दक्षेस कान्क्लेव के बहाने पाक की कूटनीति
।। पुष्परंजन।। (ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक) दक्षिण एशिया का कोई भी कूटनीतिक शो हो, भारत-पाकिस्तान के मुद्दे उस पर हावी हो जाते हैं. 17 जनवरी से पांचवां ‘दक्षेस बिजनेस लीडर्स कान्क्लेव’ नयी दिल्ली में शुरू हो रहा है. लेकिन इसके 72 घंटे पहले, बुधवार से भारत-पाक के व्यापार सचिव बैठक कर रहे हैं. […]
।। पुष्परंजन।।
(ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक)
दक्षिण एशिया का कोई भी कूटनीतिक शो हो, भारत-पाकिस्तान के मुद्दे उस पर हावी हो जाते हैं. 17 जनवरी से पांचवां ‘दक्षेस बिजनेस लीडर्स कान्क्लेव’ नयी दिल्ली में शुरू हो रहा है. लेकिन इसके 72 घंटे पहले, बुधवार से भारत-पाक के व्यापार सचिव बैठक कर रहे हैं. यह बैठक 16 महीने बाद हो रही है. दिक्कत यह है कि नयी दिल्ली में दक्षिण एशियाइ बिजनेस कन्क्लेव (व्यापार सभा) में इन दो देशों की व्यावसायिक उलझनें चर्चा-ए-आम रहेंगी. बाकी देशों की क्या समस्याएं हैं, हवा हो जायेंगी. ‘सार्क बिजनेस लीडर्स कन्क्लेव’ (एसबीएलसी) में पधारने से पहले, पाकिस्तान के कपड़ा मंत्री खुर्रम दस्तगीर खान इसलामाबाद में बयान दे चुके हैं कि हम फिलहाल भारत को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दरजा नहीं देने जा रहे, अभी हमारी बातचीत नॉन टैरिफ बैरियर (गैर आयात शुल्क अवरोध) पर केंद्रित होगी. पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक दार भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत को तत्काल ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दरजा हम नहीं देने जा रहे, इससे पहले पाकिस्तान चाहेगा कि दोनों देशों के बीच सामान्य संबंध बहाल हों. यों पाकिस्तान, विश्व मुद्रा कोष से यह वादा कर चुका था कि 6.64 अरब डॉलर के ‘लोन एग्रीमेंट’ से पहले वह भारत को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दरजा दे देगा. लेकिन यह हुआ नहीं. ताजा स्थिति को अपडेट करते हुए पाकिस्तान के अखबारों ने सरकार के सूत्रों के हवाले से छापा है कि भारत में 2014 के संसदीय चुनाव परिणाम तक ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ के मामले को टाले रखना है.
‘सार्क बिजनेस लीडर्स कन्क्लेव’(एसबीएलसी) के बारे में काफी हवा-हवाई बातें होती रही हैं. इसके आयोजकों ने इस सम्मेलन को ‘दक्षिण एशिया का दावोस’ कह कर महिमामंडित किया है. सभी जानते हैं कि स्वीट्जरलैंड के दावोस में हर साल होनेवाले ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ की बैठक में पूरी दुनिया का आर्थिक भविष्य तय होता है. ‘एसबीएलसी’ की तुलना क्यों दावोस से नहीं की जा सकती, वह इस फोरम की कछुआ चाल से ही साफ हो जाती है. दक्षेस में आठ देश हैं, उनमें से एक, अफगानिस्तान की उपस्थिति ‘सार्क बिजनेस कन्क्लेव’ में नहीं के बराबर रही है. ‘एसबीएलसी’ के चार सम्मेलनों में से पहला 2005 में नयी दिल्ली में, दूसरा 2007 मुंबई में, तीसरा 2009 कोलंबो में, और चौथा 2011 काठमांडो में आयोजित किया गया. अब पांचवां सम्मेलन भी घूम-फिर कर नयी दिल्ली में हो रहा है, जिसमें कोई तीन सौ प्रतिनिधि पधार रहे हैं. लेकिन प्रश्न यह है कि दक्षेस के बाकी पांच अन्य देशों में यह सम्मेलन क्यों नहीं होना चाहिए था. पांच में से तीन सम्मेलन एक ही देश (भारत) में हो, इससे अच्छा प्रहसन और क्या हो सकता है?
