जल, जंगल, जमीन के संरक्षण पर राजनीति
आजकल जल, जंगल, जमीन हमारा है. यह आदिवासी समाज का नारा बन गया है. लेकिन, यह आदिवासी का राजनीति नारा मात्र नहीं है, भले ही इसका रास्ता राजनीति हो. यह आदिवासी के जीवन-दर्शन इतिहास और स्मृति का अभिन्न हिस्सा है. यह समाज जो अपनी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करता है, जीवन के प्रति अपने नजरिये […]
आजकल जल, जंगल, जमीन हमारा है. यह आदिवासी समाज का नारा बन गया है. लेकिन, यह आदिवासी का राजनीति नारा मात्र नहीं है, भले ही इसका रास्ता राजनीति हो. यह आदिवासी के जीवन-दर्शन इतिहास और स्मृति का अभिन्न हिस्सा है. यह समाज जो अपनी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करता है, जीवन के प्रति अपने नजरिये को गतिशील बनाये रखता है, जो बार-बार उन्हें लड़ने की प्रेरणा देता है. आज आदिवासी अंचलों में जल, जंगल और जमीन एक बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है. इस मुद्दे को उछाल कर अासानी से वोट को गोलबंद कर लिया जाता है.
लेकिन, इसकी राजनीति करनेवालों को इसके दार्शनिक पक्ष को समझना होगा, नहीं तो लातूर जैसे संकट पैदा होंगे और इसे रोक पाना मुश्किल होगा. अतः हमें जल, जंगल जमीन जीवन का आधार है, इस बात को समझना होगा, ताकि भावी पीढ़ी के सामने पर्यावरण असंतुलन के सवाल खड़े न हो.
सुमित कुमार बड़ाईक, सिसई