मोदी सरकार के दो साल

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया इस महीने नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दो वर्ष पूरे कर रहे हैं. आइये, देखते हैं कि इस अवधि में उनका प्रदर्शन कैसा रहा. उन्होंने अपने व्यक्तित्व और अपने कामकाज के रिकॉर्ड की ताकत के आधार पर प्रभावकारी तरीके से आम चुनाव जीता था. यहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 10, 2016 6:40 AM

आकार पटेल

कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया

इस महीने नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दो वर्ष पूरे कर रहे हैं. आइये, देखते हैं कि इस अवधि में उनका प्रदर्शन कैसा रहा. उन्होंने अपने व्यक्तित्व और अपने कामकाज के रिकॉर्ड की ताकत के आधार पर प्रभावकारी तरीके से आम चुनाव जीता था. यहीं से शुरू करते हैं.

राजनीतिक रिकॉर्ड : अब तक मोदी हमारे सबसे अधिक लोकप्रिय राजनेता के रूप में बने हुए हैं. दो वर्ष पहले जो उनका रुतबा था, वह बना हुआ है. पिछले सालों के हर ओपिनियन पोल में उनकी लोकप्रियता 70 फीसदी के आसपास रही है. अमेरिकी इसे अप्रूवल रेटिंग की संज्ञा देते हैं और 70 फीसदी बहुत ही जबरदस्त संख्या है. विशेषकर, इस कारण कि भारत में ओपिनियन पोल बीते दशक में सटीक हुए हैं, इसलिए यह संख्या भरोसेमंद है.

मोदी के लिए यह तथ्य मददगार हो सकता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी करिश्माई नहीं हैं, और यह कि नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल जैसे क्षेत्रीय नेताओं के पास अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए बहुत बड़ा मंच नहीं है. लेकिन इस बात को स्वीकार करते हुए भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मोदी भारतीयों में जिस तरह से विश्वसनीय हैं, वैसा और किसी के साथ नहीं है. भाजपा दिल्ली और बिहार चुनावों में पराजित हुई, लेकिन मोदी के नेतृत्व में वर्चस्व की ओर इसकी यात्रा और अप्रासंगिकता की ओर कांग्रेस की यात्रा जारी है.

अर्थव्यवस्था : कुछ दिन पहले विपक्ष में उनके दौरे पर आधारित उनकी किताब के विमोचन के अवसर पर मैं पी चिदंबरम से बातचीत कर रहा था. मैंने उनसे पूछा कि क्या मोदी की आर्थिक नीतियों की आलोचना बहुत अधिक कठोर नहीं है? भले ही निर्यात, उत्पादन और कंपनियों के मुनाफे से संबंधित आंकड़े निराशाजनक हैं, लेकिन क्या दो साल का समय मोदी के आर्थिक प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए कम नहीं है? ये सवाल मैंने उनसे पूछे. चिदंबरम का जवाब था- ‘यह अवधि पूरे कार्यकाल का 40 फीसदी है.’ यह कहना उचित होगा कि सरकार ने जितना किया है, उससे कहीं ज्यादा का उसने वादा कर दिया है.

दो अंकों में वृद्धि, अधिक रोजगार, मनरेगा और आधार जैसी ‘समाजवादी’ नीतियों से अलग होना जैसे मोदी के दावे पूरे नहीं हुए हैं. दरअसल, उन्होंने कुछ ऐसी नीतियों को स्वीकार भी किया है, जिन्हें समाप्त करने का उन्होंने वादा किया था. मैं अब भी मानता हूं कि भले ही आंकड़े कुछ और इंगित कर रहे हों, मोदी को और समय दिया जाना चाहिए, यदि 18 महीने नहीं, तो कम-से-कम एक साल, यह साबित करने के लिए कि क्या उन्होंने सचमुच आर्थिक स्तर पर कोई बदलाव लाया है.

भ्रष्टाचार : यह उन मुद्दों में से था, जिनके आधार पर 2014 के चुनाव लड़े गये थे. यह कहा जाता है कि मोदी ने या तो केंद्र सरकार में बड़े भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिया है या फिर उनकी खबरें अभी तक बाहर नहीं आयी हैं. गुजरात की तरह वे इस मसले पर व्यक्तिगत रूप से शामिल हैं.

