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अब पतंगबाजी भी नहीं रह गयी आम

।।सत्य प्रकाश पाठक।। (प्रभात खबर, रांची) भई! आम आदमी जब आम नहीं रहा, तो आम लोगों का आम शौक पतंगबाजी भी आम कैसे रह सकती है. अब तो गुजरात के मुख्यमंत्री तथा भाजपा के प्रधानमंत्री प्रत्याशी भी पतंग की डोर थामे दिख रहे हैं. बड़े नेता हैं, बड़ा लक्ष्य है. भाजपा की उम्मीदें उनसे जुड़ी […]

।।सत्य प्रकाश पाठक।।

(प्रभात खबर, रांची)

भई! आम आदमी जब आम नहीं रहा, तो आम लोगों का आम शौक पतंगबाजी भी आम कैसे रह सकती है. अब तो गुजरात के मुख्यमंत्री तथा भाजपा के प्रधानमंत्री प्रत्याशी भी पतंग की डोर थामे दिख रहे हैं. बड़े नेता हैं, बड़ा लक्ष्य है. भाजपा की उम्मीदें उनसे जुड़ी हैं. लेकिन, बकौल भाजपाई पूरे देश की उम्मीद उनसे जुड़ी हुई है. मोदी एकमात्र उम्मीद हैं, जो पिछले 10 साल से दक्षिणायन में लटके भाजपा के सत्ता-सूर्य को उत्तरायण में लाने के लिए देश के सियासी आसमान में पेंच लड़ा सकते हैं और लड़ा भी रहे हैं. नेता कई लोगों के आदर्श होते हैं. आज टीवी चैनलों पर मोदी की पतंगबाजी देख सोनू और मोनू को भी उनका आदर्श मिल गया. पहली बार दोनों को काटरून छोड़, न्यूज चैनल देखने में मजा आया. दोनों इस उम्र के नहीं कि वोट दे सकें. अगर वोटर होते, तो भाजपा का दो वोट तो पक्का था. हो भी क्यों ना, आखिर उन्हें उनका नेता पतंगबाजी का नैतिक आधार दे गया. पतंग उड़ाने के लिए कल तक घर से छुपते-छुपाते, दबे पांव निकलनेवाले ये होनहार आज खुलेआम पतंगबाजी के लिए निकले, तो बुआ ने टोका- ‘‘फिर पतंगबाजी? किताब से तो दुश्मनी है? अभी आते होंगे तुम्हारे पापा.’’ बुआ ने नाम लिया नहीं कि पापा भी आ धमके. उन्होंने माथा ठोक कर कहा- ‘‘कांग्रेस के सहारे तो आठवीं तक पहुंच गये (सरकारी नियम के तहत आठवीं तक फेल नहीं करने का प्रावधान है), अब तुम्हें आठवीं पास कौन करायेगा? भगवान जाने पतंग उड़ा कर क्या बनोगे?’’

अब मोनू की बारी थी. उसने सीधे सवाल दागा-’’पापा आपने न्यूज देखा.. नहीं देखा, तो देख लो, समझ जाओगे कि क्या बनने के लिए पतंग उड़ाते हैं.’’ पापा समझ गये कि सरकारी स्कूल के मास्साब ने ठीक कहा था- ‘‘गोपाल बाबू इन लड़कों की चिंता छोड़िए, सिर्फ पढ़ाई नहीं कर सकते, बाकी बुद्धि की कमी नहीं है इनमें.’’ खैर, गोपाल बाबू थोड़ा आश्वस्त हुए कि पतंगबाजी कोई बच्चों का खेल नहीं रहा. नरेंद्र मोदी कोई ऐसे ही थोड़े पतंगबाजी करने लगे. वह भी सलमान खान के साथ. दोनों अपने-अपने फील्ड में हिट हैं. दोनों ही पतंग की उलझी डोर की तरह कई तरह के विवादों में खुद भी उलङो हुए हैं, लेकिन फैन फालोइंग के मामले में इन दोनों की तूती बोलती है.

अब आम आदमी जान ले कि पतंग उड़ाना कोई आम काम नहीं है. ऐसा नहीं है कि कोई भी ऐरा-गैरा कहीं से डोर-पतंग ले आया और चढ़ गया आसमान पर. मोदी साहब भी बगैर किसी तैयारी के पतंगबाजी के मैदान में तो आये नहीं होंगे? धागा जुगाड़ा होगा, मांझा के लिए बल्ब-टय़ूब तोड़ कर शीशे की पिसाई भी की होगी? लाल-पीली पतंगें बनायी ही होंगी? इतनी मेहनत की है, तभी तो पेंच लड़ाने को ललकार रहे हैं- ‘‘है कोई, तो आ जाये आसमान में कर ले दो-दो हाथ.’’ लेकिन, इधर चुनौतियां बढ़ गयी हैं जनाब! तमाशबीन भी अब ताल ठोकने लगे हैं.

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