मौत की देहरी पर जीवन के गीत
-हरिवंश- कोलकत्ता के अपने प्रिय अड्डे पर था, मोहंस बुक स्टोर्स. एक पुस्तक पर नजर गयी. द लास्ट लेक्चर. लास्ट सपर, ईशा के जीवन का प्रकरण याद आया. कितना मार्मिक और अद्भुत? अंत शब्द में ही अजीब ध्वनि है. अंत के बाद क्या? नाम से ही कौतूहल जगा. अंतिम भाषण क्या है? किसका अंत? कैसा […]
-हरिवंश-
कोलकत्ता के अपने प्रिय अड्डे पर था, मोहंस बुक स्टोर्स. एक पुस्तक पर नजर गयी. द लास्ट लेक्चर. लास्ट सपर, ईशा के जीवन का प्रकरण याद आया. कितना मार्मिक और अद्भुत? अंत शब्द में ही अजीब ध्वनि है. अंत के बाद क्या? नाम से ही कौतूहल जगा. अंतिम भाषण क्या है? किसका अंत? कैसा अंतिम संदेश? किसी का कहा याद आया, वी आर आल आन एन एसाइंमेंट (हम सभी किसी कार्ययोजना के तहत धरती पर हैं), तो यह किसी के ‘लाइफ एसाइंमेंट’ का अंतिम लेक्चर है? भवचक्र से मुक्ति के पहले के उद्गार.
पुस्तक ली. पढ़ने लगा. प्रोफेसर रैंडी पाश का अंतिम लेक्चर. दुनिया के श्रेष्ठ विश्वविद्यालय कानगी मेलन में वह प्रोफेसर थे. ‘कंप्यूटर साइंस’ के. वहां प्रोफेसर अपना अंतिम व्याख्यान देते हैं. उन्हें कहा जाता है, आप यह सोंचे कि इस धरती से आप विदा हो रहे हैं. आपकी जीवन यात्रा का अंतिम पड़ाव है. इस मन:स्थिति में चिंतन करें. जीवन को कैसे देखते हैं, निरखते-परखते हैं? इस विषय पर ‘अंतिम व्याख्यान’ दें. श्रोता भी ऐसे ही सवालों-प्रसंगों में डूबते-उतराते हैं. साझेदारी करते हैं. अगर जीवन-जगत के पटल पर कुछ ही समय हमारी भूमिका रह गयी है, तो हम जीवित समाज से किन विचारों को शेयर करना चाहेंगे? पश्चिम के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में अद्भुत परंपरा है. इसे जानकर रोमांच हुआ. श्रद्धा और आदर भी, इसकी नींव डालनेवालों के प्रति.
इसी परंपरा-कड़ी में प्रोफेसर रैंडी पाश, निमंत्रित किये गये. अपने अंतिम व्याख्यान (द लास्ट लेक्चर) के लिए. अपने ही विश्वविद्यालय में. पर 1960 में जन्मे इस युवा प्रतिभा को आसन्न मौत की कल्पना नहीं करनी पड़ी. 46 वर्ष की उम्र में, प्रो. पाश को ‘घातक कैंसर’ डायग्नोज हुआ. लिवर में दस टयूमर. डॉक्टरों ने तीन से छह माह जीने की सीमा खींच दी.
और प्रो. रैंडी का व्याख्यान जिंदगी के गीत हैं. मृत्यु से मिली कुछेक माह की उधार, बीमार और भावनात्मक तूफान की जिंदगी के मंच से प्रोफेसर पाश ने अंतिम व्याख्यान दिया, ‘रियली एचिविंग योर चाइल्डहुड ड्रीम’ (बचपन के सपने को साकार करते). यह व्याख्यान हैं, मौत के साये में, पर मौत पर नहीं. मृत्यु के शोकगीत नहीं. कहीं शिकन नहीं. न शिकवा, न गिला, न आत्मरूंदन, न आत्मकरुणा, न दया, न याचना. ‘न दैन्यं, न पलायनम’. यह व्याख्यान था, जीवन की चुनौतियों पर फतह की.
दूसरे के सपनों को साकार करने में साझीदार होने की. एक-एक पल जीने का संवाद, क्योंकि ‘आपके पास सिर्फ समय है… और एक दिन आप अचानक पाते हैं, जितना आप सोचते हैं, उससे बहुत कम समय आपके पास बचा रह गया है’. न जाने किस गली में कब शाम हो जाये ? या सफर एक उम्र का पल में तमाम कर लूंगा ? का एहसास हो. यह पूरा व्याख्यान प्रो. रैंडी के जीवन मूल्यों, आस्था और दृष्टि का सार है. यह जीने, जीवन और जीवंतता का मर्मस्पश दस्तावेज है. आगत सदियों और पीढ़ियों के लिए अनमोल उपहार.
यह प्रसंग पढ़ते हुए दशकों पहले देखी ऐसी फिल्में याद आयीं, जिनके प्रसंग, दृश्य, स्मृति और गीत मन को भिगोते हैं. अस्त-व्यस्त करते है. अब भी. ‘मिली’, ‘सफर’, ‘आनंद’, ‘सत्यकाम’ वगैरह. जिंदगी कैसी है पहेली? मृत्यु द्वार पर जिंदगी के गीत.
