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आ रही है टेक्नोलॉजी की आंधी!
संदीप मानुधने विचारक, उद्यमी एवं शिक्षाविद् हम सब विभिन्न टेक्नोलॉजी यंत्रों के साथ काफी अभ्यस्त हो चुके हैं. हमें अच्छा लगता है जब न्यूनतम प्रयास में अधिकतम आउटपुट हम निकाल पाते हैं. 1980-90 के दशकों में कार्यरत रहे प्रोफेशनल्स से पूछिए कि कितना पसीना केवल फोन लगाने एवं फैक्स प्राप्त करने में लग जाता था! […]
संदीप मानुधने
विचारक, उद्यमी एवं शिक्षाविद्
हम सब विभिन्न टेक्नोलॉजी यंत्रों के साथ काफी अभ्यस्त हो चुके हैं. हमें अच्छा लगता है जब न्यूनतम प्रयास में अधिकतम आउटपुट हम निकाल पाते हैं. 1980-90 के दशकों में कार्यरत रहे प्रोफेशनल्स से पूछिए कि कितना पसीना केवल फोन लगाने एवं फैक्स प्राप्त करने में लग जाता था! काम को दरकिनार कर केवल संपर्क साधने में एवं दूसरों से दस्तावेज टाइप करवाने में (और प्रतिलिपियां बनवाने में) ही कितनी ऊर्जा नष्ट हो जाती थी! सब कुछ बेहद धीमा था. आज से तुलना करें तो कार्य-उत्पादकता 10 प्रतिशत भी नहीं थी.
फिर आयी इंटरनेट की आंधी. केवल एक दशक में इस आंधी ने काम करने की कुछ बुनियादी दिक्कतों को इतनी सरलता से हल कर दिया कि अब प्रोफेशनल्स और उद्यमी अपनी ऊर्जा सकारात्मक रूप से नया काम करने लगाने लगे. जीवन और कार्य की गुणवत्ता बहुत बढ़ गयी. अब सोशल मीडिया के आने के बाद ऐसा लगा ही नहीं कि इसके बिना भी जीवन कुछ होता होगा. स्मार्टफोन्स के अभ्यस्त हम आधुनिक लोग यह मान चुके हैं कि टेक्नोलॉजी अपने चरम पर है. लेकिन, अभी असली आंधी आनेवाली है. पांच ऐसे बड़े परिवर्तन अगले 10 से 20 वर्षों में हमारे जीवन का हिस्सा बननेवाले हैं, जिसकी कल्पना आज कम ही लोगों ने की है…
परिवर्तन 1- पैसों का अदृश्य हो जाना. आनेवाली पीढ़ियां इस बात पर अचरज करेंगी कि उनके पूर्वज बटुए में भौतिक पैसे (नोट, सिक्के) लेकर चलते थे. यह अब समाप्ति की ओर है. अब इलेक्ट्रॉनिक वर्चुअल पैसे का जमाना आ रहा है. आप अपने एक ही कार्ड से किसी को भी कितनी भी मात्रा में भुगतान करेंगे- सब्जी वाले को भी! यदि सब व्यवसायियों के पास एक सी मशीन होगी (जो इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट लेगी), तो यह संभव होगा.
काम शुरू भी हो चुका है. भारत का अपना पेमेंट सिस्टम बन रहा है, खुद का कार्ड आ चुका है- रूपे कार्ड. धीरे-धीरे सरकार भौतिक पैसों का लेनदेन समाप्त करने की दिशा में कानून व निर्देश भी लायेगी ही. इसके फायदे बहुत हैं- तुरंत एकाउंटिंग, कालेधन पर अंकुश, प्रक्रिया में आसानी, सब्सिडी हस्तांतरण में सरलता (पहले बैंक खातों में फिर कार्ड से आगे) आदि. यानी ये सब चीजें केवल अदृश्य रूप में कार्ड के भीतर होगी!
परिवर्तन 2- वस्तुओं और इनसानों का आपस में बातचीत करना. इंटरनेट ऑफ थिंग्स ने दस्तक दे दी है! विभिन्न टेक्नोलॉजी मानकों के समेकन और एकीकरण से पैदा होगी एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें हर जगह मौजूद सेंसर्स (संवेदकों) की मदद से मशीनें इनसानों से बातें करेंगी.
