पिछले दिनों गुजरात की सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की. इसके पूर्व राजस्थान की भाजपा सरकार ने भी कुछ इसी तरह के फैसले लिये थे. हालांकि आगे कौन सरकार इस तरह के कदम उठाने को बाध्य होगी, नहीं कहा जा सकता.
पर अब वक्त आ गया है जब आरक्षण की समीक्षा की जरूरत महसूस की जा रही है. आज स्थिति पहले जैसी नहीं रही. अब सवर्ण जातियों मेें भी कई ऐसे लोग हैं जिनकी हालत बदतर है.
वहीं पिछड़ी और एससी एवं एसटी जातियों में कई लोगों का जीवनस्तर काफी ऊंचा उठ चुका है, जिन्हें आरक्षण की दरकार बिल्कुल नहीं है. उन्हें स्वेच्छा से आरक्षण का त्याग कर देना चाहिए और आरक्षण उन्हें दिलाने की कोशिश करनी चाहिए, जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, चाहे वह किसी वर्ग अथवा समुदाय से संबंध क्यों न रखते हों.
अर्चना पांडेय, धनबाद