घातक प्रदूषण
हमारे यहां गेहूं की कटाई का मौसम समाप्त हो चुका है. हार्वेस्टर से फलियां काटने के बाद अधिकांश किसान गेहूं के बचे हुए पौधों में आग लगा देते हैं. आम तौर पर साधारण किसान भी फसल की कटाई के बाद बची हुई डंडियों के साथ यही करते हैं. चूंकि यह किसी काम का नहीं होता, […]
हमारे यहां गेहूं की कटाई का मौसम समाप्त हो चुका है. हार्वेस्टर से फलियां काटने के बाद अधिकांश किसान गेहूं के बचे हुए पौधों में आग लगा देते हैं. आम तौर पर साधारण किसान भी फसल की कटाई के बाद बची हुई डंडियों के साथ यही करते हैं.
चूंकि यह किसी काम का नहीं होता, ऐसे में इसे खेत में खड़े-खड़े जला देना ही बेहतर समझा जाता है, लेकिन वास्तव में यह चिंता का विषय है. आग का धुआं हवा में घुल जाता है, जो सांस के मरीजों के लिए घातक सिद्ध होता है.
पंजाब और हरियाणा से शुरू हुआ यह चलन हमारे यहां भी अपनाया जाने लगा है़ हालांकि अब वहां प्रशासन की कोशिश रहती है कि किसानों की इस हरकत पर रोक लगायी जाये़ यही नहीं, इसके लिए सजा भी तय है़ ऐसे में हमारे यहां भी यह कोशिश होनी चाहिए, ताकि निर्दोष लोग इस तरह प्रदूषण के शिकार न बनें.
अरविंद मुंडा, हजारीबाग