मैं गुजरात के ऐसे व्यापारियों को जानता हूं, जिन्होंने निचले स्तर पर भ्रष्टाचार का सामना किया है, क्योंकि किसी एक व्यक्ति के लिए, चाहे उसकी नीयत कितनी भी अच्छी क्यों न हो, सदियों से चली आ रही इस संस्कृति को बदलना संभव नहीं है. लेकिन, जैसा कि गुजरात में हुआ, मैं जानता हूं कि मोदी नियमित रूप से लोगों से पूछते रहते हैं कि उन्हें मंत्रियों और अधिकारियों की ओर से कोई समस्या तो नहीं है, और वे उनसे इन सब को सूचित करने के लिए भी कहते हैं. वे सक्रिय हैं और उनकी नीयत अच्छी है.

विधान और शासन : मुख्य रूप से केंद्र सरकार का काम नये कानून बनाना है. शासन, जैसा कि हम समझते हैं कि राज्य की संरचना का नियंत्रण करना है, बाद में आता है. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि कोई भी संघीय सरकार कुछ सौ प्रशासनिक अधिकारियों के जरिये भारत पर शासन करती है.

इस मशीनरी के छोटे रूप को देखते हुए एक पार्टी के शासन के दूसरी पार्टी के शासन से बहुत अलग होने की संभावना नहीं होती. कानून बनाने का जहां तक मामला है, सफलता को रेखांकित करना आसान नहीं है, क्योंकि यहां विषय मौजूद नहीं है. यदि हम मनमोहन सिंह सरकार की विधायी प्राथमिकता पर नजर डालें, तो हम निम्नलिखित चीजें पहचान सकते हैं- सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार, आधार, लाभ का प्रत्यक्ष अंतरण, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा आदि. यहां पर एक बात स्पष्ट है- ये कानून गरीबों को लक्ष्य कर बनाये गये हैं. लेकिन मोदी के रिकॉर्ड में ऐसी प्राथमिकता का अभाव है.

शायद समय के साथ यह स्पष्ट हो, लेकिन अभी ऐसा नहीं है. मेक इन इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान विधायी पहलें नहीं हैं, ये नारे हैं.

विदेश नीति : यह आश्चर्यजनक है कि इस मामले में सामान्य लोगों और विशेषज्ञों की राय में बहुत अंतर है. जो लोग मोदी के पहले साल के तड़क-भड़क के प्रति आकर्षित रहे हैं, वे प्रभावित हैं. प्रधानमंत्री ने विदेशी राजधानियों में अनेक रंगारंग आयोजन किये, जिनमें हजारों भारतीय उनके अभिवादन के लिए शामिल हुए थे. इसे विदेश नीति की सफलता के रूप में देखा गया था, जबकि ऐसा नहीं था.

सच यह है, और विशेषज्ञ इसे स्वीकार भी करते हैं, कि मोदी की अत्यधिक व्यक्ति-आधारित कूटनीति असफल रही है. पाकिस्तान के संबंध में हमारे पास कोई नीति नहीं है, जिसे कोई स्पष्ट बता सके. मोदी का रिकॉर्ड बात करना, बात नहीं करना, गले मिलना, नाराज होना, आरोप मढ़ना, जवाबी बयान देना, आमंत्रित करना, शर्त लगाना, अचानक शर्त हटा लेना आदि रहा है. उम्मीद है कि वे इस रवैये को बदलेंगे, क्योंकि इससे भारत की विदेश नीति के अगंभीर होने का संकेत जाता है. चीन के मामले में भी उनके आकर्षण के जादू करने की मोदी की आशा बचकाना ही रही है.

पूरा प्रदर्शन : यदि हम पहले बिंदु, लोकप्रियता, पर लौटें, तो हमें मानना चाहिए कि मोदी का अब तक का कार्यकाल सफल रहा है. लोकतंत्र में चुनावी लोकप्रियता ही सफलता की एकमात्र कुंजी है. आखिरकार यह बात बेमतलब है कि कोई टिप्पणीकार मोदी के बारे में क्या कहता या लिखता है. जब तक वे भाजपा के वोटों को बढ़ाते रहते हैं, उसके प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करते रहते हैं और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाते रहते हैं, वे सफल हैं.

Next Article

Exit mobile version