कूटनीति के कदम

महत्वपूर्ण और जिम्मेवार परमाणु शक्ति के रूप में स्वीकृति के बावजूद भारत अब तक कई संबंधित समूहों का सदस्य नहीं बन पाया है. लेकिन इस परिदृश्य में बहुत जल्दी उल्लेखनीय बदलाव के आसार है. इस बात की प्रबल संभावना है कि अगले कुछ दिनों में भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम का 35वां सदस्य बन जायेगा. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 6, 2016 6:26 AM

महत्वपूर्ण और जिम्मेवार परमाणु शक्ति के रूप में स्वीकृति के बावजूद भारत अब तक कई संबंधित समूहों का सदस्य नहीं बन पाया है. लेकिन इस परिदृश्य में बहुत जल्दी उल्लेखनीय बदलाव के आसार है. इस बात की प्रबल संभावना है कि अगले कुछ दिनों में भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम का 35वां सदस्य बन जायेगा. इस समूह की सदस्यता मिलने से उसके न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में शामिल होने का रास्ता साफ हो जायेगा, जो चीन के अड़ंगे के कारण फिलहाल अधर में है.

कंट्रोल रिजीम के सदस्य बन जाने के बाद परमाणु अप्रसार के नियमों के तहत मिसाइल तकनीक का आयात-निर्यात करना भारत के लिए अधिक आसान हो जायेगा. भारत के दावे का एक मजबूत आधार यह है कि वह 2008 से ही अपनी इच्छा से रिजीम के कायदों का पालन कर रहा है. भारत इस दिशा में ठोस कूटनीतिक प्रयास भी कर रहा है. माना जा रहा है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हालिया चीन यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग को याद दिलाया है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत किसी अंतरराष्ट्रीय बहुपक्षीय समूह में चीन की सदस्यता पर कभी भी एतराज नहीं जताया है. भारत ने चीन को अपनी परमाणु ऊर्जा जरूरतों का हवाला दिया है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय परमाणु तकनीक पर चीन के दोहरे रवैये से भी अवगत है.

एक तरफ वह सप्लायर ग्रुप में भारत की सदस्यता के पक्ष में नहीं है, वहीं दूसरी ओर वह पाकिस्तान को परमाणु तकनीक उपलब्ध करा रहा है. उल्लेखनीय है कि चीन 48 सदस्यीय न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का सदस्य है, पर उसे मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम की सदस्यता अभी तक नहीं मिली है. पर्यवेक्षकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा से नौ जून को वियना में होनेवाली सप्लायर ग्रुप की बैठक में ठोस अमेरिकी समर्थन की संभावना बढ़ गयी है.

कंट्रोल रिजीम में सदस्यता के लिए चीन ने पाकिस्तान को आगे कर एक दावं खेला है. बहरहाल, इस संदर्भ में सकारात्मक संदेशों से यही संकेत मिल रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु परिदृश्य में भारतीय कूटनीति के कदम सही दिशा में हैं और इनके समुचित परिणाम बहुत जल्दी हमारे सामने होंगे.

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