टॉपर्स और अंकों का महत्व

बिहार के टॉपर्स मामले में नित्य हो रहे नये खुलासे ने हमारी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है. सरकारी महकमों से लेकर अभिभावक एवं प्राइवेट शैक्षिक संस्थानवाले तथाकथित शुभचिंतकों ने इस व्यवस्था को फलने-फूलने का मौका दिया है. झारखंड की स्थिति भी इससे अलग नहीं है. परीक्षा में कदाचार से आशय होता था- एकाध […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2016 6:48 AM
बिहार के टॉपर्स मामले में नित्य हो रहे नये खुलासे ने हमारी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है. सरकारी महकमों से लेकर अभिभावक एवं प्राइवेट शैक्षिक संस्थानवाले तथाकथित शुभचिंतकों ने इस व्यवस्था को फलने-फूलने का मौका दिया है. झारखंड की स्थिति भी इससे अलग नहीं है.
परीक्षा में कदाचार से आशय होता था- एकाध प्रश्नों के उत्तर के लिए ताक-झांक, आगे-पीछे बैठे अन्य परीक्षार्थियों से हल्की बातचीत, वो भी निरीक्षकों से नजरें बचा कर. परंतु, अब सामूहिक नकल, स्वैच्छिक परीक्षा केंद्र, स्वैच्छिक मूल्यांकन केंद्र और तो और काॅपी बदलने की हाइटैक विधि! क्यों पड़ गयी इसकी जरूरत? शायद सरकारी एवं निजी शैक्षिक संस्थानों में नामांकन की प्रकिया अथवा सरकार द्वारा नौकरी देने की प्रकिया.
आज शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ रोजगार प्राप्त करना हो गया है. जब तक हम अपनी इन पद्धतियों में, अपनी सोच में परिवर्तन नहीं लाते, तब तक इस सामाजिक और शैक्षिक स्थिति में सुधार की गुंजाइश कम ही दिखती है.
अमरेश कुमार, हजारीबाग

Next Article

Exit mobile version