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कोई भी हंगामा तब तक निरर्थक ही रहता है, जब तक कि उसका मकसद साफ न हो. शायद इसीलिए हंगामा खड़ा करनेवाले अकसर गजल सम्राट दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को दोहराते हैं, ‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए’. लेकिन, भ्रष्टाचार अवधारणा इंडेक्स में निचले पायदान […]

कोई भी हंगामा तब तक निरर्थक ही रहता है, जब तक कि उसका मकसद साफ न हो. शायद इसीलिए हंगामा खड़ा करनेवाले अकसर गजल सम्राट दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को दोहराते हैं, ‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए’.
लेकिन, भ्रष्टाचार अवधारणा इंडेक्स में निचले पायदान पर खड़े भारत की यह विडंबना ही है कि यहां घपलों-घोटालों को लेकर हंगामा तो खूब होता है, सूरत कभी नहीं बदलती. अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में रिश्वतखोरी को लेकर संसद के भीतर-बाहर जारी राजनीतिक शोर-शराबे में भी इस सूरत को बदलने की कोशिश नहीं दिख रही है. इटली की एक अदालत के फैसले से यह तो स्पष्ट हो गया है कि 2010 में हुए 3,565 करोड़ डॉलर के इस सौदे में 1.5 करोड़ डॉलर की रिश्वत ली गयी थी. अदालत ने कंपनी के दो पूर्व अधिकारियों को रिश्वत देने, भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग का दोषी पाते हुए जेल भी भेज दिया है.
सौदे के मध्यस्थ ने कोर्ट में कबूल किया है कि दलाली की रकम कोड-वर्ड्स में जारी की गयी थी. लेकिन, फैसले से सामने आये जिन नये तथ्यों का इस्तेमाल इस मामले में सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय की मंथर गति से चल रही जांच को तेज करने में होना चाहिए था, वे आरोप-प्रत्यारोप का सबब बन रहे हैं. रिश्वत लेनेवालों को जल्द-से-जल्द बेनकाब करने की जो स्वाभाविक कोशिशें सत्ता पक्ष की ओर से होती दिखनी चाहिए थी, उसकी मांग कांग्रेसी नेताओं की ओर से हो रही है, जिनके सत्ता में रहते यह रिश्वत ली गयी थी.
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का संसद में दिया यह बयान कि ‘रिश्वत देनेवालों की पहचान उजागर हो चुकी है, लेनेवालों की बाकी है’, संकेत करता है कि सरकार के पास अभी पुख्ता जानकारी नहीं है. बावजूद इसके, सुब्रह्मण्यम स्वामी सहित सत्ता पक्ष के कुछ नेता कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी पर रिश्वत लेने का आरोप मढ़ने से नहीं हिचक रहे. वहीं सोनिया गांधी का दावा है कि उनके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है.
तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी व अन्य कांग्रेसी नेता सफाई दे रहे हैं कि उनकी सरकार ने न केवल सौदे को रद्द कर दिया था, बल्कि इसके लिए दिया गया सारा धन भी वापस ले लिया था. ऐसे में यह सवाल तो उठेगा ही कि रिश्वत लेनेवाले कभी सलाखों के पीछे पहुंचेंगे भी, या सत्ता पक्ष-विपक्ष के नेता बोफोर्स घोटाला तथा पूर्व के कुछ अन्य हंगामाखेज मामलों की तरह ही भ्रष्टाचार के इस नये जिन्न को भी अपने-अपने राजनीतिक फायदे के लिए लंबे समय तक घिसते रहेंगे और देश शर्मसार होता रहेगा?

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