जूतों में लगे सेंसर्स आपका पूरा विवरण (कितने कदम चले आदि) रखेंगे. गार्डन में लगे सेंसर्स मौसम के हिसाब से पानी चालू-बंद करेंगे. आपकी घड़ी कमरों में लगे प्रकाश-यंत्रों से बात कर उन्हें चालू-बंद करवायेगी; आपका ब्लड-प्रेशर व शुगर लगातार माप कर आपके डॉक्टर के कंसोल पर दिखाती रहेगी. अपराध होने की दशा में पुलिस को बेहद सटीक जानकारियां स्वतः ही मिल जायेंगी. कचरे के डब्बे भर जाने पर कर्मचारियों को आगाह कर देंगे और खाना खराब होता देख (सूंघ) फ्रिज हमें आगाह कर देगा. कितना कुछ बदलनेवाला है! जी हां, निजता की पूरी अवधारणा ही नष्ट हो जायेगी! गुड न्यूज- दिल का दौर पड़ने पर तुरंत एक ड्राइवर-विहीन एम्बुलेंस आयेगी और रास्ते पर लगे सिग्नलों को मैनेज करते हुए जल्दी अस्पताल पहुंचा देगी!
परिवर्तन 3- इनसान का ‘डेटा’ में तब्दील हो जाना. एक ऐसी दुनिया जिसमें मशीनें हमारा ज्यादातर कार्य कर रही होंगी, हम क्या कर रहे होंगे? सूचना-प्रौद्योगिकी एवं मशीनों द्वारा बनायी गयी वैसी दुनिया में सबसे पहले इनसान एक नंबर या डेटा में तब्दील हो जायेगा.
आधार कार्ड उसकी शुरुआत भर है. किसी नवजात के पैदा होते ही सरकारी मशीनरी उसका डीएनए लेकर अपने सेंट्रल कंप्यूटर में फीड कर लेगी, एवं तुरंत उसे एक आधार नंबर, एक मोबाइल नंबर (जो दिया बाद में जायेगा) और एक बैंक खाता नंबर जारी कर दिया जायेगा और वह व्यक्ति (बच्चा) अब सिस्टम का एक हिस्सा बन जायेगा. वह हर कदम पर इन्हीं नंबरों से पहचाना जायेगा- स्कूल भर्ती से लेकर डॉक्टरेट तक, सब्सिडी खाते में लेने से टैक्स भरने तक.
परिवर्तन 4- सरकारी सेवाओं का कागजविहीन एवं पारदर्शी बन जाना. यह बहुत शीघ्र हो सकता है, हो रहा है. आपके विभिन्न सर्टिफिकेट्स अब एक डिजिटल लॉकर में इलेक्ट्रॉनिक रूप में रहेंगे. किसी भी सरकारी नौकरी (या निजी नौकरी) हेतु आवेदन करते वक्त आप अपने मोबाइल से अपनी प्रमाणित इलेक्ट्रॉनिक-साइन (हस्ताक्षर) के जरिये डिजिलॉकर से दस्तावेज लगा कर बिना एक भी कागज के आवेदन कर पायेंगे. यह एक शक्तिशाली आइडिया है, जो हम भारतीयों के जीवन को गुणात्मक रूप से बहुत बेहतर बनायेगा. इसी विजन को सरकार ‘डिजिटल इंडिया’ का एक स्तंभ भी कहती है.
परिवर्तन 5- बिग बैंग चेंजेस (बड़े धमाकेदार परिवर्तन). जरा सोचिये, यदि यह सब हो रहा है और प्रत्येक नागरिक एक मोबाइल नंबर एवं एक आधार नंबर से पहचाना जा सकता है, उसका पुलिस रिकॉर्ड भी ऑनलाइन वेरीफाइ हो सकता है, और हमारा अपना जीपीएस (अर्थात नाविक उपग्रह प्रणाली) कार्यरत हो चुकी है, तो क्यों न एक दिन ऐसा आये जब हमारे आम चुनाव महज एक ही घंटे में मोबाइल पर वोटिंग के जरिये संपन्न करवाये जायें? हर मतदाता मिनट-सेकेंड में ही वोटिंग कर अपने काम पर लग जायेगा. चुनाव आयोग को कई हफ्तों तक उलझना नहीं पड़ेगा और हजारों करोड़ रुपये बचेंगे!
आप हंस रहे हैं ना?
याद रखें, 1980 में यदि आप किसी से कहते कि एक दिन मैं अपने हाथ में कुछ सौ ग्राम की मशीन से दुनिया के किसी कोने में किसी को भी हजारों पन्नों के दस्तावेज भेज दूंगा, एक क्लिक से, और फिर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से उससे बात करूंगा, तो लोग जोर से हंसते! लेकिन आज की हकीकत यह है कि हम चाहें या न चाहें, तकनीकों के नये आयाम रोज खुलते जा रहे हैं और उनका सही दोहन हमें बहुत तीव्र गति से कई समस्याओं को हल करने में मददगार साबित हो सकता है. आनेवाला कल एक ऐसी उम्मीद से भरा है, जिससे इस विश्वास की सबसे जटिल समस्याएं भी सुलझ सकती हैं.
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