रिजल्ट जिंदगी का!
चांद-तारों को छूने के ख्वाब देखना अच्छा है, लेकिन यह किसने कहा है कि कामयाबी, काबिलियत का पैमाना पर्सेंट है? अगर आपके बच्चे 95 या उससे अधिक पर्सेंट नहीं पाते हैं, तो दुनिया खत्म हो जायेगी या सारे चांद-तारे टूट कर धरती पर आ जायेंगे? आजकल बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट कुछ स्टेटस सिंबल जैसे हो […]
चांद-तारों को छूने के ख्वाब देखना अच्छा है, लेकिन यह किसने कहा है कि कामयाबी, काबिलियत का पैमाना पर्सेंट है? अगर आपके बच्चे 95 या उससे अधिक पर्सेंट नहीं पाते हैं, तो दुनिया खत्म हो जायेगी या सारे चांद-तारे टूट कर धरती पर आ जायेंगे? आजकल बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट कुछ स्टेटस सिंबल जैसे हो गये हैं. बच्चों से कहीं ज्यादा उनके पैरेंट्स तनाव में होते हैं.
हमारे आॅफिस में काम करनेवाली एक महिला सहकर्मी ने अपने बेटे के आइसीएससी के एग्जाम के वक्त एक महीने की छुट्टी ली थी. जबकि उनका बेटा नहीं चाहता था कि वे घर पर रहें. वह हर समय उसे किस काॅलेज में एडमिशन लेना है, कैसे पढ़ना है, फ्यूचर में क्या करना है, जैसी बातें करती रहती थीं. रिश्तेदारों और दोस्तों के बच्चों से कंपीटिशन रखती थीं. अब जब रिजल्ट आया है, उसके 70 पर्सेंट के करीब अंक हैं. महिला सहकर्मी इस रिजल्ट से काफी निराश हैं.
हमारे समय में बोर्ड एग्जाम में अच्छे नंबर से पास होना ही बड़ी बात होती थी. बच्चे या घरवाले सबको बस पास होने का तनाव होता था. हम खुद यूपी बोर्ड में इंटरमीडिएट में फेल हो गये थे. लेकिन हम एक बार फिर खड़े हुए और अच्छे नंबरों से पास हुए. उस वक्त बस पास होने पर ही मां-बाप और बच्चों के चेहरे पर संतोष का भाव होता था. पड़ोसियों और मुहल्ले में मिठाइयां बंटती थीं. लेकिन अब तो पहला सवाल होता है- पर्सेंट कितना है? बच्चों पर दबाव डालते वक्त हम अपने दिनों को भूल जाते हैं. स्कूल, कॉलेज और बोर्ड के एग्जाम जिंदगी की जंग नहीं, जो आपके सिपहसालार हार गये, तो उनकी जिंदगी खत्म हो गयी.
मेरी एक दोस्त हैं, पिछले साल उन्होंने तो बेटी के मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम के रिजल्ट आने से पहले ही उसे आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेजने की तैयारी शुरू कर दी थी. कहती फिर रही थीं कि देखना मेरी बेटी इस बार टॉप करेगी. लड़की पढ़ने में औसत थी, पर मां-बाप की जिद के चलते मेडिकल की तैयारी कर रही थी. मालूम हुआ कि वह उसे क्लियर नहीं कर पायी, तो फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. अब वे लोग पछता रहे हैं. काश कि उन्होंने उस पर दबाव नहीं बनाया होता; उसकी इच्छा जानने की कोशिश की होती!
फिल्म तारे जमीं पर का ईशान अवस्थी, थ्री इडियट्स का रैंचो तो याद होगा. कई बार लोग पढ़ने में बहुत अच्छे नहीं रहे हैं, लेकिन उन्होंने अन्य क्षेत्रों में नाम कमाया है और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं.
जब थॉमस अल्वा एडीशन बहुत छोटे थे, एक दिन उनके प्रिंसिपल ने उन्हें बुलाया और एक नोट दिया कि जाकर अपनी मां को दे देना. एडीशन ने वह नोट अपनी मां को दिया. मां ने उसे पढ़ा, तो उनकी आंख से आंसू निकल गये. एडीशन ने पूछा क्या लिखा है उसमें? मां ने कहा- इसमें लिखा है आपका बेटा बहुत प्रतिभाशाली है, इसे किसी स्पेशल स्कूल में डालिए. यह बहुत आगे जायेगा. अरसे बाद एडीशन बड़े वैज्ञानिक बन चुके थे. मां भी गुजर चुकी थीं. एक दिन वे अलमारी साफ कर रहे थे, तो उसमें स्कूल का वही नोट मिला. उसमें लिखा था- आपका बेटा मंदबुद्धि है, इसे किसी स्पेशल स्कूल में भरती कीजिए. नोट पढ़ कर एडीशन की आंखों में आंसू आ गये. यह होती है अभिभावक की समझदारी. अगर एडीशन की मां ने नोट पढ़ कर अपने बेटे को डांटा होता, तो आज दुनिया एडीशन से महरूम होती. ऐसी कई मिसालें हैं.
मेरा मानना है कि बच्चों को इनकी राह तलाशने दीजिए, उन्हें उड़ने दीजिए, गिरने दीजिए, संभलने दीजिए, आगे बढ़ने दीजिए. बस उन्हें इस बात का हौसला और विश्वास दीजिए कि आप इनके साथ हैं. मिर्जा अजीम बेग ने क्या खूब फरमाया है- गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में। वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।।
प्रियंवदा रस्तोगी
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