विषमता का चरम
दुनिया की महज एक फीसदी आबादी खुद को मिलियनेयर कह सकती है, लेकिन इनके पास कुल वैश्विक संपत्ति का करीब आधा हिस्सा है और यह हिस्सेदारी बढ़ती ही जा रही है. बोस्टन कंसल्टेटिंग ग्रुप की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में कम-से-कम एक मिलियन डॉलर यानी करीब साढ़े छह करोड़ रुपये की संपत्तिवाले 18.5 करोड़ […]
दुनिया की महज एक फीसदी आबादी खुद को मिलियनेयर कह सकती है, लेकिन इनके पास कुल वैश्विक संपत्ति का करीब आधा हिस्सा है और यह हिस्सेदारी बढ़ती ही जा रही है.
बोस्टन कंसल्टेटिंग ग्रुप की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में कम-से-कम एक मिलियन डॉलर यानी करीब साढ़े छह करोड़ रुपये की संपत्तिवाले 18.5 करोड़ परिवार हैं, जिनके पास कुल 78.8 खरब डॉलर मूल्य की संपत्ति है. यह धन सालाना वैश्विक आर्थिक उत्पादन के बराबर और कुल वैश्विक संपत्ति का करीब 47 फीसदी है. ध्यान रहे, यह आकलन नगदी, वित्तीय खातों और निवेश जैसे धन के आधार पर किया गया है; इसमें अचल संपत्ति और व्यापारिक हिस्सेदारी जैसे कारक शामिल नहीं हैं.
वर्ष 2014 की तुलना में 2015 में धनकुबेरों की संख्या में छह फीसदी, जबकि उनकी संपत्ति में 5.2 फीसदी की वृद्धि हुई है. धनी परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ी है, जिसमें भारत और चीन शामिल हैं. इन आंकड़ों का विश्लेषण कई आधारों पर किया जा सकता है, पर यह बात फिर स्पष्ट हुई है कि दुनियाभर में आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ विषमता भी बढ़ रही है.
पिछले साल अक्तूबर में क्रेडिट स्विस की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि सबसे धनी एक फीसदी आबादी के पास दुनिया की करीब आधी संपत्ति है. आज स्थिति यह है कि अगर आपके पास 2.08 लाख रुपये हैं, तो आप दुनिया के धनी 50 फीसदी लोगों में और यदि 44.72 लाख रुपये है, तो सबसे धनी 10 फीसदी लोगों में शामिल हैं. विश्व की 70 फीसदी व्यस्क आबादी यानी करीब 3.4 अरब लोगों के पास 6.5 लाख रुपये से कम संपत्ति है. बोस्टन ग्रुप और क्रेडिट स्विस, दोनों की रिपोर्ट बताती है कि भारत में भी धनिकों की संख्या बढ़ी है, पर आर्थिक विकास का लाभ बहुसंख्य आबादी को नहीं मिल पा रहा है.
क्रेडिट स्विस के मुताबिक भारत के एक फीसदी सर्वाधिक धनी लोगों के पास देश की 53 फीसदी तथा 10 फीसदी सर्वाधिक धनी लोगों के पास देश की 76.3 फीसदी संपत्ति है. इसका मतलब यह है कि देश की 90 फीसदी आबादी के हिस्से में एक चौथाई से कम राष्ट्रीय संपत्ति है. इस भयावह आर्थिक विषमता को इंगित करनेवाली कई अन्य रिपोर्टें भी आ चुकी हैं.
स्पष्ट है कि विकास की मौजूदा दशा-दिशा के कारण अरबों लोग शोषण और वंचना के शिकार हो रहे हैं, जबकि धनकुबेरों की तिजोरियां भरती जा रही हैं. यह देश-दुनिया की स्थिरता और शांति के लिहाज से एक चिंताजनक संकेत है और इसके मद्देनजर दुनियाभर में आर्थिक नीतियों पर गंभीरता से विचार कर उनमें त्वरित सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है.