न्यायपालिका की आलोचना

गत 13 मई के अंक में प्रकाशित अपने संपादकीय ‘न्यायपालिका की आलोचना’ में न्यायपालिका द्वारा विधायिका के अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण तथा उसे कमजोर करने के अरुण जेटली के आरोप पर अापने असहमति व्यक्त की है. यह सही है कि आज जनता को सरकारों से अधिक भरोसा न्यायालयों पर है पर इसका अर्थ यह नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 16, 2016 11:59 PM
गत 13 मई के अंक में प्रकाशित अपने संपादकीय ‘न्यायपालिका की आलोचना’ में न्यायपालिका द्वारा विधायिका के अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण तथा उसे कमजोर करने के अरुण जेटली के आरोप पर अापने असहमति व्यक्त की है.
यह सही है कि आज जनता को सरकारों से अधिक भरोसा न्यायालयों पर है पर इसका अर्थ यह नहीं कि न्यायालय विधायिका से ऊपर है या हो गयी है. न्यायालय का काम संविधान की व्याख्या, सरकारों द्वारा सही या गलत निर्णयों को संवैधानिक, गैर-संवैधानिक ठहराना है, न कि अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर विधायिका द्वारा जनहित में लिये गये फैसले को मनमाने ढंग से पलटते रहना! और बड़ी बात, जजों को अनावश्यक टिप्पणियां करने से भी बचना चाहिए़
डॉ विनय कु सिन्हा, रांची

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