आम जनजीवन में जाल व फरेब की कमी कहीं नहीं है. इस मामले में बिहार ही नहीं, देश-दुनिया की स्थिति भी करीब एक जैसी ही है. वैसे, फरेब की परिस्थितियां अलग-अलग हो सकती हैं, इसमें संदेह नहीं. जमीन व मकान खरीदने में होनेवाली धोखाधड़ी को श्मशान घाट पर कफन की खरीद-बिक्री में होनेवाली धोखाधड़ी के बराबर नहीं देखा जा सकता.
फरेब दोनों हैं, लेकिन परिस्थितियां अलग-अलग. निजी अस्पतालों व नर्सिग होम में मरीजों को फंसाने और उनके घर-परिवार, बाल-बच्चों की जान की परवाह किये बिना उनके आर्थिक शोषण के लिए जो खेल खेले जा रहे हैं, वे लोमहर्षक हैं. किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को यह सोचने को मजबूर करने के लिए फरेब के ये खेल काफी हैं. यह जानते हुए कि अच्छे-भले डॉक्टरों की भी कमी नहीं है, सूबे के किसी भी कोने में ऐसे लोगों का भी अभाव नहीं, जो इलाज के लिए पटना या किसी बड़े शहर में जाने के नाम पर आतंकित हो उठते हैं. स्वास्थ्य सेवा की आड़ में रची-बसी धोखेबाजों की फरेबी दुनिया में प्रवेश की कल्पना मात्र से ही. यह स्थिति पटना समेत कमोबेश सभी बड़े शहरों में एक जैसी है.
मरीजों के प्रति दया व सहानुभूति रखने की जगह इंसानी खाल में भेड़िये जैसे व्यवहार करनेवाले बिचौलिये कदम-कदम पर मौजूद हैं, भयादोहन कर मरीजों के परिजनों को कंगाल बना देने के लिए. उनके घर-मकान, जगह-जमीन तक बिकवा कर भीख मांगने को मजबूर कर देने के लिए. नर्सिग होम व अस्पतालों में मरीजों के लिए भगवान बने बैठे डॉक्टर तक अगर लाचार, मजबूर लोगों की दुनिया उजाड़ने पर आमादा हों, तो फिर आम आदमी की दुर्गति का कहना ही क्या. दरअसल, जब सिर पर विपत्ति आती है, तो दूसरों को बुद्धि देनेवाला आम इंसान जल्दी ही अपना बौद्धिक सामथ्र्य खो देता है.
यही व्यावहारिक स्थिति है. यही सच है. दूसरी तरफ स्वास्थ्य सेवा की दुनिया में फरेब की जड़ें भी काफी गहरी हो चुकी हैं. ऐसे में सरकार व प्रशासन की जिम्मेवारी काफी बढ़ जाती है. इन्हें मजबूत संकल्प शक्ति के साथ काम करना होगा. मजबूर मरीजों को लूट रहे ऐसे तत्वों से इनके बचाव की गारंटी होनी ही चाहिए. इस मामले में और विलंब सरकार व समाज, दोनों के हित में नहीं है.