आयकर और विडंबनाएं

हमारे देश में अमीरों को ढूंढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं है. आलीशान होटलों, मॉल्स और ज्वैलर्स का कारोबार बुलंदी पर है, करोड़ों रुपये के घर धड़ल्ले से खरीदे-बेचे जा रहे हैं, महंगी गाड़ियों की बिक्री और हवाई सफर करनेवालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि देश में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 3, 2016 6:13 AM
हमारे देश में अमीरों को ढूंढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं है. आलीशान होटलों, मॉल्स और ज्वैलर्स का कारोबार बुलंदी पर है, करोड़ों रुपये के घर धड़ल्ले से खरीदे-बेचे जा रहे हैं, महंगी गाड़ियों की बिक्री और हवाई सफर करनेवालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि देश में आयकर देनेवालों की संख्या कुल आबादी का सिर्फ एक फीसदी है. हालांकि, इनमें से 5,430 लोग हर साल एक करोड़ रुपये से अधिक आयकर देते हैं.
यह आंकड़ा जितना चौंकाता है, उससे कहीं ज्यादा देश की कर प्रणाली की खामियों और आर्थिक समृद्धि के विरोधाभासों को सामने लाता है. केंद्र सरकार ने बीते 15 वर्षों के प्रत्यक्ष कर आंकड़ों को सार्वजनिक किया है. इसमें आकलन वर्ष 2012-13 में कुल 2.87 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया था, जिनमें 1.62 करोड़ ने कोई टैक्स नहीं दिया. इस तरह करदाताओं की कुल संख्या सिर्फ 1.25 करोड़ रही. इनमें बड़ी संख्या वेतनभोगी कर्मचारियों की है, जिनकी कंपनियां उनके वेतन से टैक्स का हिस्सा काट कर सरकारी खजाने तक पहुंचा देती हैं.
लेकिन, जो लोग नौकरी से इतर कार्यों में लगे हैं, उनमें से ज्यादातर अपनी आय छिपाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं. ऐसे लोग कर भले न चुकाते हों, विभिन्न तरीकों से अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने से नहीं हिचकते. दूसरी ओर जिन अधिकारियों को ऐसे लोगों की निगरानी की जिम्मेवारी मिलती है, उनमें से ज्यादातर की संपत्ति दिन दुनी-रात चौगुनी बढ़ने लगती है. चालू वित्त वर्ष का बजट पेश होने से ऐन पहले केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने बताया था कि तमाम करों से केंद्र सरकार की कमाई करीब 12 लाख करोड़ रुपये है, जबकि उसके खर्च करीब 18 लाख करोड़ हैं.
इस तरह सरकार सालाना करीब 5.6 लाख करोड़ के घाटे में जा रही है और उसपर कुल ऋण करीब 70 लाख करोड़ रुपये का हो चुका है. इस ऋण पर सालाना 4.6 लाख करोड़ रुपये ब्याज में देना पड़ रहा है. ऐसी दुरूह वित्तीय स्थिति के बावजूद देश में जीडीपी में टैक्स का अनुपात सिर्फ 16-17 फीसदी है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन आदि में करीब 29 फीसदी. भारत में अधिकतम टैक्स दर भी चीन, ब्रिटेन, अमेरिका आदि से काफी कम है.
जाहिर है, देश के सतत विकास के लिए कर संग्रह में वृद्धि जरूरी है. इसका सीधा रास्ता है, ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को कर के दायरे में लाना और अमीरों पर अधिक टैक्स लगाना. लेकिन, ऐसी कोई व्यवस्था तभी कारगर हो पायेगी, जब खुद आयकर विभाग के निगरानी तंत्र को सक्षम और ईमानदार बनाया जायेगा.

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