सोच बदलने की जरूरत

पिछले दिनों विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया. पत्र-पत्रिकाओं में बदलते पर्यावरण की भयावह रूप को दर्शाते हुए हमें चेतने की सलाह भी दी गयी है. जब जब पर्यावरण की चर्चा होती है इसे बचाने की बात की जाती है. पर, इस तरह इसे बचाने का संकल्प लेते रहने से क्या परिस्थितियों में विशेष सुधार आयेगा? […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 9, 2016 6:24 AM
पिछले दिनों विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया. पत्र-पत्रिकाओं में बदलते पर्यावरण की भयावह रूप को दर्शाते हुए हमें चेतने की सलाह भी दी गयी है. जब जब पर्यावरण की चर्चा होती है इसे बचाने की बात की जाती है. पर, इस तरह इसे बचाने का संकल्प लेते रहने से क्या परिस्थितियों में विशेष सुधार आयेगा?
जब तक देश का हर व्यक्ति इसके प्रति अपना सहभागिता निर्धारण नहीं करता है तो कोई विशेष लाभ नहीं होगा. विकास के अंध दौड़ में हम मदहोश हैं. क्या कभी हमने विकास और पर्यावरण के बीच तालमेल की बात भी सोचा है. मेरे विचार से विकास की चाह से भी हम पर्यावरण को हानि ही पहुंचा रहे हैं. पर्यावरण के प्रति मैत्रीभाव रखने वाले आदिवासियों को बचाने के लिए क्या कोई योजनाएं हैं?
आये दिन जल, जंगल और जमीन को बचाने की वकालत करने वालों को क्षेत्र में विकास की महत्वपूर्ण योजनाओं के स्थापना के आड़ में बेदखल होते हुए देखा जा सकता है. इन सब बातों पर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो पर्यावरण को बचाने के भगीरथ प्रयास के बावजूद भी इसे नहीं बचाया जा सकता है. यह एक विचारणीय विषय है.
वशिष्ठ कुमार हेंब्रम, रांची

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