रैंडी की भूमिका पढ़िए. उन्हीं के शब्दों में. भाव और आशय अनुवादित.
भूमिका की पहली पंक्ति है ‘आइ हैव एन इंजीनियरिंग प्राब्लम’ (मेरे शारीरिक ढांचे में बनावट का दोष है). मृत्यु की चर्चा इतने सहज और सरल तरीके से. अत्यंत खराब शारीरिक स्थिति. लीवर में दस टयूमर. कुछेक माह की शेष जिंदगी. मैं तीन छोटे बच्चों का पिता. बच्चों की उम्र इतनी छोटी कि कुछेक वर्षों बाद ही उनकी स्मृतियों से पिता की छवि धुल जानेवाली थी. अपने सपनों की रानी से शादीशुदा. मैं अपने पर रोता, अपने हालात पर रोता, पर क्या इससे किसी का भला होता? मेरे सामने सवाल है कि जिंदगी थोड़ी रह गयी है, उसे कैसे जीऊं?.. अगर मैं चित्रकार होता, तो अपने बच्चों के लिए अनेक चित्र छोड़ जाता. संगीतकार होता तो, उनके लिए म्यूजिक कंपोज कर जाता? पर मैं लेक्चरर हूं. इसलिए अंतिम लेक्चर देना तय किया. मैं जीवन की खुशियों और आंनद के बारे में बोला (गाया). बहुत कम समय मेरे खाते में था. पर मैंने जीवन के गीत गाये. मैंने ऑनेस्टी (ईमानदारी) की बात की. इंटेग्रिटी (सत्यनिष्ठा) की चर्चा की. ग्रेटिटय़ूड (कृतज्ञता) के प्रसंग बताये. अपने प्रिय मूल्यों – वसूलों को सुनाया. यह सब किया, ताकि 20 वर्ष बाद जब मेरे बच्चे बड़े हों, तो वे मुझे और मेरे समय को जान सकें. जानता था कि जीवित मां-बाप का यह विकल्प (लास्ट लेक्चर) नहीं हो सकता. पर इंजीनियरिंग, तो परफेक्ट सॉल्यूशन (सही निदान) नहीं हैं. यह कला है, सीमित संसाधनों से सर्वश्रेष्ठ रिजल्ट. मैंने यही किया.
भूमिका के बाद ‘लास्ट लेक्चर’ की पृष्ठभूमि है. प्रो. पाश और उनकी पत्नी, प्रो. पाश के बाद परिवार के भविष्य की तैयारी में जुटे थे. पीट्सबर्ग, जहां प्रो. पाश, कार्नेगीमेलन में प्रोफेसर थे, छोड़ कर वजनिया में परिवार को ‘शिफ्ट’ कर रहे थे, ताकि आसपास के सगे-संबंधियों की छाया में बच्चे और पत्नी मानसिक सुरक्षा पा सकें. घर नया, शहर नया, परिवेश नया. सामान बक्सों में पैक! इसी बीच ‘अंतिम व्याख्यान’ का आमंत्रण आया. पत्नी की इच्छा थी कि प्रो. पाश जीवन के बचे अंश, परिवार के साथ गुजारें. यह जानना मार्मिक है कि प्रो. पाश ने अंतत: ‘लेक्चर’ देने का फैसला किया. पत्नी ने सहमति दी. अंतिम लेक्चर से ठीक एक दिन पहले प्रो. पाश की पत्नी का जन्मदिन था. 41वां. प्रो.पाश के लिए पत्नी का अंतिम जन्मदिन. उसी दिन प्रो. पाश को लेक्चर देने के लिए जाना था, पीट्सबर्ग. एक दिन पहले पत्नी का जन्मदिन मनाया. अंतिम लेक्चर के लिए पीट्सबर्ग गये. अगले दिन उनकी पत्नी भी पहुंचीं. जिस विश्वविद्यालय में वह पढ़ाते थे, उसका एक कक्ष उनके नाम समर्पित किया गया. फिर शाम में ‘लास्ट लेक्चर’ हुआ.
मौत की दहलीज पर खड़ा एक अत्यंत बीमार पर युवा प्रोफेसर का व्याख्यान, ‘जीवन संगीत’ जैसा है. साहस गाथा है. भारी भीड़ सुनने आयी. जिस जीवंतता से प्रो.पाश ने ‘जीवन’ की बातें कीं, सपनों की चर्चा की, परिवार पर बोले, जीवनदर्शन को रेखांकित किया, वह बेमिसाल है. मनुष्य की ऊंचाई का एक नया प्रतिमान. अंत में भीड़ ने खड़े हो कर, जिस तरह प्रो. पाश और उनकी पत्नी (जन्मदिन के लिए) का अभिवादन किया, वह दिल छूनेवाला है. पग-पग पर रुलानेवाला है. पश्चिम के इस प्रयोग, साहस और मानस को एक मनुष्य होने के नाते प्रणाम.