श्रमिकों का सम्मान
श्रमिकों की भी अजीब व्यथा है. हर सुबह रोटी की तलाश में यह वर्ग घर से निकलता है. बूते से बाहर मेहनत कर जाता है और बारी जब पगार की आती है, तो उसके हिस्से आती है कोफ्त़ यूं तो हर साल श्रमिक दिवस मनाया जाता है, श्रमिकों के कल्याण और उनकी सुरक्षा की बातें […]
श्रमिकों की भी अजीब व्यथा है. हर सुबह रोटी की तलाश में यह वर्ग घर से निकलता है. बूते से बाहर मेहनत कर जाता है और बारी जब पगार की आती है, तो उसके हिस्से आती है कोफ्त़ यूं तो हर साल श्रमिक दिवस मनाया जाता है, श्रमिकों के कल्याण और उनकी सुरक्षा की बातें की जाती हैं. लेकिन हकीकत में यह सब कोसों दूर है.
नगरों-महानगरों के चौकों का नाम ‘मजदूर चौक’ रख कर श्रम और श्रमिक के प्रति सम्मान और कर्तव्य को हम सीमित कर लेते हैं. इन चौकों पर श्रमिकों को झुंड की तरह इकट्ठा होना पड़ता है जहां न सिर पर छत होती है और न बैठने के लिए उपयुक्त स्थान. श्रमिकों की ऐसी दुर्दशा रोकने के लिए सरकार को चौराहों पर लगने वाली मजूदर मंडी जैसी शर्मनाक व्यवस्था पर रोक लगानी चाहिए.
अखिलेश मिश्रा, बोकारो