाना है. जो कंपनी सबसे कम टोल पर इसे बनाने को तैयार हो, उसे ठेका दिया जाये. लेकिन हर परियोजना के लिए ऐसी प्रतिस्पर्धा सही नहीं होती है. ऐसे में सरकार ने ‘कास्ट प्लस’ का फॉर्मूला निकाला है, यानी कंपनी द्वारा जो निवेश किया जायेगा, उसके अनुसार मूल्य निर्धारित किये जायेंगे. जैसे हाइवे 1,000 करोड़ रुपये में बना, तो टोल 100 रुपया और 2,000 करोड़ में बना, तो टोल 200 रुपये वसूल करने की छूट होगी. यह व्यवस्था कंपनियों के लिए लाभकारी सिद्ध हुई.
लेकिन समस्या दूसरे स्तर पर उत्पन्न हो गयी. कंपनियों ने अपने खातों में फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया. मसलन, किसी विद्युत परियोजना के निर्माण में वास्तविक निवेश 1,000 करोड़ हुआ, लेकिन कंपनी ने निवेश को 2,000 करोड़ दिखा दिया. नियामक आयोग ने 2,000 करोड़ की लागत मान कर बिजली का दाम 8 रुपये प्रति यूनिट कर दिया. कंपनी को भारी मुनाफा हुआ. 4 रुपये के उचित दाम के स्थान पर उसे 8 रुपये का दाम मिला. उपभोक्ता को घाटा लगा. बिजली की मांग कम हो गयी, जिससे कंपनी को फिर भी घाटा लगा.
मूल बात यह है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के द्वारा फर्जी बिल लगा कर सुविधाओं के दाम ऊंचे वसूले जा रहे हैं. इससे मांग कम हो रही है और इन्हें घाटा लग रहा है. देश की इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों द्वारा किये जा रहे फर्जीवाड़े के कारण इन्हें घाटा लग रहा है. इस फर्जीवाड़े पर नियंत्रण किया जाना चाहिए. इनके खातों का बाहरी ऑडिट कराया जाये. फर्जी बिल लगा कर इनसे रकम वसूल की जाये. तदानुसार बिजली, एयरपोर्ट की एंट्री फीस तथा हाइवे के टोल को कम किया जाये. ऐसा करने से भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर की मांग बढ़ेगी और कंपनियां लाभ में आ जायेंगी. तब विदेशी निवेशक स्वयं ही भारत में निवेश को आकर्षित होंगे. तभी हमारे वित्त मंत्री की मंशा फलीभूत होगी.
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
bharatjj@gmail.com