ईमानदारी की प्रतिस्पर्धा

वैश्विक बाजार वाली अर्थव्यवस्था वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग में खुलेपन की पैरोकार है, ताकि इसमें सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके. यही वजह है कि पूरी दुनिया में लोकतंत्र की पैरोकार संस्थाओं की तरफ से एक स्वर में कहा जाने लगा है कि बेहतर शासन का अर्थ है अधिक पारदर्शी शासन और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 18, 2016 1:40 AM
वैश्विक बाजार वाली अर्थव्यवस्था वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग में खुलेपन की पैरोकार है, ताकि इसमें सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके. यही वजह है कि पूरी दुनिया में लोकतंत्र की पैरोकार संस्थाओं की तरफ से एक स्वर में कहा जाने लगा है कि बेहतर शासन का अर्थ है अधिक पारदर्शी शासन और पारदर्शी शासन की शर्त है कि सार्वजनिक जीवन को संचालित करनेवाली हर संस्था अपनी अधिकाधिक गतिविधियों के बारे में सूचनाओं को सार्वजनिक करे.

सूचना का सार्वजनिक होना किसी संस्था को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाने का एक औजार बन जाता है, इस विचार ने बीते दो दशकों में काफी जोर पकड़ा है. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय ख्याति की कुछ संस्थाएं ग्लोबल परसेप्शन इंडेक्स (वैश्विक अवधारणा सूचकांक) के आधार पर देशों के प्रशासनिक-तंत्र का आकलन कर रही हैं.

आकलन में देखने का प्रयास होता है कि उस देश की प्रशासनिक संस्थाएं अपने कामकाज में किस हद तक पारदर्शी और जन भागीदारी को बढ़ावा देनेवाली हैं. मिसाल के लिए, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के वैश्विक करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (2014) में भ्रष्टाचार अवधारणा में भारत को 175 देशों की सूची में 85वां स्थान देते हुए कहा गया है कि भारत में लोकतंत्र ऊर्जावान तो है, लेकिन सतर्क नागरिक संगठन, मीडिया और लोगों में भरपूर राजनीतिक समझ के बावजूद भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है, क्योंकि यहां भ्रष्टाचार की रोक-टोक का ढांचा लचर है और उस तक लोगों की पहुंच भी सीमित है. ऐसे में ईमानदारी सूचकांक के आधार पर देश के सरकारी संस्थाओं की रैंकिंग का केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) का प्रस्ताव भ्रष्टाचार की रोक-टोक के ढांचे को नये सिरे से गढ़ने की मंशा से प्रेरित प्रतीत होता है.

विचार नया है, लेकिन इच्छाशक्ति हो तो इसे साकार करना कठिन नहीं. कोई सरकारी विभाग कितने दिनों की देरी से अपनी सूचनाएं सार्वजनिक करता है, काम को अंजाम देने की उसकी गति क्या है, विभाग द्वारा दी जा रही सेवा को लेकर लोगों में संतुष्टि किस सीमा तक है, विभागीय काम के प्रति शिकायत का निवारण वहां कैसे होता है आदि जैसे अनेक सिरों को एक करते हुए निश्चित ही ऐसा एक इंडेक्स तैयार किया जा सकता है, जिसके आधार पर ईमानदारी बरतने के मामले में किसी महकमे की तैयारियों का जायजा लिया जा सके और रैंकिंग करके उन पर स्वयं को सुधारने का दबाव बनाया जा सके. कहते हैं, नेक काम में जितनी जल्दी हो उतना ही ठीक. उम्मीद की जानी चाहिए कि सीवीसी के प्रस्ताव पर जल्द अमल होगा और यह शुभ परिणाम लायेगा.

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