-हरिवंश-
उसके पास अमेरिकी राजनीति में छा जाने के लिए जरूरी साधन ( बड़ी पूंजी, कॉरपोरेट लॉबिंग) नहीं होते. यह है रहनुमाई, यह है नायकत्व और लीडरशिप. राष्ट्रपति चुने जाने के बाद, फिर शपथ ग्रहण के बाद, जो यादगार भाषण देता है, जो भाषण भविष्य के ऐतिहासिक भाषणों में शुमार होंगे, जिसे शपथ लेते दुनिया के चार अरब लोग देखते हैं, नयी उम्मीद और आशा के साथ, जिसके शपथ ग्रहण में खून को जमा देनेवाली ठंड के बावजूद कई-कई लाख लोग जमा होते हैं, उसमें कोई चमक (स्पार्क) या जादू तो है? यही है नेतृत्व का जादू या चमत्कार.
गोरे -काले सभी उनके समर्थक बन गये. फिर तो ओबामा ने जो इतिहास बनाया, उससे युवा और आनेवाली पीढ़ियां ताकत और ऊर्जा ग्रहण करेंगी.पर जो लोग रहनुमाई करते हैं, अपने देश और मुल्क को आगे ले जाना चाहते हैं, वे भी ओबामा से नेतृत्व की कला और गुर जान सकते हैं. खास तौर से भारत के नेता बहुत कुछ सीख सकते हैं. एक जाति या एक धर्म की बात कर आप बड़े नेता या नायक नहीं बन सकते. एक क्षेत्र या एक समुदाय की सीढ़ी से आप सर्वमान्य नेता के मंच तक नहीं पहुंच सकते. जो पूरे समाज को सपना दिखा सकता हो, जो लोगों की अव्यक्त आकांक्षाओं को स्वर दे सकता हो, वही बड़ा नेता बन सकता है. जो नये मुहावरों और शब्दों में अपने समय की चुनौतियों को रेखांकित कर सके और उनके समाधान के लिए साहसिक और कठोर कदम उठा सके.
शपथ ग्रहण के दिन ओबामा ने कहा- क्रिश्चियन, मुसलिम, यहूदी, हिंदू, अनीश्वरवादी, सबका देश है अमेरिका. अमेरिका के मौजूदा संकट के बारे में उन्होंने साफ-साफ कहा, हम भटक गये हैं, सुविधाभोगी हो गये हैं, इसलिए यह स्थिति है? कठोर कदम उठाने के उन्होंने साफ और स्पष्ट संकेत दिये. भारत के नेताओं को देखिए. इनमें साहस नहीं है कि वे धारा के खिलाफ बोल सकें. भारत में भी लोकसभा चुनाव होनेवाले हैं. काश कोई पार्टी, नेता, विचारधारा या समूह, भारत के नये सपनों को एजेंडा बना पाता. राजनीति के नये मुहावरे और नयी व फ्रेश भाषा गढ़ता. धारा और वोट बैंक के खिलाफ सही मुद्दे उठा पाता. नयी फिजा और नया माहौल बना पाता.
यह हाल में भारतीय बाजार में आयी है. पुस्तक पर लिखा है, ’द नंबर वन इनटरनेशनल बेस्ट सेलर.’ नहीं मालूम कि ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद यह ‘बेस्ट सेलर’ (सर्वाधिक बिक्रीवाली) बनी या पहले? हालांकि, ओबामा ने लिखा है कि छपने के बाद यह औसत किताबों की तरह ही बिकी. यह पुस्तक उन्होंने तब लिखी, जब वह ‘हावर्ड लॉ रिव्यू’ के पहले प्रेसिडेंट चुने गये. वहां भी वह चुनाव जीतनेवाले पहले ‘अफ्रीकन-अमेरिकन’ प्रेसिडेंट थे. एक युवा जो अपनी पहचान और जड़ों को शिद्दत से-बेचैनी से तलाशता है, यह उसकी आत्मकहानी है. पिता, अफ्रीका के ब्लैक, मां अमेरिका की गोरी महिला. इंडोनेशिया में बचपन, कीनिया में पिता के जीवन से रू-ब-रू होने का प्रकरण और फिर अमेरिका के अनुभव. बहुत ही सुंदर और ईमानदार तरीके से. 442 पेजों और 19 अध्यायों + उपसंहार में सिमटी है यह कथा.