पहले के चार सम्मेलनों के नतीजे यही हैं कि अब तक दक्षेसदेशों के बीच व्यापार का मयार बहुपक्षीय नहीं बन पाया है. दक्षेस देशों के बीच ज्यादातर व्यापार द्विपक्षीय है. जैसे भारत-बांग्लादेश के बीच 2013 में 5.8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जो बढ़ कर दोगुना हो गया. भारत का नेपाल से व्यापार इसी अवधि में 1.9 अरब डॉलर से बढ़ कर 3.6 अरब डॉलर का हुआ. श्रीलंका से कूटनीतिक खटास होने के बावजूद 2013 में भारत से उसका व्यापार 4.2 अरब डॉलर का हुआ. इसे लेकर पाकिस्तान को बड़ी तकलीफ है. पाकिस्तान का नेपाल से सालाना व्यापार अब भी पचास लाख डॉलर पार नहीं कर सका है. बांग्लादेश से भी 65 करोड़ डॉलर पर पाकिस्तान का व्यापार अटका हुआ है. श्रीलंका का हमप्याला-हमनिवाला बनने के बावजूद पाकिस्तान पिछले साल मात्र 38 करोड़ 40 लाख डॉलर का व्यापार कर सका. पाकिस्तान जब भी दक्षेस के बाकी देशों से भारत के बढ़ते व्यापार की रफ्तार को देखता है, उसे बर्दाश्त करने में बड़ी तकलीफ होती है. इसलिए दावोस बैठक से ‘सार्क बिजनेस लीडर्स कन्क्लेव’ की तुलना किसी भी दृष्टि से नहीं की जा सकती.
पाकिस्तान के वाणिज्य सचिव कासिम एम नियाज सार्क बिजनेस लीडर्स कन्क्लेव से पहले भारत से निगेटिव लिस्ट के मामले को सुलझा लेना चाहते हैं. पिछले साल मार्च तक भारत के फार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पाद से जुड़ी 1209 वस्तुओं को आयात की अनुमति नहीं देनेवाली सूची में पाकिस्तान ने डाल रखा था. साल भर में यही प्रगति हुई है कि भारत अब अपने पड़ोसी पाकिस्तान को 7,500 आइटम भेज सकता है. पाकिस्तान भेजी जानेवाली वस्तुओं में से 6,000 आइटम समुद्री मार्ग से भेजे जाने लगे हैं. वाघा सीमा से भी भेजी जानेवाली वस्तुओं की क्लियरेंस 24 घंटे के भीतर सुनिश्चित कर दी गयी है. इससे पहले पाकिस्तान ने नकारात्मक सूची को समाप्त करने की समय सीमा 31 दिसंबर, 2012 तय की थी. पाकिस्तान के इस टालू रवैये के पीछे 31 मई, 2014 का लक्ष्य रहा है, क्योंकि भारतीय लोकसभा के अंतिम सत्र के बाद होनेवाले चुनाव और नयी सरकार बनने के बाद ही नवाज शरीफ भारत से ठोस समझौते की मंशा बना रहे हैं. अभी जो कुछ भी इससे पहले हो रहा है, उसके पीछे कहीं न कहीं विश्व मुद्रा कोष का दबाव है.
अब यह बात तो तय मानिये कि पाकिस्तान कभी आड़े-तिरछे चलने से बाज नहीं आनेवाला. अमेरिकी ऊर्जा विभाग की हालिया रिपोर्ट में यह बात आयी कि 2030 तक भारत में भयानक ऊर्जा संकट आनेवाला है, उस कारण विदेश से तेल-गैस आयात करने की निर्भरता 90 प्रतिशत बढ़ जायेगी. भारत के ऊपर आनेवाले इस ऊर्जा संकट को लेकर पाकिस्तान बहुत चिंतित है. पाकिस्तान ने कहा कि इस संकट का समाधान तुर्कमेनिस्तान, ईरान से अफगानिस्तान, पाकिस्तान होकर जानेवाली पाइपलाइन से संभव है. पाकिस्तान ने कहा कि ईरान के चबहार बंदरगाह से समुद्री रास्ते के द्वारा भारत जो पेट्रोलियम आयात करता है, वह सस्ता सौदा नहीं है. पाकिस्तान ने शर्त रखी है कि भारत को इस जमीनी और सस्ते मार्ग को पाने में हम तभी सहयोग करेंगे, जब वह मसला-ए-कश्मीर का हल ढूंढ़ता है. पाकिस्तान इस प्रस्तावित ऊर्जा मार्ग को कूटनीतिक हथियार बनाना चाहता है. इस ख्वाहिश को पूरी करने के लिए पाकिस्तान दो नावों पर खड़ा है. इनमें से एक ईरान है, तो दूसरा रूस. पाकिस्तान इस जमीनी मार्ग का चुग्गा फेंक कर एक बार फिर अपनी नीयत का परिचय दे रहा है. लेकिन उसका जवाब लोकसभा चुनाव के बाद ही संभव है!