बूंद-बूंद भरती बोतल!

बंदे को साठ के दशक का वो जमाना याद है. देश में था भयंकर सूखा पड़ा था. बूंद-बूंद पानी को तरसते लोग. परंतु, उस दौर में भी सामाजिक रिश्ते बहाल रहे. जब मन हुआ, मुंह उठाया और चले गये पड़ोस में पानी पीने. वहीं चिपके रहे देर तक. गुड़ की डली के साथ भरपेट पानी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 9, 2016 1:36 AM

बंदे को साठ के दशक का वो जमाना याद है. देश में था भयंकर सूखा पड़ा था. बूंद-बूंद पानी को तरसते लोग. परंतु, उस दौर में भी सामाजिक रिश्ते बहाल रहे. जब मन हुआ, मुंह उठाया और चले गये पड़ोस में पानी पीने. वहीं चिपके रहे देर तक. गुड़ की डली के साथ भरपेट पानी हलक के नीचे उतार कर ही लौटे.

आज फिर वही परिस्थितियां हैं. लेकिन, बंदा तनिक भी व्यथित नहीं है. एक अच्छा मौका है, बचपन के अनुभव आजमाने का. उसने अपने पड़ोसियों, मित्रों और रिश्तेदारों के घर विजिट करने की सारिणी बनायी. मगर सामाजिक मूल्य बदले मिले. अतिथि देवो भवः की भावना टोटली विलुप्त. पड़ोसी के घर घंटों बैठे रहे. नाशुक्रों ने पानी तक न पूछा. चाय तो बहुत दूर की बात हुई. दूर के एक संबंधी के घर दस मील गये. सौ रुपये का पेट्रोल फूंका. पहुंचे नहीं कि बता दिया कि आज दिन भर मुई बिजली नहीं रही. सो पानी भी नहीं आया. एक बोतल बच्चों के लिए बचा रखा है. बंदा समझ गया कि आज की पब्लिक अपेक्षा से कहीं अधिक स्टार्ट-अप और स्मार्ट मोड में है. इधर सरकार भी जागी है. पानी बचाने की अपीलें कर रही है.

बंदे में भी समाजसेवा का भूत चढ़ा. सलाह दी कि जंक फूड को तिलांजलि दो और सादा भोजन अपनाओ. ताकि, पेट खराब होने पर बार-बार टाॅयलेट जाकर पानी न गिराना पड़े. दफ्तर वाले दफ्तर का टायलेट यूज करें और यदि व्यवस्था हो तो, वहीं स्नान भी कर लें. गर्मियों में स्कूटी, बाइक या कार पर बैठ कर नहायें, एक पंथ दो काज. घरेलू बगिया और गमलों के बीच खड़े होकर स्नान करें, तो मुफ्त की सिंचाई हो जायेगी. नदिया तीरे न जायें, वहां डूबने का खतरा है.

शीत ऋतु का आगमन दीवाली से होली तक मानें. स्नान सप्ताह में दो बार ही करें. ज्यादा जरूरत पड़े तो साप्ताहिक कर दें. और अगर हालात बेकाबू हों तो स्पंज स्नान भी चलेगा.

बूंद-बूंद से सागर भरता है. जगह-जगह से बूंदें जमा करें और जितनी बाल्टियां, ड्रम, लोटे, पतीले, गिलास, बोतलें हैं, सब भर डालें. शीशी तक न छोड़ें. विवाह आदि समारोहों में तो बोतल में पानी मिलता है. झोला साथ रखें. तीन-चार बड़ी खाली बोतलें भी साथ ले जायें. राजधानी या शताब्दी से मेहमान आ रहे हों, तो उनसे कह दें कि बोतलें बटोर लें. कई लोग आधा पीकर बाकी छोड़ देते हैं. पार्टी-शार्टी में जाने से पहले स्नान वर्जित करें. फ्रांसीसियों की तर्ज पर शरीर की बदबू परफ्यूम से दूर करें.

बंदे की पानी बचाओ की मनवांछित स्कीम औधें मुंह गिर पड़ी. कोई मानने को तैयार ही नहीं हुआ. जगहंसाई अलग से हुई. एक साहब ने परामर्श दिया कि मनोचिकित्सक को दर्शन दूं. परिचित देखते ही कन्नी काटने लगे. पत्नी-बच्चों ने खाली दिमाग शैतान का घर करार दिया. पड़ोस का किवाड़ खटखटाया, तो बच्चे ने कहा- पापा-पापा, पड़ोस वाले निठल्ले अंकल आये हैं.

लेकिन, बंदा फिर भी हताश नहीं है. मुकाबले के लिए खुद ही पहल करने की ठानी है उसने. बूंद-बूंद से समुद्र भरता है. वह बूंद-बूंद बोतल भरेगा. वह अकेला चलेगा. लोग साथ होते जायेंगे, कारवां बनता जायेगा. उसने सोच लिया था- हम होंगे कामयाब एक दिन.

मगर दो ही दिन बाद बंदे की समझ में आ गया कि वह किसी मजबूत सीमेंट कंपनी की दीवार से सिर टकरा रहा है, दीवार में छेद तो नहीं हुआ, बल्कि खुद का नुकसान हो रहा है.

वीर विनोद छाबड़ा

व्यंग्यकार

chhabravirvinod@gmail.com

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