भारत-ईरान दोस्ती
ऐतिहासिक द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देते हुए भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया है. इससे भारत की मध्य एशिया के देशों तक सीधी पहुंच सुनिश्चित हो गयी है. किसी विदेशी बंदरगाह के विकास-प्रक्रिया में भारत पहली बार इतने बड़े पैमाने पर शामिल हुआ है. […]
ऐतिहासिक द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देते हुए भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया है. इससे भारत की मध्य एशिया के देशों तक सीधी पहुंच सुनिश्चित हो गयी है. किसी विदेशी बंदरगाह के विकास-प्रक्रिया में भारत पहली बार इतने बड़े पैमाने पर शामिल हुआ है. इस समझौते के तहत भारत चाबहार से जाहिदान के बीच 500 किलोमीटर लंबी रेललाइन बनाने में भी सहयोग करेगा.
चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हो सकता है तथा इससे औद्योगिक उत्पादन के बड़े अवसर भी संभावित हैं. इस वाणिज्यिक करार का संदर्भ क्षेत्रीय कूटनीतिक परिदृश्य से भी जुड़ता है. एक तो इस नये रास्ते से अफगानिस्तान समेत मध्य एशिया से सामान की आवाजाही सुगम हो जायेगी, जो कि वर्तमान समय में पाकिस्तान के अड़ियल रवैये के कारण कठिनाइयों से भरा है. चीन ने चाबहार से महज 72 किलोमीटर दूर पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को विकसित किया है.
इसके अलावा भारी निवेश से बन रहे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर भी भारत को आपत्ति है, क्योंकि यह गलियारा उन इलाकों से होकर गुजरता है जिन पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है. ईरान के साथ भारत के इस समझौते से पाकिस्तान पर बढ़ते चीनी प्रभाव को संतुलित करने में भी मदद मिलेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा का महत्व इस बात से भी बढ़ जाता है कि अभी चार महीने पहले ही ईरान पर से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटाये गये हैं.
इस कारण ईरान के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों की बेहतरी की नयी गुंजाइश पैदा हुई है, जिसका फायदा भारत को मिल सकता है. पंद्रह वर्ष के अंतराल के बाद हो रहे भारतीय प्रधानमंत्री के इस दौरे को लेकर भारत सरकार ठोस तैयारियां भी की है. इन कारकों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह यात्रा मोदी के अन्य विदेशी दौरों की तुलना में अधिक सफल रही है. ईरान और पाकिस्तान के बीच व्यापार में लगातार गिरावट हो रही है. सऊदी अरब से पाकिस्तान की कूटनीतिक निकटता और अफगानिस्तान के ईरान की रुचि के कारण भी दोनों देशों के संबंधों में असहजता है.
इस स्थिति में ईरान के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करना भारत के लिए बहुत जरूरी है. हालांकि, सऊदी अरब और ईरान के बीच कटुता से भारत अप्रभावित है, पर अरब और मध्य एशिया में अशांति के परिदृश्य में भारत सकारात्मक कूटनीतिक भूमिका निभा सकता है. मोदी की ईरान यात्रा से संभावनाओं के नये द्वार खुले हैं.