राजमार्गों की देखभाल
सरकारें राजमार्गों के निर्माण और विस्तार के लिए बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की घोषणा करती रहती हैं. लेकिन यह बहुत चिंता की बात है कि इन मार्गों के रख-रखाव के लिए समुचित धन का आवंटन नहीं किया जाता है. पिछले सप्ताह एक संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि राजमार्गों की देखभाल के लिए जरूरी […]
मौजूदा वित्तीय वर्ष में सिर्फ 2,834 करोड़ रुपये रख-रखाव के लिए निर्धारित किये गये हैं, जबकि अनुमानित आवश्यकता 7,070 करोड़ रुपये की है. वर्ष 2015-16 के बजट में राष्ट्रीय राजमार्गों की देखभाल के लिए 2,701.40 करोड़ रुपये का गैर-योजनागत आवंटन हुआ था, पर संशोधित आकलन में इसे घटा कर 2,698.40 करोड़ कर दिया गया था. सड़कें राष्ट्रीय विकास की आधारभूत आवश्यकता हैं. सुदूर गांवों, कस्बों और महानगरों के बीच परस्पर आवागमन और सामान की ढुलाई में राजमार्गों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इसीलिए इनके रख-रखाव को प्राथमिकता देने की जरूरत है. संबंधित मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अनेक राज्यस्तरीय मार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की घोषणा की है. उनकी योजना राजमार्गों की मौजूदा लंबाई को 1.3 लाख किलोमीटर से बढ़ा कर दो लाख किलोमीटर करने की है.
ऐसे में संसदीय पैनल की यह रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है और सरकार को इसकी सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. पैनल का एक उल्लेखनीय सुझाव यह है कि रख-रखाव के मद में उन मदों से राशि डाली जा सकती हैं जिनमें बचत की गुंजाइश है. आम तौर पर यह देखा जाता है कि समुचित देखभाल के अभाव में सड़कें खराब होती जाती हैं और बाद में उनकी मरम्मत में अधिक धन खर्च करना पड़ता है. खराब सड़कों के कारण वाहनों के ईंधन की खपत भी अधिक होती है तथा आवागमन में समय भी अधिक लगता है.
रख-रखाव पर ठीक से ध्यान देकर ऐसी बेमानी बरबादियों को बचाया जा सकता है. वर्तमान राजमार्गों में करीब 75 हजार किलोमीटर सड़कें सिर्फ दो लेन में हैं जिनके विस्तार की योजना है. लेकिन इसमें विभिन्न कारणों से कुछ देरी संभावित है. इस लिहाज से भी मौजूदा सड़कों की समय-समय पर सही मरम्मत जरूरी है. उम्मीद है कि सरकार राजमार्गों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करते हुए उनके समुचित रख-रखाव को प्राथमिकता देगी.