भ्रष्टाचार और बेमानी बहसें

अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में रिश्वतखोरी पर पिछले कई दिनों से सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है. बुधवार को जब राज्यसभा में इस मसले पर विशेष चर्चा शुरू हुई, एक उम्मीद थी कि उच्च सदन में बैठे माननीय दोषियों की पहचान करने और उन्हें जल्द जेल भेजने की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2016 6:14 AM
अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में रिश्वतखोरी पर पिछले कई दिनों से सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है. बुधवार को जब राज्यसभा में इस मसले पर विशेष चर्चा शुरू हुई, एक उम्मीद थी कि उच्च सदन में बैठे माननीय दोषियों की पहचान करने और उन्हें जल्द जेल भेजने की कोई राह तलाश लेंगे. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर जब इस विशेष चर्चा का जवाब देने के लिए खड़े हुए, लग रहा था कि वे कोई नया खुलासा करेंगे, कुछ पुख्ता सबूत पेश करेंगे, जिससे लगे कि सरकार दोषियों पर जल्द कार्रवाई की इच्छुक है.
लेकिन, हुआ ऐसा कुछ नहीं. यह हास्यास्पद ही है कि सत्ता पक्ष सिर्फ आरोप लगाने में जुटा रहा और प्रमुख विपक्षी दलों के नेता एक सुर में मांग करते रहे कि सीबीआइ की जांच तय समयसीमा और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने की घोषणा की जाये. यह पहला मौका नहीं है, जब भ्रष्टाचार के आरोपों पर कोई संसदीय बहस बेनतीजा रही हो. आजादी के बाद से भ्रष्टाचार के मामलों पर संसद तीन सौ से अधिक बार बहस कर चुकी है. कालाधन पर भी बहस के अनेक दौर चल चुके हैं.
देश की पहली सरकार के समय जीप घोटाला, मुंदड़ा प्रकरण, इंदिरा गांधी के शासनकाल में मारुति और तेल से जुड़े मामले, राजीव गांधी के शासनकाल में बोफोर्स और सेंट किट्स मामले, पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में हर्षद मेहता प्रकरण, सांसद घूस कांड, वाजपेयी सरकार के समय बराक मिसाइल, यूटीआइ, तहलका और ताबूत घोटाले और मनमोहन सरकार के दौर में टूजी स्पेक्ट्रम और कोलगेट जैसे अनेक मामलों पर संसद में बहसें हुईं, लेकिन कोई ठोस नतीजा शायद ही कभी निकला.
यह विडंबना ही है कि भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मुद्दे पर राजनीतिक दलों का रवैया उनके सत्तापक्ष या विपक्ष में होने की स्थिति से तय होता है. इस समय भाजपा हेलीकॉप्टर सौदे में रिश्वतखोरी पर कांग्रेस को निशाना बना कर राजनीतिक लाभ उठाना तो चाह रही है, लेकिन मामले की त्वरित जांच में रुचि नहीं दिखा रही. दूसरी ओर सवालों के घेरे में आयी कांग्रेस जांच तेज करने की मांग कर रही है, जबकि सत्ता में होने पर उसे ऐसे मामलों की ढुलमुल गति से जांच से परेशानी नहीं होती थी.
भ्रष्टाचार पर राजनीतिक दलों का यह दोहरा रवैया भ्रष्टाचार को फलने-फूलने का मौका दे रहा है. ऐसे गंभीर मुद्दों पर संसद की बेनतीजा बहसें देश की सबसे बड़ी पंचायत की महत्ता कम कर सकती हैं. जनता को अपनी सरकार से यह स्वाभाविक अपेक्षा है कि वह भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की कथित नीति को कार्यरूप में भी प्रदर्शित करे.

Next Article

Exit mobile version