भारत को आजादी के बाद से आज तक स्मरणीय या गौरवपूर्ण लोकतांत्रिक शासनकाल प्राप्त नहीं हुआ. जो भी सरकारें बनीं, भोली, अशिक्षित जनता को बहला-फुसला कर वोट लेकर ही बनीं. जनता के हित में काम करने के लगभग सारे वादे असली सूरत नहीं देख पाते. भ्रष्टाचार जब चरम पर पहुंचा और लोगों के सामने उजागर होने लगा, तो एक मध्यवर्गीय आंदोलन खड़ा हुआ जिसे अन्ना हजारे का जनांदोलन कहा गया. यह आंदोलन अन्ना, अरविंद केजरीवाल, संतोष हेगड़े, किरण बेदी आदि सामाजिक दायित्वशील और ईमानदार लोगों द्वारा शुरू किया गया, जिससे स्वत: समाज के विभिन्न तबके के लोग जुड़ते चले गये.
मध्यम वर्ग कुछ ज्यादा जुड़ पाया क्योंकि सरकारी योजनाओं या काम-काज से यही वर्ग ज्यादा संपर्क रखता है. इसी आंदोलन से उपजा एक राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी की सरकार अब दिल्ली में बनी है जिसे न सिर्फ दिल्ली के लोगों का समर्थन मिला, बल्कि देश के अन्य हिस्से की जनता भी इस पार्टी से जुड़ी हुई महसूस करने लगी है. इस दल से काफी उम्मीदें जगी हैं पर अब ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर इनके विचार दृढ़ नहीं हैं और इन्हें परिपक्व होने में समय लगेगा.
कश्मीर के मुद्दे पर, दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण के मुद्दे पर या अन्य संवेदनशील मुद्दों पर ‘आप’ अपना रु ख स्पष्ट करने में असमर्थ है. पूरे भारत के संचालन की बागडोर अपने हाथों लेने के होड़ में इन्हें नहीं पड़ना चाहिए और जनता को भी बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए. ये ईमानदार जरूर हो सकते हैं, पर राष्ट्रीयता के सामने क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने का काम नहीं करना चाहिए. राजनीति में शुद्धि बनी रहे, इस प्रयास में ‘आप’ विशेष ध्यान दे.
मनोज आजिज, आदित्यपुर, जमशेदपुर