पाकिस्तान की ‘नक्शेबाजी’

एक साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी पेइचिंग में थे और उनके ‘स्वागत’ में चीन ने भारत का गलत नक्शा पेश किया था. चीन ने उस नक्शे में अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर को भारत से काट कर दिखाया था. चीन से जब आपत्ति दर्ज करायी गयी, तो कुछ कूटनीतिकांे का जवाब था कि आपके दूरदर्शन ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 19, 2016 1:36 AM

एक साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी पेइचिंग में थे और उनके ‘स्वागत’ में चीन ने भारत का गलत नक्शा पेश किया था. चीन ने उस नक्शे में अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर को भारत से काट कर दिखाया था. चीन से जब आपत्ति दर्ज करायी गयी, तो कुछ कूटनीतिकांे का जवाब था कि आपके दूरदर्शन ने भी तो राष्ट्रपति ‘शी’ को रोमन का ग्यारवां नंबर समझने की गफलत में ‘ग्यारहवें चिन्पिंग’ कह दिया था. जान-बूझ कर की गयी शरारत से इसकी तुलना करना वाकई शर्मनाक है.

पाकिस्तान इस समय ‘पेट दर्द’ से परेशान है. दर्द की वजह भारतीय संसद में पेश ‘भू-चित्र सूचना नियमन विधेयक’ है, जिसमें भारत का नक्शा गलत पेश किये जाने पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना और सात साल तक की सजा का प्रावधान है. पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून और सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के पास अपनी आपत्ति दर्ज करायी है.

सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य चीन परदे के पीछे से पाकिस्तान को हाथ-पांव चलाते रहने के लिए अपनी डोर को खींच रहा है, यह मसूद अजहर के मामले में ही साफ हो गया था. सवाल यह है कि भारतीय संसद को अपने किसी विधेयक को पास करने से रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र कब से सक्षम होने लगा? यह किसी देश की संप्रभुता से जुड़ा जुड़ा सवाल है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र की कोई भूमिका नहीं हो सकती. हमारी संसद सर्वशक्तिमान और संयुक्त राष्ट्र की परिधि से बाहर है. चीन ने 1995 में जब ऐसा कानून बनाया, तो पाकिस्तान को क्यों नहीं आपत्ति हुई? चीन का गलत नक्शा पेश किये जाने पर दो लाख यूआन का जुर्माना और आपराधिक मामलों में कड़ी कैद का प्रावधान है.

अब चीन की नक्शेबाजी देखिए, अपने यहां बनाये कानून के बिना पर उसने वियतनाम पर दबाव बनाना शुरू किया. ‘साउथ चाइना सी’ को लेकर जो कुछ उसके नक्शे में है, वही मान्य है. स्पार्टले, और पारासेल द्वीपसमूहों को हड़पने की चीनी योजना का वियतनाम और फिलीपींस द्वारा लगातार विरोध हो रहा है. दक्षिण चीन सागर में ‘स्कारबोरो शोल’ नामक एक ऐसा जलक्षेत्र है, जिसका नामकरण चीन ने किया है. यहां पर फिलीपींस के मछुआरे मछली मारने जाते हैं. यह जुलाई, 2015 की बात है, जब गूगल ने ‘स्कारबोरो शोल’ नाम अपनी साइट से हटा दिया था. चीन ने इस पर घोर आपत्ति की. गूगल प्रबंधन का तर्क था कि इस जलक्षेत्र के चीनी नामकरण पर फिलीपींस के बहुत सारे मछुआरों को आपत्ति थी और स्वयं फिलीपींस सरकार भी शिकायत कर चुकी थी.

सवाल यह है कि भारत अपने मानचित्र को लेकर संवेदनशील क्यों नहीं हो? यह काॅपीराइट केवल चीन के पास क्यों होना चाहिए? चीन जिस तरह से पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े कर रहा है, वह आनेवाले कल को उसके मानचित्र का हिस्सा बनेगा. चीन को ‘कश्मीर का तीसरा पक्ष’ बनाने के लिए पाकिस्तान एक प्लेटफार्म दे रहा है, उसके विरुद्ध भारत को संयुक्त राष्ट्र में जाना चाहिए. वैसे तो काराकोरम से बलूचिस्तान के ग्वादर तक ‘चीनी रेशम मार्ग’ बिना नक्शे के नहीं बन सकता. यदि पाकिस्तान को चीनी रेशम मार्ग का नक्शा मंजूर है, तो उसे ‘अखंड भारत’ के उस नक्शे को भी स्वीकार करना चाहिए, जिसमें अफगानिस्तान तक भारत का विस्तार था.

13 अगस्त, 1948 को पेश संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव में कहीं कश्मीर के नक्शे से संबंधित बात नहीं है. पाकिस्तान की पुरानी लफ्फाजी को आगे बढ़ाते हुए उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नफीस जकारिया ने कहा कि भारत को कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के वास्ते संयुक्त राष्ट्र को दबाव बनाना चाहिए. साथ ही ‘आजाद कश्मीर’ जैसा विवादित क्षेत्र नक्शे में हो. जकारिया ने कहा, ‘ऐसा कानून बनाना गलत है, यह भारत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है.’

पिछले साल भारत ने गलत नक्शा टीवी पर दिखाये जाने के कारण ‘अल जजीरा’ को एक हफ्ते के लिए ‘आॅफ एयर’ कर दिया था. गूगल का भी कुछ ऐसा ही ‘इलाज’ हुआ था, जब उसने अपनी साइट पर भारत का गलत मानचित्र दिखाया था. 2011 में ‘द इकोनॉमिस्ट’ की 28 हजार काॅपियों को बेचने की तभी अनुमति मिली, जब इस पत्रिका ने भारत के सीमांकन को दुरुस्त करते हुए सफेद स्टीकर लगाये. यह अच्छी बात है कि भारत सरकार गलत नक्शे के विरुद्ध संवेदनशील है, और उसे 21 जुलाई से 13 अगस्त, 2016 तक होनेवाले मॉनसून सत्र में कानूनी जामा पहनाने के लिए कृतसंकल्प है. इस कदम का देशव्यापी समर्थन किया जाना चाहिए. बस इसका ध्यान रहे कि ‘भू-चित्र सूचना कानून’ का कोई दुरुपयोग न करे.

पुष्परंजन

ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक

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