केंद्र-राज्य सहकार
देश में बीते छह दशक से जारी पंचवर्षीय योजनाओं के स्थान पर केंद्र सरकार 15 वर्षीय दृष्टिपत्र पेश करने की तैयारी कर रही है. 12वीं पंचवर्षीय योजना की समाप्ति के बाद नीति आयोग द्वारा तैयार विजन डॉक्यूमेंट पेश होगा, जिसमें आंतरिक सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र को भी शामिल किया जायेगा. लेकिन, केरल के नये मुख्यमंत्री […]
देश में बीते छह दशक से जारी पंचवर्षीय योजनाओं के स्थान पर केंद्र सरकार 15 वर्षीय दृष्टिपत्र पेश करने की तैयारी कर रही है. 12वीं पंचवर्षीय योजना की समाप्ति के बाद नीति आयोग द्वारा तैयार विजन डॉक्यूमेंट पेश होगा, जिसमें आंतरिक सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र को भी शामिल किया जायेगा. लेकिन, केरल के नये मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने अपने मंत्रिमंडल की पहली बैठक के बाद पूर्ववर्ती योजना आयोग की पंचवर्षीय योजनाओं की तर्ज पर ही राज्य में 13वीं पंचवर्षीय योजना लागू करने और योजना बोर्ड की प्रणाली को जारी रखने की घोषणा कर दी है.
ऐसे फैसलों से केंद्र और राज्य के बीच वित्तीय आवंटन और योजनाओं के क्रियान्वयन में विसंगतियां पैदा हो सकती हैं. उधर, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री डॉ जे जयललिता ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि मेडिकल शिक्षा के संस्थाओं में प्रवेश की एकल परीक्षा (नीट) को राज्य पर थोपा न जाये. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस परीक्षा को देशभर के लिए अनिवार्य घोषित किया है और कुछ राज्यों की कठिनाइयों के मद्देनजर केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के द्वारा इसे सिर्फ एक वर्ष के लिए स्थगित किया है.
लेकिन, जयललिता ने राज्य में न्यायालय द्वारा अनुमोदित प्रवेश प्रणाली का हवाला देते हुए कहा है कि नीट से ग्रामीण और वंचित वर्ग के छात्र पीछे रह जायेंगे. अब यदि केंद्र ने इसे मान लिया, तो अन्य राज्यों को भी अपने लिए छूट का आधार मिल जायेगा. निजी मेडिकल संस्थाओं में प्रवेश को लेकर जिस तरह की अनियमितताओं और मुनाफाखोरी की खबरें आती रहती हैं, उनके समाधान के लिए एक बेहतर प्रवेश प्रणाली जरूरी है. ऐसे में जयललिता का दबाव केंद्र के कदम में एक अवरोध साबित हो सकता है.
यह सही है कि मुख्यमंत्री संविधान-प्रदत्त स्वायत्तता का तर्क दे सकते हैं तथा केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर संबंधों के लिए केंद्र को उनकी परवाह भी करनी चाहिए, लेकिन ऐसे मुद्दों पर राजनीतिक तकरार से बचने की हर मुमकिन कोशिश की जानी चाहिए. देश के संघीय ढांचे को मजबूत करना और परस्पर सहयोग एवं सहभागिता से विकास की जन-आकांक्षाओं को पूरा करना केंद्र के साथ-साथ राज्यों की भी जिम्मेवारी है. यदि केंद्र-राज्य सरकारें नीतिगत सहकार के साथ आगे बढ़ेंगी, तभी देश आगे बढ़ सकेगा.