सुधारवाद का नकली चेहरा

पिछले वर्ष अन्ना के जन-लोकपाल आंदोलन, जिसे आज उनके सहयोगी अरविंद केजरीवाल ‘जोकपाल’ की संज्ञा दे रहे हैं, वर्तमान में कांग्रेस पार्टी का समर्थन स्वीकार कर सत्ता के गलियारे में प्रवेश कर चुके हैं. भारतीय जन-गण जहाज के पंछी की तरह हैं. उनके नसीब में किसी न किसी जहाज के मस्तूल पर ही बैठने की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2014 3:55 AM

पिछले वर्ष अन्ना के जन-लोकपाल आंदोलन, जिसे आज उनके सहयोगी अरविंद केजरीवाल ‘जोकपाल’ की संज्ञा दे रहे हैं, वर्तमान में कांग्रेस पार्टी का समर्थन स्वीकार कर सत्ता के गलियारे में प्रवेश कर चुके हैं. भारतीय जन-गण जहाज के पंछी की तरह हैं. उनके नसीब में किसी न किसी जहाज के मस्तूल पर ही बैठने की बाध्यता है. मानव सभ्यता के विकास के क्रम में राजतंत्र, सामंत तंत्र, कुलीन तंत्र जैसी कई व्यवस्थाओं के दर्शन होते हैं.

उन तंत्रों में उस व्यवस्था पर काबिज वर्गो के हितों के लिए सारे कायदे-कानून कितने भी निष्पक्ष क्यों न हों, शोषित वर्गो के विरुद्ध ही होते हैं. वर्तमान लोकतांत्रिक ढांचे में पिछले 30 वर्षो में सूचना के क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तन हुए हैं. इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप आदि से लैस रोबोटनुमा युवा पीढ़ी का उद्भव हुआ है. यह युवा वर्ग अपने हित की रक्षा के लिए नयी व्यवस्था तथा नवीन संस्कृति को जन्म देना चाहता है. बेशक उत्पादन के पुराने तकनीक की जगह एक नयी संस्कृति को अपनाना इसके लिए आवश्यक है.

साथ ही, आर्थिक विषमता से उत्पन्न बेरोजगारों की फौज अपने अस्तित्व की तलाश में सड़ी गली व्यवस्था से दो-दो हाथ करने के लिए, अपने असंतोष को प्रकट करने के किसी भी अवसर की ओर उन्मुख हो जाता है. अन्ना का जनलोकपाल हो अथवा ‘निर्भया’ नामक युवती के ऊपर अमानुषिक अत्याचार का सवाल, शहरों में जी रहे नये एलीट क्लास का उन्माद, जो आम आदमी पार्टी के रूप में सत्ता को चुनौती देता नजर आ रहा है, इसकी जड़ें ‘भारत की आत्मा कहे जानेवाले ‘दास प्रथा’ की परिस्थितियों में जी रहे मजदूर-किसानों के बीच में नहीं है. यह सुधारवाद का एक नकली चेहरा है, जो क्षणिक प्रभाव में है.
सुजीत कुमार मित्र, मोसाबनी, सिंहभूम

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